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    अपनी ही मां को दिया था युधिष्ठिर ने श्राप, जानिए क्‍या थी वो वजह?

  • January 12, 2022

    नई दिल्ली. इतिहास के सबसे बड़े युद्ध महाभारत (Mahabharata) की कहानी तो आपने सुनी ही होगी. इसके तमाम पहलुओं, घटनाओं की छोटी-छोटी कई कहानियां हैं. पांडव और कौरवों (Pandavas and Kauravas) के बीच धर्म और अधर्म को लेकर चले इस युद्ध का परिणाम(result) काफी भयानक था. भले ही इस युद्ध में पांडव जीत गए थे, लेकिन युद्ध के बाद उनकी दुनिया बदल चुकी थी. धर्मराज युधिष्ठिर (Dharmaraj Yudhishthira)और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन सहित कई योद्धाओं ने इस युद्ध में छल कपट का सहारा लिया. 18 दिनों तक चलने वाले युद्ध महाभारत में हर दिन कुछ न कुछ विशेष घटित हुआ जो लोगों के लिए आज भी शिक्षा, संदेश और उपदेश की तरह है. इस युद्ध के अंत में युधिष्ठ‍िर ने अपनी मां कुंती को श्राप तक दे दिया था. आइये बताते हैं पूरी कहानी…

    गंगा तट पर रहे पांडव
    महाभारत के युद्ध के बाद सभी मृत परिजनों और रिश्तेदारों का तर्पण करने के बाद पांडव एक महीने तक गंगा तट पर रहे. धर्मराज युधिष्ठिर को देखने और उन्हें सांत्वना देने के लिए कई महान ऋषि और संत के आने जाने का क्रम लगा हुआ था. इसी बीच नारद ऋषि भी युधिष्ठिर के पास गए और युधिष्ठिर की मनःस्थिति के बारे में पूछा. नारद ने युधिष्ठिर से प्रश्न करते हुए कहा कि “हे युधिष्ठिर, अपनी भुजाओं के बल और भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की कृपा से आपने इस युद्ध में विजय प्राप्त कर ली. क्या पापी दुर्योधन (sinner Duryodhana) को परास्त करने के बाद तुम प्रसन्न नहीं हो? मुझे आशा है कि शोक और विलाप आपको नहीं सता रहे हैं.”

    जब युधिष्ठ‍िर को पता चली सच्चाई
    युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि “वास्तव में मैंने कृष्ण की कृपा, ब्राह्मणों के आशीर्वाद और भीम और अर्जुन की शक्ति के आधार पर इस युद्ध को जीत लिया है. फिर भी एक गहरा दुख है जो आज भी मेरे दिल में बैठा है. मुझे लगता है कि मेरे अपने लोभ के कारण ही इतना बड़ी संख्या में स्वजनों का वध हुआ है. पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु पर द्रौपदी का विलाप देख, मैं जीत को हार मानता हूं. युधिष्ठिर ने कहा, “इन सभी योद्धाओं के वध के बाद मुझे पता चला कि कर्ण मेरा भाई था. उनका जन्म सूर्य देव और मेरी मां कुंती के मिलन से हुआ था. उन्हें सारी दुनिया राधा का पुत्र मानती थी, लेकिन वास्तव में वह मेरी मां के सबसे बड़े पुत्र थे. मैंने अनजाने में उन्हें मार दिया. ये बात मुझे अंदर से खाये जा रही है. “न तो अर्जुन और ना ही भीम, ना ही दोनों छोटे भाई जानते थे कि कर्ण हमारे सबसे बड़ा भाई हैं.

    तो मैं दुनिया को जीत सकता था…
    हालांकि, कर्ण जानते थे कि हम उनके छोटे भाई हैं. उन्हें इस बात की जानकारी भगवान कृष्ण और मेरी मां ने दी थी. दुर्योधन के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों के कारण, वह हमारे पक्ष में नहीं आ सके. हालांकि, उन्होंने हमारी जान नहीं लेने के लिए वचन दिया था. अगर मेरे पास अर्जुन और कर्ण दोनों होते, तो मैं दुनिया को जीत सकता था.” ये कहते हुए युधिष्ठ‍िर भावुक हो गए और उनके आंसू बहने लगे. तभी उनकी मां कुंती आगे आईं और अपने पुत्र से बोलीं युधिष्ठिर इस तरह से शोक मत करो. मैंने पहले कर्ण को आपके साथ उसके रिश्ते के बारे में बताने की कोशिश की थी. सूर्य देव ने भी उससे बात की. हालांकि, अपनी घनिष्ठ मित्रता के कारण कर्ण ने दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ा.


    मां कुंती को दिया श्राप
    मां कुंती की सांत्वना की बातें सुनीं, तो युधिष्ठ‍िर अपने क्रोध और शोक को शांत नहीं कर सके. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी मां कुंती से कहा कि आपने इतनी बड़ी बात छिपाकर हमें अपने ज्येष्ठ भ्राता का हत्यारा बना दिया. युधिष्ठिर ने क्रोध में आकर अपनी मां कुंती के साथ समस्त नारी जाति को श्राप देते हुए कहा- मैं आज समस्त नारी जाति को श्राप देता हूं कि वे अब चाहकर भी कोई बात अपने ह्रदय में छिपाकर नहीं रख पायेंगी.

    नोट– उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है. हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है.

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