नई दिल्ली। पुरुष प्रधान (male dominated) समाज में, महिलाओं के समान अधिकार की बात कल तक दिवा स्वप्न ही थी.. हालांकि महिलाएं अपने दम-खम पर हर उस क्षेत्र तक पहुंची हैं, जहां कभी पुरुषों का वर्चस्व रहा है. दूसरे शब्दों में महिलाएं अपनी प्रतिभा के बल पर न केवल पुरुषों की बराबरी पर पहुंची, बल्कि कई क्षेत्रों में उन्हें भी पछाड़कर आगे निकली हैं. महिला समानता दिवस के अवसर पर आज बात करेंगे, इस दिवस विशेष के महत्व, इतिहास(Significance, History), एवं सेलिब्रेशन के तरीके तथा भारत (India) में इसकी स्थिति पर…
क्या है महिला समानता दिवस?
एक समय था, जब दुनिया भर में महिलाओं को दोयम दर्जे की नागरिक माना जाता था. इसे लेकर सबसे पहले आवाज उठाई अमेरिका और न्यूजीलैंड(America and New Zealand) की महिलाओं ने. 26 अगस्त 1920 में अमेरिकी संविधान में 19वें अमेंडमेंट के जरिये महिलाओं को पुरुषों के समान मतदान का अधिकार मिला. धीरे-धीरे विश्व भर की महिलाओं में यह जागरुकता आती गई, और आज दुनिया के अधिकांश देशों में 26 अगस्त को महिला समानता दिवस मनाया जाता है.
महिला समानता दिवस का इतिहास?
सर्वप्रथम साल 1853 में अमेरिका में महिला अधिकारों की लड़ाई शुरू हुई थी, जब विवाहित महिलाओं (married women) ने संपत्ति पर अपना अधिकार मांगने की पहल की थी. तब तक अमेरिका ही नहीं बल्कि अधिकांश पश्चिमी देशों में भी महिलाओं के साथ गुलाम सरीखा व्यवहार किया जाता था. धीरे-धीरे महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ी. साल 1890 में अमेरिका में ही नेशनल अमेरिकन वुमन सफरेज एसोसिएशन (National American Woman Suffrage Association) की नींव रखी गयी. महिलाओं द्वारा संचालित इस संगठन ने सर्वप्रथम महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देने के लिए पूरे अमेरिका में आंदोलन किया. लंबे संघर्ष के पश्चात अंततः साल 1920 में अमेरिका में महिलाओं को भी वोटिंग का अधिकार मिला. साल 1971 में महिलाओं के संगठनों ने 26 अगस्त को संयुक्त रूप से वुमेन इक्विलिटी डे के रूप में मनाया. धीरे-धीरे दुनिया के सभी देशों में महिला समानता दिवस मनाने का सिलसिला शुरू हुआ.
कैसे करते हैं सेलिब्रेशन?
इस दिन अमेरिका, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत (Australia, India) सहित दुनिया तमाम देशों में महिलाओं के अधिकारों पर तमाम तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. जगह-जगह इसी विषय पर डिबेट्स, कॉन्फ्रेंस, प्रतियोगिताएं, गेट-टू-गेदर आयोजित किये जाते हैं. महिला संगठन की पदाधिकारी आम महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती हैं, इसके लिए कैंपेन एवं मिशन चलाए जाते हैं. राजनीति के साथ-साथ रोजगार, पारिश्रमिक एवं शिक्षा आदि के क्षेत्रों में भी महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की पुरजोर वकालत की जाती है.
भारत में महिला समानता दिवस का औचित्य
ब्रिटिश हुकूमत (British rule) से भारत को आजादी दिलाने में महिलाओं की भागीदारी कम नहीं थी. यही वजह थी कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही महिलाओं को भी मतदान का समान अधिकार प्राप्त था. लेकिन पंचायतों एवं नगर निकायों में चुनाव लड़ने का कानूनी अधिकार 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से पूर्व एवं स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रयास से प्राप्त हो सका था. भारत के लिए हर्ष की बात है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी 50 फीसदी से ज्यादा है. भारतीय संविधान में महिलाओं के वोटिंग अधिकार का उल्लेख संविधान के आर्टिकल 326 में है. साल 1962 के चुनावों में महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 46.63% था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनावों में यह बढ़कर 67.2% हो गया.
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