वॉशिंगटन । अमेरिका (America)में मंगलवार को आम चुनाव (General Elections)है। अमेरिकी नागरिक राष्ट्रपति(American Civil President) और संसद सदस्यों (Members of Parliament) को अप्रत्यक्ष रूप से चुनने (indirectly choosing)के लिए मतदान में हिस्सा लेंगे। वास्तव में अमेरिकी लोग सीधे तौर पर वोट नहीं देते कि वे किसे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बनाना चाहते हैं। इसके बजाय वे एक समूह के सदस्य यानी इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोट करते हैं। बाद में इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्य ‘इलेक्टर’ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें कम वोट पाने वाला उम्मीदवार भी चुनाव जीत सकता है। अमेरिकी इतिहास में पांच राष्ट्रपति हुए हैं जिन्होंने जनता द्वारा दिए गए ‘पापुलर वोट’ जीते बिना राष्ट्रपति का चुनाव जीता है। ऐसा करने वाले सबसे हाल के राष्ट्रपति 2016 में डोनाल्ड ट्रंप थे।
अपनी स्थापना के बाद से ही अमेरिका राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज का इस्तेमाल करता रहा है। यह कैसे काम करता है, इसका इतिहास क्या है और राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में मतदाता क्या भूमिका निभाते हैं, इसके बारे में जानते हैं…
इलेक्टोरल कॉलेज क्या है और यह कैसे काम करता है?
इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनावों में एक अहम प्रक्रिया है। इलेक्टोरल कॉलेज के द्वारा अमेरिकी नागरिक अपने-अपने राज्य के निर्वाचकों (इलेक्टर्स) के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से अपने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। इसे हम भारत के रूप में ऐसे समझें कि लोगों ने अपनी विधानसभा या लोकसभा सीट पर विधायक या सांसद का चुनाव किया और बाद में यही विधायक या सांसद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुन लें। हालांकि, अमेरिकी परिप्रेक्ष्य में चुनावी प्रक्रिया काफी जटिल है।
इस तरह से अमेरिकी लोग राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनने के लिए इलेक्टोरल कॉलेज के लिए वोट करते हैं। बाद में यही इलेक्टर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों के लिए उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवार का समर्थन करते हैं। पूरे अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर हैं। इनमें से अमेरिका के सभी 50 राज्यों से आबादी के आधार पर 535 इलेक्टर और अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन, डीसी (डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया) से तीन अतिरिक्त निर्वाचक होते हैं।
डीसी से अलग इन 535 इलेक्टोरल वोट को समझें तो अमेरिकी संसद की कुल सीटों संख्या 535 है जिनमें से 435 हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (एचओआर) और 100 सीनेट के सदस्य हैं। भारत के उदाहरण से समझें तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्य निचले सदन लोकसभा के सांसद जबकि उच्च सदन सीनेट के सदस्य या सीनेटर राज्यसभा सांसद हुए। नियमों के मुताबिक, हर राज्य में कम से कम एक या अधिक से अधिक आबादी के अनुसार एचओआर होंगे, जबकि सीनेटर हर राज्य से दो ही होंगे। यानी चुनाव में हर राज्य से कम से कम तीन इलेक्टोरल वोट तो होंगे ही।
अमेरिका के संस्थापकों ने 1787 में संविधान में निर्वाचक मंडल की स्थापना की थी। राष्ट्रीय अभिलेखागार ने उल्लेख किया कि ‘निर्वाचक मंडल’ शब्द देश के ऐतिहासिक दस्तावेज में नहीं है बल्कि ‘निर्वाचक’ शब्द का जिक्र है। 1804 में 12वें अमेरिकी संशोधन के जरिए इलेक्टोरल कॉलेज के कुछ नियमों को बदल दिया गया। इसके तहत महत्वपूर्ण रूप से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए अलग-अलग इलेक्टोरल वोट डाले जाने की आवश्यकता खत्म कर दी गई।
चुनाव में वोटर्स से अलग इलेक्टर्स की भूमिका क्या होती है?
आम चुनाव से पहले अमेरिका के सभी राज्य इलेक्टर्स की सूची चुनते हैं। आम तौर पर नवंबर के पहले हफ्ते में मतदाता मतपत्र या अन्य माध्यमों से मतदान करते हैं। ये ‘लोकप्रिय वोट’ जीतने वाला उम्मीदवार यह तय करता है कि इलेक्टोरल कॉलेज में राष्ट्रपति के लिए कौन से इलेक्टर्स रिपब्लिकन, डेमोक्रेट या कोई तीसरी पार्टी के लिए वोट डालेंगे।
अधिकांश राज्यों में विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम लागू होता है। इसका मतलब है कि जो भी प्रत्याशी राज्य में सबसे अधिक वोट हासिल करता है, वह राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट जीत लेता है। इसे उदाहरण से ऐसे समझें कि 2020 में करीब चार करोड़ की आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में कुल 55 इलेक्टोरल वोट थे वहां कुल 1.71 करोड़ लोगों ने वोटिंग की थी। इनमें से 1.11 करोड़ वोट बाइडन के खाते में चले गए और 60 लाख वोट ट्रंप को मिले। अब कैलिफोर्निया जैसे अधिकतर राज्यों में विनर टेक्स आल सिस्टम लागू है तो अधिकतर वोट पाने वाले जो बाइडन सभी 55 इलेक्टोरल वोट ले गए।
हालांकि, चार इलेक्टर वाले मायने और पांच इलेक्टर वाले नेब्रास्का दो ऐसे राज्य हैं जो अपने इलेक्टोरल वोटों को इस आधार पर बांटते हैं कि हर उम्मीदवार को कितने लोकप्रिय वोट या जनता के वोट मिलते हैं।
राष्ट्रपति के लिए वोट डालने के लिए इलेक्टर्स दिसंबर के मध्य में अपने-अपने राज्यों में बैठक करते हैं। यह बैठक दिसंबर के दूसरे बुधवार के बाद पहले मंगलवार को होती है, जो इस साल 17 दिसंबर को पड़ रही है। यह भी दिलचस्प है कि अमेरिका में ऐसा कोई कानून नहीं है जो निर्वाचकों को उसी उम्मीदवार को वोट देने के लिए बाध्य करे जिसके प्रति वो वचनबद्ध हैं। इन्हें फेथफुल इलेक्टर कहा जाता है और माना जाता है ये उसी पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन करेंगे जिसके लिए उन्होंने शपथ ली है। इन निर्वाचकों का चयन पार्टियां ही करती हैं।
कैसे तय होता है कि किस राज्य को कितने इलेक्टोरल वोट मिलेंगे?
50 राज्यों और वाशिंगटन, डीसी में कुल 538 निर्वाचक हैं। प्रत्येक राज्य को उसके सांसदों की संख्या के आधार पर निर्वाचक आवंटित किए जाते हैं। सबसे कम आबादी वाले कई राज्यों जैसे अलास्का, डेलावेयर, नॉर्थ डकोटा, साउथ डकोटा, वर्मोंट और व्योमिंग में तीन-तीन निर्वाचक हैं, क्योंकि उनके पास सदन में एक प्रतिनिधि (निचले सदन के सदस्य) और दो सीनेटर (उच्च सदन के सदस्य) हैं। सबसे बड़े कैलिफोर्निया में 54 निर्वाचक वोट हैं। इसके अलावा वाशिंगटन, डीसी को भी तीन निर्वाचक आवंटित किए गए हैं।
क्या राज्यों में इलेक्टर की संख्या बढ़ती-घटती है?
2024 के चुनाव के लिए इलेक्टोरल वोट 2020 की जनगणना के आधार पर राज्यों को आवंटित किए गए हैं। हर राज्य को कम से कम तीन वोट मिले हैं जिसमें प्रत्येक सीनेटर के लिए एक और प्रत्येक कांग्रेस जिले (निर्वाचन क्षेत्र) के लिए एक वोट है। कोलंबिया जिले को भी तीन वोट मिलते हैं। इस तरह से कुल 538 इलेक्टोरल वोट हैं, जिनमें से राष्ट्रपति को चुनने के लिए 270 का बहुमत चाहिए।
जनसंख्या में बदलाव के कारण राज्यों को निर्वाचकों की संख्या में बढ़ोतरी या कमी हो सकती है और 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद से इसमें कई बदलाव हुए हैं। भारत में भी परिसीमन के जरिए सीटों की संख्या घटाई बढ़ाई जाती है। 2020 की जनगणना के बाद हुए बदलाव में टेक्सास को दो इलेक्टोरल वोट मिले और पांच राज्यों को एक-एक वोट मिला, जबकि सात राज्यों के एक-एक इलेक्टोरल वोट कम हो गए।
इलेक्टर्स का चयन कौन करता है और ये कौन होते हैं?
इलेक्टर्स को आम चुनाव से पहले उनके जुड़े राजनीतिक दल द्वारा चुना जाता है। इलेक्टर का एकमात्र काम नवंबर के चुनाव के बाद अपने राज्य में बैठक करना और राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए एक-एक वोट डालना होता है।
प्रत्येक पार्टी के निर्वाचकों की सूची में राज्य और स्थानीय स्तर पर निर्वाचित पदाधिकारी, पार्टी के नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और पार्टी से जुड़े अन्य लोग शामिल हो सकते हैं। राष्ट्रीय अभिलेखागार के मुताबिक, उन्हें आम तौर पर एक राजनीतिक पार्टी के प्रति उनकी सेवा और समर्पण को मान्यता देने के लिए चुना जाता है।
यदि इलेक्टर्स के वोट बराबर हो जाएं तो क्या होगा?
अगर किसी भी प्रत्याशी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो प्रतिनिधि सभा राष्ट्रपति का चुनाव ‘कंटिंजेंट इलेक्शन’ (आकस्मिक चुनाव) के जरिए करती है। इसमें प्रतिनिधि सभा के सदस्य तीन शीर्ष उम्मीदवारों के आधार पर राष्ट्रपति के लिए वोट करते हैं। लेकिन अमेरिका के पूरे इतिहास में ऐसा केवल तीन बार हुआ है और पिछली बार ऐसा हुए करीब 200 साल हो गए हैं।
यदि इलेक्टर्स राष्ट्रपति का चयन करते हैं तो लोग मतदान क्यों करते हैं?
अमेरिकी इतिहास में पांच राष्ट्रपति ऐसे रहे हैं जिन्हें लोकप्रिय वोट कम मिले और फिर भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं। ऐसा करने वाले सबसे हाल के राष्ट्रपति 2016 में डोनाल्ड ट्रंप थे। 2016 के चुनाव की बात करें तो हिलेरी क्लिंटन ने देश भर में ट्रंप की तुलना में 28 लाख अधिक वोट जीते थे। हालांकि, क्लिंटन अहम राज्यों में हार गईं, जिससे उन्हें इलेक्टोरल कॉलेज में ट्रंप के 306 के मुकाबले 232 इलेक्टोरल वोट मिले।
फिर 2020 चुनाव पर गौर करें तो इसमें ट्रंप जो बाइडन से लोकप्रिय वोट और इलेक्टोरल कॉलेज दोनों में हार गए। एक बार फिर इलेक्टोरल वोट 306 से 232 था, लेकिन इस बार डेमोक्रेट के पक्ष में। ट्रंप 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में फिर से रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हैं, जिनका उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से कड़ा मुकाबला है।
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