खरगोन (Khargon) । मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के खरगोन शहर में कुंदा नदी के तट पर स्थित सूर्य प्रधान नवग्रह मंदिर (Surya Pradhan Navagraha Temple) ज्योतिष के पूर्ण पैरामीटर और गणित ज्ञान के हिसाब से बना हुआ है. जिस प्रकार मानव जीवन सात दिन, 12 राशियों एवं 12 महीनों और नौ ग्रहों पर आधारित है. उसी प्रकार इस मंदिर की संरचना के साथ मंदिर का निर्माण होने से यह मंदिर भारत का एकमात्र नवग्रह मंदिर कहलाता है. जिसके दर्शन के लिए प्रदेश भर से लाखों भक्त आते है.
बता दें की सामान्य धरातल से 20 फिट नीचे गर्भ गृह में सूर्य देव नौ ग्रहों के साथ विराजमान है. मंदिर में प्रवेश के लिए 7 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है, जो सात दिन/वार का प्रतीक माना जाता है. गर्भगृह में जाने के लिए 12 सीढ़िया उतरनी पढ़ती है, जो 12 राशियों का प्रतीक है. इसी प्रकार गर्भगृह से बाहर निकलने के लिए दूसरे रास्ते से फिर 12 सीढ़िया चढ़नी पड़ती है, जो 12 महीनो का प्रतीक मानी जाती है. मंदिर पुजारी का कहना है, हमारा मानव जीवन भी इसी आधार पर चलता है, इसीलिए मंदिर संरचना और निर्माण किया है.
300 साल पुराना है इतिहास
मंदिर के पुजारी आचार्य लोकेश जागीरदार बताते है, उनका परिवार 6 पीढ़ियों से सेवा दे रहा है. उनके पूर्वज शेषाप्पा सुखावधानी देशांटन पर निकले थे, इसी दौरान उन्हें बगलामुखी माता का स्वप्न आया था, उनकी आज्ञा से ही यहां पर नवग्रह मंदिर की स्थापना की थी. यह मंदिर लगभग 300 साल से ज्यादा प्राचीन है. ज्योतिष ग्रंथो और शास्त्रों में जो उल्लेख मिलता है उसी आधार पर मंदिर बना है. मान्यता है की व्यक्ति के जीवन में जिस भी ग्रह संबंधित समस्या है, उस ग्रह से जुड़े दान की पोटली समर्पित करने से समस्या का निवारण होता है.
दक्षिण भारतीय शैली में है मूर्तियां और मंदिर
पुजारी आचार्य लोकेश जागीरदार बताते है, मंदिर में तीन शिखर है, जो त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक है. गृहशांति मंत्र के आधार पर मंदिर स्थापित है. सभी नौ ग्रह एवं अन्य मूर्तियां और मंदिर की संरचना दक्षिण भारतीय शैली में बनी हुई है. इसे नौ ग्रह मंदिर इसलिए कहते है क्योंकि सूर्य की मूर्ति यहां पर बीच में है और उसके अनुसार ही शनि की और उनके दाएं और गुरु और बाई ओर मंगल ग्रह की मूर्ति विराजमान है. सभी ग्रह अपने अपने वाहन, ग्रह मंडल, ग्रहयंत्र, ग्रहरत्न और अस्त्र शस्त्र के साथ स्थापित है.
गर्भगृह में प्रवेश करती है सूर्य किरण
सामान्य धरातल से लगभग 20 फीट नीचे मुख्य मंदिर है. रोजाना सुबह सूर्य रोशनी गर्भगृह में प्रवेश करती है. जबकि उत्तरायण काल के समाप्त होने एवं दक्षिणायन काल केप्रारंभ होने के मध्यकाल (माह जून-जुलाई) में प्रातः काल सूर्य किरणे सीधे सूर्य चक्र से सूर्य रथ होते हुए गमन करती है. नदी के किनारे सूर्य कुंड, सूर्य चक्र है, सरस्वती कुंड है.
मंदिर के नाम से लगता है मेला
मंदिर में नौ ग्रहों की अधिष्ठात्री मां बगलामुखी के स्थापित होने से पीताम्बरी ग्रहशांति पीठ भी कहलाता है. साथ ही ब्रह्मास्त्र एवं श्री सूर्यचक्र के रूप में ब्रह्माण्ड की दो महाशक्तियां भी यहां स्थापित है. सक्रांति पर बड़ा महोत्सव मनाया जाता है. मंदिर के नाम से ही देश का प्रसिद्ध नवग्रह मेला भी लगता है. जल्द ही यहां 25 करोड़ की लागत से नवग्रह लोक का निर्माण भी होना है.
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