गुम गया महापौर का चिलम और तंबाकू का डब्बा
अपने मित्र और सबके मित्र… पुष्यमित्र(Pushyamitra)। इन दिनों एक वीडियो को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हंै। ये वीडियो उनके किसी नजदीकी के विवाह समारोह (marriage ceremony) का हैं, जिसमें महापौर (Mayor) भार्गव नाचते दिख रहे हैं। गाना भी ऐसा है, जो शादियों में बजता रहता है। कहने लगे मोसे बब्बा, का गओ चिलम तंबाकू को डब्बा…। सोशल मीडिया पर जैसे ही ये वीडियो दौडऩे लगा, लोग कहने लगे शहर परेशान हो रहा है और महापौर चिलम-तंबाकू का डब्बा ढूंढने में लगे हैं तो कोई कह रहा है कि मधुमिलन चौराहे की उबड़-खाबड़ रोड पर लोग रोज डांस करते हुए धूल फांक रहे हंै, लेकिन उनकी चिंता उनको नहीं है? शहर का एक्यूआई हाई हो गया है, लेकिन इन्हें डब्बा नहीं मिल रहा है? कई तो ज्ञान दे रहे हैं कि पुष्यमित्र को ये नहीं करना चाहिए था। वे शहर के महापौर हैं प्रथम नागरिक। वे ही चिलम-तंबाकू जैसे गानों का प्रचार करेंगे तो फिर क्या होगा?
कांग्रेस को बीआरटीएस नापसंद हैं?
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश पदाधिकारी राजेश चौकसे ने कह दिया कि बीआरटीएस हटाने का मुख्यमंत्री का फैसला सही है। इससे जनता परेशान ही हो रही थी। हालांकि चौकसे के अलावा किसी ने बीआरटीएस हटाने को लेकर कुछ नहीं कहा, जबकि परेशान सब थे। वैसे गांधी भवन में भाजपा नेताओं के स्वागत-सत्कार कांड के बाद किसी में इतनी हिम्मत भी नहीं बची कि वे आगे होकर भाजपाइयों की तारीफ करें। वैसे कई कांग्रेसी भी खुश हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जुबान पर ऊंगली रख रखी है।
मामा की डोली कहां गायब हो गई?
एमआईसी मेंबर मनीष शर्मा, हां वही जो मामा के नाम से पहचाने-जाते हैं। बनाया गरीबी उन्मूलन प्रकोष्ठ का प्रभारी है, लेकिन रहते हमेशा चकाचक और प्रेसबन्द कपड़ों में। खैर एक सख्त प्रभारी होने के बावजूद मामा की डोली गायब हो गई। हुआ यूं कि सामूहिक विवाह के दौरान मामा ने दो डोलियां बुलवाई थीं और बताया कि इन डोलियों में बेटियां विदा होंगी, लेकिन जब विदाई का समय आया तो डोली वहां नहीं थी। मामा ने अधिकारियों से पूछा तो उनके पास भी कोई जवाब नहीं था। बाद में मालूम चला कि डोली वाले का टाइम हो गया था और उसको कहीं ओर भी जाना था। इसलिए नेतागीरी देख वह चुपचाप से खिसक लिया।
विजयपुर से ऑक्सीजन मिलेगी पटवारी को?
पटवारी खुश है कि उनके कार्यकाल में कम से कम एक विधानसभा की जीत तो उनके नाम हो गई है चाहे समीकरण जो भी रहे हों। ये भी तय है कि इस सीट ने और बुधनी में भाजपा के घटे वोटों ने पटवारी को ऑक्सीजन तो दे दी हैं, लेकिन ये ऑक्सीजन कब तक पटवारी को जिंदा रख पाएगी, इसका कोई भविष्य बता नहीं सकता, क्योंकि पटवारी के ही शुभचिंतक उन्हें घेरने में लगे रहते हैं और वे कोई ऐसा मौका नहीं छोडऩा चाहते, जिससे पटवारी को तकलीफ हो। वैसे ये ऑक्सीजन कब तक पटवारी को राहत देती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल तो वे कांग्रेसी नेता भी चुप हैं जो पटवारी को किसी न किसी कारण से घेरते रहते हैं।
नाम बड़े और दर्शन छोटे
भाजपा ने संगठन के अनुभवी नेताओं को बूथ चुनाव की जवाबदारी दी, लेकिन क्या मालूम था कि इनके नाम बड़े हैं और दर्शन छोटे हैं। जब समीक्षा की बारी आई तो मालूम चला कि अच्छे-अच्छे नेताओं ने काम नहीं किया और एक-दूसरे पर ढोलते रहे। इनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो पार्षद हैं या रह चुके हैं और कुछ को तो नगर अध्यक्ष की कुर्सी सपने में आ रही है, लेकिन संगठन के काम में फिसड्डी निकले। बड़े नेताओं ने कह दिया कि आप लोगों को इतना समय हो गया, फिर भी समय पर काम नहीं हो पा रहा है। ऐसे में हम क्या समझें। वैसे आपको बता दें कि इनमें से अधिकतर बड़े नेताओं की परिक्रमा में लगे रहते हैं तो फिर संगठन का काम कैसे हो? कुछ तो अपने नेताओं को दिखाने के लिए महाराष्ट्र चुनाव में चले गए थे, जबकि संगठन ने उन्हें सदस्यता अभियान की जवाबदारी दी थी।
कार्यालय मंत्री ने उतारी लू
कार्यालय मंत्री ऋषिसिंह खनूजा कार्यालय के मामले में जरा भी मुरव्वत नहीं करते हैं और अध्यक्ष का कहा तो उनके लिए पत्थर की लकीर हो जाता है। हुआ यूं कि कार्यालय की दूसरी मंजिल पर जहां कुछ खास लोगों को अपेक्षितों को ही जाने की इजाजत है। वहां एक महापौर प्रतिनिधि जाकर बैठ गए। कारण पूछा तो उन्होंने कोई कारण नहीं बताया। बस फिर क्या था वे तैश में आ गए और पहले निवेदन किया कि नीचे चले जाएं और वे नीचे नहीं गए तो फिर उन्होंने अपनी स्टाइल में चलता कर दिया।
ज्ञान देकर चले गए नेताजी को
श्याम नगर में चिंटू भिया ने एक मीटिंग रखी थी। भिया को क्या मालूम था कि इस मीटिंग में लोग उन्हें ही ज्ञान देके चले जाएंगे। मीटिंग में जरिया नामक एक व्यक्ति ने सीधे ही चिंटू से कह दिया कि मैं कबसे मेरे यहां नल की समस्या और ड्रेनेज के लिए आपसे कह रहा हूं, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। मैं सभापति यादव के पास गया तो दूसरे ही दिन मेरे यहां नल कनेक्शन हो गया और ड्रेनेज की समस्या भी निपट गई। काम करवाना कोई मुन्ना भैया से सीखे। फिर क्या था मीटिंग में बैठे कांग्रेसी एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे। अब बोले भी तो क्या बोले…आखिर जनता जर्नादन का मामला जो था।
कमलनाथ ने अपने जन्मदिन पर एक बार फिर राम का नाम लेकर बता दिया है कि कांग्रेस के मन में राम हैं। कुमार विश्वास मंच पर थे, जो आजकल आध्यात्मिक की ओर हैं। वैसे हैं हिन्दूवादी, लेकिन कमलनाथ ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वे न भाजपा के हैं और न कांग्रेस के, वे केवल राम के हैं। कभी राम को नकारने वाली उनकी ही पार्टी अच्छी तरह से समझ गई है। अच्छी तरह से समझ गई है कि प्रदेश में वापसी अब केवल यही नाम करवा सकता है। -संजीव मालवीय
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