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    जिंदगी की कीमत बस दो-तीन लाख

  • October 14, 2024

    जीवनभर रुतबा कमाया…खौफ जगाया… पैसा कमाया…शानो-शौकत का रुतबा दिखाया…सितारे जिसकी महफिल में जगमगाते थे…नेता जिसकी दहलीज पर सर झुकाते थे…सत्ता जिसके दाएं-बाएं रहती थी…सरकार जिसके इशारों पर चलती थी…जिसकी हिफाजत के लिए संगीनें तैनात रहती थीं… जो सिक्का उछालता था तो वो उसके इशारे पर ही नीचे आता था…जिसकी अकड़ कभी कम नहीं होती थी, उसे दो टके के गुंडों ने मार गिराया…केवल दो-तीन लाख रुपए के लिए जिसे ठिकाने लगाया…जिसे रुतबा, शानो-शौकत, खौफ कोई बचा नहीं पाया… जिसकी जिंदगी के अंत में अपना मानने और कहलाने वाले आए…लफ्जों के दर्द सुनाए और दो गज जमीन के नीचे दफन कर आए…बस यही रह गई है इंसान की कीमत…दरअसल जिंदगी ईश्वर देता है…जीवन इंसान तय करता है…हम कितने दुश्मन बनाते हैं…कितने अपने हो पाते हैं… कितने खैरख्वाह कहलाते हैं, यह हमारी नीति और नीयत तय करती है…गुनाह का सरपट रास्ता दौलत की मीनार बनाता है…इसी इमारत से सडक़ पर चलता आदमी तब बौना नजर आता है, जब आसानी से मिला पैसा अहंकार जगाता है…जीवन की सफलताएं उसे दुर्दांत बनाती हैं और दुर्दांत की बलि देने के लिए षड्यंत्र, साजिशें और हैवानियत हथियार बन जाती है…बाबा सिद्दीकी को जिसने मारा वो सडक़छाप गुंडा था…उसकी मंशा दो-तीन लाख की सुपारी नहीं, बल्कि किसी बड़े आदमी को मारकर बड़ा गुंडा बनने की थी… जिससे लोग खौफ खाएं और उसके मांगते ही धन बरसाने लग जाएं… इन गुंडों की अपनी दुनिया होती है…अपनी मंशाएं होती हैं… अपनी खुमारी होती है…वे अपनी दुनिया के बादशाह बनना चाहते हैं…वो दाऊद जैसे लोगों को अपना आईकान मानते हैं…वो लॉरेंस विश्नोई बनना चाहते हैं… लॉरेंस विश्नोई जैसे लोग भी कत्ल कम करते हैं, दूसरों के किए कत्ल अपना नाम करवाते हैं…वो जेल को अपनी फैक्ट्री बनाते हैं और वहां से गुंडों के रूप में मानव हथियार उठा-उठाकर लाते हैं… लॉरेंस की न तो बाबा सिद्दीकी से कोई दुश्मनी थी और न सलमान से… लेकिन दोनों को धमकाने और मारने से दूसरों में दहशत फैलाना और उनकी कमाई में हिस्सेदार बन जाना आसान होता है…गुंडों की इस पैदाइश और फैक्ट्री के सबसे बड़े पनाहगार तो नेता होते हैं या अधिकारी और खासतौर पर जेल का महकमा…जहां वो परिवार बनाते हैं…ताकत पाते हैं…इशारे पर दुनिया चलाते हैं…यही कारण है कि हम महफूज नहीं हो पाते हैं…इन चांडालों के गुलाम बनने पर मजबूर हो जाते हैं…हम योगी आदित्यनाथ के मारो और गाड़ो की नीति पर ऐतबार जताते हैं…वहां भी नेता एतराज करने चले आते हैं…हम कानून को मानते हैं, लेकिन कानून नहीं जानने वालों का एनकाउंटर जैसे कानून से खात्मा होने पर खुशी जताते हैं…फिर हम न जात देखते हैं न बिसात…फिर वो विकास दुबे का विनाश हो या अतीक के अतीत का अंत…

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