नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह अपने फैसले पर फिर से विचार नहीं करेगा क्योंकि इसमें कोई खामी नहीं है. फैसले कानून के मुताबिक हैं इसलिए इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप ठीक नहीं है. इसके अलावा कोर्ट ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार की मांग करने वाली समीक्षा याचिकाएं भी खारिज कर दीं.
जस्टिस बीआर गवई, सूर्यकांत, बीवी नागरत्ना, पीएस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता की पीठ ने यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से ये फैसला सुनाया था. दरअसल, पिछले साल जुलाई में याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में जनहित को ध्यान में रखते हुए खुली अदालत में सुनवाई की मांग की थी.
जस्टिस एसके कौल, एस रवींद्र भट, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस कोहली के सेवानिवृत्त होने के बाद नई बेंच का पुनर्गठन करना पड़ा. यह नया पीठ तब बना जब वर्तमान सीजेआई संजीव खन्ना ने 10 जुलाई को सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. अक्टूबर 2023 में उच्चतम न्यायालय ने समलैंगिक विवाह को वैध मानने से इनकार कर दिया था और इसे विधायिका का क्षेत्राधिकार बताया था.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल में याचिकाओं के जरिए समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाया जाए. अक्टूबर 2023 में पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि विवाह का कोई भी अधिकार बिना शर्त नहीं है और समलैंगिक जोड़े इसे मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं दाखिल की गई थीं. मगर शीर्ष अदालत ने सेम सेक्स मैरिज को वैध नहीं माना.
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