नई दिल्ली. महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति (Politics) के कई दिग्गज नेताओं के बेटे-बेटी (Son and Daughter) भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमाने जा रहे हैं, और करीब करीब हर सीट पर एक जैसी चुनौती मिल रही है – लेकिन सबसे दिलचस्प तो नारायण राणे (Narayan Rane) परिवार का मामला है, जिनके दोनो बेटे चुनाव मैदान में हैं. एक बीजेपी (BJP) के टिकट पर तो दूसरा एकनाथ शिंदे के उम्मीदवार के रूप में. दूसरी तरफ आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे की तरह बाकियों के कंधे पर भी अपनी विरासत बचाने की जिम्मेदारी आ पड़ी है. बॉलीवुडिया भाषा में कहें तो सियासी प्रोडक्शन हाउस के नौनिहाल यानी नेपो किड्स चुनाव मैदान में उतर आए हैं. चूंकि, इस बार दोनों ओर करीब छह पार्टियां अलग-अलग गठबंधन में हैं, इसलिए परिवारवाद के खिलाफ कोई नैतिकता का डंडा नहीं चला पा रहा है.
ठाकरे परिवार का संघर्ष और चुनौती
2019 में आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र के रसूखदार ठाकरे परिवार के पहले सदस्य थे, जिन्होंने चुनावी राजनीति का रुख किया था. तब तक न तो उनके पिता उद्धव ठाकरे और न ही चाचा राज ठाकरे ही ऐसा कर पाये थे. बालासाहेब ठाकरे के बारे में तो कहा जाता है कि उनको तो रिमोट पॉलिटिक्स में ही ज्यादा मजा आता था. उद्धव ठाकरे भी मुख्यमंत्री बनने के बाद ही विधान परिषद का चुनाव लड़े थे – और राज ठाकरे के चुनाव लड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि ऐसा हुआ तो बाल ठाकरे की विरासत पर दावेदारी कमजोर हो जाएगी.
लेकिन अब राज ठाकरे ने भी बेटे अमित ठाकरे को माहिम से चुनाव मैदान में उतार दिया है. और पिछली बार से अलग रुख अपनाते हुए वर्ली से आदित्य ठाकरे के खिलाफ संदीप देशपांडे को एमएनएस का टिकट दिया गया है – और ठीक वैसे ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी माहिम से महेश सावंत को अपना उम्मीदवार बनाया है.
देखा जाये तो वर्ली और माहिम की लड़ाई भी करीब करीब एक जैसी ही हो गई है, क्योंकि दोनो ही जगह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की तरफ से पेच फंसा दिया गया है. वर्ली से शिंदे की शिवसेना ने मिलिंद देवड़ा को टिकट दिया है, जो मुरली देवड़ा के बेटे हैं.
माहिम से पिछली बार सदा सरवरणकर शिवसेना-बीजेपी गठबंधन के टिकट पर चुनाव जीते थे, और बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को छोड़ एकनाथ शिंदे के साथ हो गये. वैसे तो मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशीष शेलार ने अमित ठाकरे को समर्थने देने की घोषणा की है. सुनने में आ रहा है कि सदा सरवरणकर को मनाने की कोशिश हो रही है, लेकिन वो नहीं मानते और चुनाव लड़ते ही हैं तो अमित ठाकरे के लिए चुनाव जीत पाना मुश्किल हो जाएगा.
सीधे सीधे ठाकरे परिवार से तो नहीं, लेकिन उद्धव ठाकरे की तरफ से वरुण सरदेसाई भी बांद्रा ईस्ट से चुनाव मैदान में उतर रहे हैं – और उनका मुकाबला बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी से होने जा रहा है. बाबा सिद्दीकी की हाल ही में गोली मारकर हत्या कर दी गई. जीशान सिद्दीकी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतकर 2019 में विधायक बने, लेकिन बदले हालात में वो डिप्टी सीएम अजित पवार की एनसीपी के उम्मीदवार बन चुके हैं.
अगर वरुण सरदेसाई को आप नहीं जानते तो बता दें कि वो आदित्य ठाकरे की मौसी के लड़के हैं. 31 साल के वरुण सरदेसाई पेशे से इंजीनियर हैं, और वो शिवसेना की युवा शाखा से जुड़े रहे हैं. बताते हैं कि अगस्त, 2021 में उद्धव ठाकरे पर तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की टिप्पणी के खिलाफ वरुण सरदेसाई प्रोटेस्ट में आगे देखे गये थे – और अप्रैल, 2022 में अमरावती सांसद नवनीत राणा के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया था.
पवार परिवार का पावर और संघर्ष
ठाकरे परिवार की तरह ही, पवार परिवार भी आपसी झगड़े का शिकार होकर नई नई चुनौतियों से जूझ रहा है. उद्धव ठाकरे भी देखते रह गये और उनके भतीजे अजित पवार एनसीपी के दो टुकड़े कर दिये – वो तो महाराष्ट्र के लोगों ने उद्धव ठाकरे की ही तरह शरद पवार के प्रति भी सहानुभूति दिखाई और मुश्कल घड़ी में बहुत कुछ बच गया.
अब शरद पवार ने युगेंद्र पवार को अजित पवार के खिलाफ बारामती विधानसभा क्षेत्र में उतार दिया है. अजित पवार को चुनौती दे रहे युगेंद्र पवार, असल में उनके छोटे भाई श्रीनिवास पवार के बेटे हैं जो अपने ही चाचा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
ये बारामती लोकसभा सीट पर अजित पवार की तरफ से पत्नी सुनेत्रा पवार को सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ाने के बदले जैसा ही है. सुप्रिया सुले से हारने के बाद सुनेत्रा पवार राज्यसभा की सांसद बन चुकी हैं.
शरद पवार की एनसीपी ने इस बार अनिल देशमुख की जगह उनके बेटे सलिल देशमुख को काटोल विधानसभा से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है. अनिल देशमुख, उद्धव ठाकरे सरकार में गृह मंत्री थे और इस्तीफा देकर उनको जेल जाना पड़ा था.
नारायण राणे के दोनो बेटे चुनाव मैदान में
ठाकरे और पवार परिवार की ही तरह महाराष्ट्र की राजनीति में कई और भी स्टार-किड्स चुनाव मैदान में उतर रहे हैं – और कुछेक को छोड़ दें तो ज्यादातर की राह काफी मुश्किल नजर आ रही है.
कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण के बीजेपी में जाते ही राज्यसभा भेज दिया गया. अब उनकी बेटी श्रीजया चव्हाण परिवार की तीसरी पीढ़ी की नेता हैं जो खानदानी सीट भोकर से चुनाव मैदान में उतरने जा रही हैं. अशोक चव्हाण से पहले उनके पिता शंकरराव चव्हाण भी भोकर से विधायक रहे हैं.
छगन भुजबल भी महाराष्ट्र की राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी हैं, लेकिन उनके भतीजे समीर भुजबल नांदगांव विधानसभा सीट से निर्दल नामांकन दाखिल किया है. असल में, महायुति में सीट बंटवारे के दौरान ये सीट एकनाथ शिंदे की शिवसेना के हिस्से में चली गई, जिससे नाराज होकर समीर भुजबल ने एनसीपी (अजित पवार) की मुंबई इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. शिंदे की शिवसेना ने मौजूदा विधायक सुहास कांडे को उम्मीदवार घोषित कर रखा है.
शिवसेना की तरफ से एक जमाने में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके नारायण राणे के तो दोनो बेटे महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से लगातार दो-दो हाथ करने वाले नितेश राणे को बीजेपी ने फिर से कणकवली विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया है, उनके बड़े बेटे नीलेश राणे को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो एकनाथ शिंदे की शिवसेना आगे आई, और कुडाल विधानसभा सीट से उम्मीदवार बना दिया है.
ये फेहरिस्त काफी लंबी है, जिसमें शामिल हैं – सुनील देशमुख (पंजाब राव देशमुख के बेटे), रोहित पाटिल (आरआर पाटिल के बेटे), सना मलिक (नवाब मलिक की बेटी), संभाजीराव पाटिल (शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर के पोते), डॉक्टर प्रतिभा पचपुते (बबनराव पचपुते की पत्नी), सुलभा गायकवाड़ (गनपत गायकवाड़ की पत्नी), शंकर जगताप (अश्विनी जगताप के देवर), विनोद शेलार (आशीष शेलार के बेटे).
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