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    प्रणब दा का यूं चले जाना

  • September 02, 2020

    – शहनाज़ हुसैन

    पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के आकस्मिक देहांत से पूरा राष्ट्र शोकाकुल है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन की जानकारी मिलने पर यकीन नहीं हुआ कि जिन प्रणब मुखर्जी जी से हमारे दशकों के पारिवारिक रिश्ते रहे, वे अब हमारे बीच में नहीं हैं। मैंने पिछले लगभग पांच दशक में प्रणब मुखर्जी जी को अत्यन्त नज़दीक से देखा है। मैंने उन्हें राजनेता के अलावा एक स्टेटसमैन, पारिवारिक मुखिया तथा मृदुभाषी, शान्तचित्त एवं अत्यन्त भावुक व्यक्तित्व का धनी पाया। उनकी धर्मपत्नी शुभ्रा मुखर्जी मेरी घनिष्ठ दोस्त रहीं तथा उनके बच्चों को मैंने बचपन से ही लगातार देखा है।

    मुझे याद है कि मैंने जब भी उनसे मिलने का समय मांगा वह हमेशा तत्पर और उत्सुक रहते थे। उनका मानना था कि महिला उद्यमियों को नई युवा उद्यमियों को सफलता का मंत्र देना चाहिए। प्रणब मुखर्जी में देशभक्ति का जज़्बा कूट-कूटकर भरा था। वे अपने पिता स्वतंत्रता सेनानी श्री कमादा किंकर मुखर्जी के सिद्धांतों व विचारों से पूरी तरह प्रभावित थे। इसलिए वह जीवन भर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए व्यक्तिगत हितों की परवाह न करते हुए देश सेवा में लगे रहे। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान, इतिहास तथा कानून की शिक्षा ग्रहण की थी, जिसकी वजह से उन्हें विभिन्न विषयों की गहन जानकारी थी तथा वह विभिन्न विषयों पर विस्तृत चर्चा कर सकते थे।

    मैं जब भी उनसे मिलती थी तो वे राजनीति में सकारात्मक भाव पैदा कर उसे समाजसेवा का मुख्य स्रोत विकसित करने पर बल देते थे। एक पत्रकार के नाते उनकी लेखनी में धार थी। वे पत्रकारिता के सकारात्मक पहलू तथा पत्रकारिता के माध्यम से समाज में चेतना, शिक्षा, जागरुकता लाने के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहे।

    प्रणब मुखर्जी व्यक्तिगत तथा पारिवारिक रिश्तों को पूरी अहमियत तथा सम्मान देते थे। जब वह पहली बार 1969 में राज्यसभा में पहुंचे थे, हमारा मिलना-जुलना रहता था। उनकी धर्मपत्नी शुभ्रा मुखर्जी बेहतरीन संगीतकार थीं तथा पारिवारिक माहौल में हम सभी संगीत का आनन्द उठाया करते थे। उन्होंने राजनीति में अनेक ऊंचाईयों को छुआ। वित्त, विदेश, रक्षा, उद्योग जैसे भारी-भरकम मंत्रालयों को सफलतापूर्वक चलाया लेकिन सरकारी व्यस्तताओं के बावजूद वह अपने पारिवारिक मित्रों, रिश्तेदारों, दोस्तों को कभी नहीं भूले। त्यौहारों- उत्सवों पर उन्हें हमेशा अपने घर बुलाते थे।

    वे समाज के गरीब-पिछड़े, अपंग तथा विशिष्ट नागरिकों के प्रति अपने दिल में खास जगह रखते थे। मैंने 2014 में उन्हें शहनाज़ हुसैन कम्पनी द्वारा दृष्टिहीन अपंग छात्रों को स्वाबलंबी बनाने के लिए शुरू किए गए मुफ्त प्रशिक्षण की जानकारी दी तो वे काफी खुश हुए। उत्साहित होकर उन्होंने अकादमी के सभी दृष्टिहीन अपंग विद्यार्थियों को राष्ट्रपति भवन आमंत्रित किया। यह उनका बड़प्पन था कि वे प्रत्येक छात्र से व्यक्तिगत रूप से मिले। उन्होंने छात्रों के साथ सेल्फी ली तथा सभी छात्रों को शानदार भोज पर आमंत्रित कर उनमें आत्मविश्वास, आत्मसम्मान तथा गरिमा की भावना का संचार किया। जब मैंने उनके अन्तिम दर्शन किए तो पाया कि उनका चेहरा संतोष से भरा था। वे एक समृद्ध तथा शक्तिशाली, आत्मनिर्भर भारत को छोड़कर जाते हुए संतुष्ट थे।

    (लेखिका जानी-मानी सौंदर्य विशेषज्ञा हैं।)

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