कौन कहता है कि भारत कभी सोने की चिडिय़ा था…हम तो कल भी सोने की चमक के उजाले में रहते थे और आज भी रहते हैं…फर्क सिर्फ इतना है कि अब हम सोने की चिडिय़ा नहीं, बल्कि सोने की कार हो गए हैं…यह और बात है कि तब यह सोना राजा-महाराजाओं के पास होता था, लेकिन अब तो हमारे तृतीय श्रेणी के कर्मचारी यानी आरक्षक के पास भी सोने से लदी कार और नोटों से भरा घर होता है… अब जब हमारे देश के आरक्षक इतने अरबपति हैं तो हमारे अधिकारी और नेता कितने बड़े कुबेर होंगे यह जानकर अंग्रेज भी अब हमारे यहां चाकरी करने लगेंगे…बात यह हमारे देश के एक राज्य के एक ही परिवहन विभाग की है…कुछ दिनों पहले इंदौर में ऐसे ही आरक्षक से पदोन्नत होते-होते परिवहन अधिकारी बने सुनील तिवारी के घर से मिली अरबों की सम्पत्ति ने इशारा कर ही दिया था कि इस विभाग की सड़ी सी नौकरी में भी कुबेर-सी कमाई है… हम उंगली पुलिस पर उठाते हैं…राजस्व अमले को चोर बताते हैं…तहसीलदार-पटवारी के घरों में झांकते हैं, लेकिन नकाब के पीछे के यह चोर पूरे प्रदेश को ही नहीं, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को भी चूना लगा रहे हैं…हर दिन बोरियों में भर-भरकर नोट ला रहे हैं… इसलिए परिवहन आयुक्त के पद के लिए करोड़ों के दाम लगाए जा रहे हैं…हकीकत यह है कि सरकारी खजाने की दौलत में डाका यह लोग डाल रहे हैं और इनकी चोरी की कीमत हम चुका रहे हैं… दरअसल प्रदेशभर के चेकपोस्टों की जांच का काम परिवहन विभाग के हवाले होता है…इन चेकपोस्टों से बिना जीएसटी चुकाए माल का परिवहन कराने के लिए अधिकारी करोड़ों रुपए की रिश्वत लेते हैं…एक राज्य से दूसरे राज्य में आने वाले इन वाहनों में हर महीने अरबों के माल की आपूर्ति शहर, गांव और कस्बों में की जाती है…इस टैक्स चोरी से सरकार को केवल जीएसटी का ही नुकसान नहीं होता, बल्कि आयकर से लेकर अन्य करों का राजस्व भी घटता है…जब सरकारों का राजस्व घटता है तो उसकी पूर्ति के लिए करों का दायरा बढ़ाया जाता है, यानी अप्रत्यक्ष रूप से परिवहन अधिकारियों की रिश्वत और व्यापारियों की चोरी का बोझ हमारे कांधों पर लादा जाता है… यह कहानी तो हुई कर चोरों की और रिश्वतखोरों की…लेकिन हकीकत यह भी है कि हम भले ही आजादी का जश्न मना रहे हैं…अंग्रेजों के देश छोडऩे पर इठला रहे हैं, लेकिन हकीकत तो यह है कि अब हमारे अपने ही हम पर हंटर चला रहे हैं, जिनमें एक ओर नेता तो दूसरी ओर अधिकारी बर्बर हुए जा रहे हैं… यह अधिकारी भी इतने शातिर हैं कि नेताओं को चुल्लूभर देते हैं और सारी दौलत खुद गटक जाते हैं… दो-चार करोड़ की रिश्वत देकर पद पर आ जाते हैं…फिर अरबों कमाकर कारोबारी बन जाते हैं…इन अधिकारियों में ही जब फूट डलती है… दुश्मनी बढ़ती है… ईष्र्या और जलन मुखरती है, तब राजफाश होते हैं और खजाने सरेआम होते हैं… लेकिन अधिकारियों के इन कारनामों पर एजेंसियों की नजर कभी-कभी पड़ती है… इससे पहले ईडी ने आईएएस अफसर अरविंद जोशी और उनकी पत्नी टीनू जोशी से 240 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति जब्त कर काला धन बरामद किया था…और अब एक आरक्षक से जहां करोड़ों मिले, वहीं सोने से लदी एक कार और नकदी का भंडार जंगल की लावारिस कार से मिला…यह चल रहा है और चलता रहेगा… प्रदेश के चलायमान, यानी परिवहन विभाग में अरबों की रिश्वत का यह परिवहन हम पर बोझ बनता रहेगा…जब आरक्षक से अरबों मिलेंगे तो अधिकारियों का खजाना तो अडानी-अंबानी की बराबरी करेगा…
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved