निगम में चाट चौपाटी लगाईए, हमारे शहर को तो मुक्त कराईए
कौन हैं यह लोग, कहां से आए… शहर को सराय बना रहे हैं… चाहे जहां चौपाटी लगा रहे हैं… खाली जमीन दिखते ही कब्जे जमा रहे हैं… आप अपनी सदाशयता में हमें मार रहे हैं… निगम कब्जा हटाने के बदले फ्लैट देता है… उसे लेकर यह दूसरी जगह कब्जा जमा लेते हैं… हटाने जाओ तो मारपीट पर उतर आते हैं… पहले एक सराफा चौपाटी हुआ करती थी, जो छोटा सराफा तक सीमित थी… फिर मोरसली गली तक बढ़ी और अब पूरा सराफा घेर लिया… बाजार में चलना दूभर है…रहवासी परेशान हैं… और कल को जानने वाले आज हैरान हैं, क्योंकि यह चौपाटी सराफा तक सीमित नहीं है… इसने मेघदूत घेर लिया… विजय नगर चौराहे की सडक़ को हथिया लिया… स्कीम 140 की सडक़ों पर डेरा जमा लिया… पहले दो-चार ठेले लगते हैं… फिर आठ-दस इकट्ठा होने लगते हैं और कुछ ही दिनों में सडक़ चाट-चौपाटी की शक्ल में बदल जाती है… फिर वहां नेतागीरी घुस जाती है… यह लोग ऐसे ही ठौर-ठिकाना नहीं पाते हैं…यह नेता को चंदा चुकाते हैं… निगम वालों को हफ्ता बांटते हैं…पुलिस वालों का पेट भरकर लाइसेंस पाते हैं और हम अपने शहर की बिगड़ती हालत देखकर मन मसोसकर रह जाते हैं…चंदा खाने वाले नेता दयालू बन जाते हैं… सडक़ को बाजार बनाने वाले इन दुकानदारों की रोजी की दुहाई देते नजर आते हैं…सराफा की चौपाटी को शहर की धरोहर कहकर पालने-पोसने लग जाते हैं…जहां चलने की जगह नहीं…जहां खाने का ठिकाना नहीं…जहां गंदगी पसरती है, उसे स्वच्छ शहर का खिताब दोगे… उसे शहर की धरोहर कहोगे… शहर में फैलती सडक़ों को घेरती स्वच्छता को चौपट करती इन चाट-चौपाटियों का विस्तार होते देख मुंह फेर जाना पूरे शहर के साथ गद्दारी-दगाबाजी-बदनीयती और बदनामी है… स्वच्छता का कर हम चुकाएं और गंदगी आप फैलाएं…सडक़ों को चौड़ा करने के लिए अपने घरों की कुर्बानी देकर आंसू हम बहाएं और उन्हीं सडक़ों पर बर्बादी का मजमा आप जमाएं… बिगड़ते यातायात पर संवाद के भाषण आप सुनाएं और उसे बिगाडऩे के आरोपी भी आप ही बन जाएं…इस शहर को नहीं चाहिए ऐसी खोखली सदाशयता…यदि आपके मन में दया है तो उसे सडक़ों पर मत पसारिए…उन्हें सही मुकाम दीजिए… सही जगह दीजिए, लेकिन हमारी सडक़ों को मुक्त कीजिए… हमारे घरों को महफूज रखिए… उन्हें गांधी हॉल ले जाएं… लालबाग में जमाएं और ज्यादा दया आए तो रात में खाली रहने वाले निगम परिसर को चाट-चौपाटी बनाएं, लेकिन शहर में गंदगी की स्वच्छता नहीं, बल्कि ईमानदारी की स्वच्छता भी दिखाएं…और यह जो सडक़ों पर भीख मांगने वाले… इस शहर को भिखारी दिखाने वाले…खुली जमीन दिखते ही कब्जा जमाने वाले…बिना पैसा चुकाए घर बसाने वाले…बिना कोई कर चुकाए शहंशाह बनने वाले…दया के नाम पर फ्लैट हथियाने वाले… हथियाए फ्लैट किराए पर चलाने वाले और फिर दूसरी जगह देखकर कब्जा जमाने वाले… कब्जा जमाकर फिर निगम की दया का इंतजार और नए फ्लैट के लिए दावा करने वाले धंधेबाजों से भी शहर को मुक्त कराएं…कल जिन लोगों ने खाली फ्लैटों पर कब्जा जमाया और हटाने गए लोगों पर हमला कर अपना जौहर दिखाया, उन्हें भी ठिकाने लगाइए… और इस शहर को शहर बनाए रखने के लिए जी-जान लगाने वाले… इस शहर में रहने की कीमत चुकाने वाले… इस शहर से प्यार करने वाले… अपनी जमीन अपना घर कुर्बान करने वाले और इस शहर की जनता के नेता बनने की भी कुछ तो जिम्मेदारी निभाएं…कुछ सख्त कदम उठाएं, ताकि यह शहर सराय बनने से बच पाए…
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