कोलहान। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ की झारखंड के तैनात 172वीं बटालियन ने नक्सलियों के कब्जे से शॉक ट्यूब डेटोनेटर का जखीरा बरामद किया है। इस तरह के डेटोनेटर की संख्या तीन हजार से ज्यादा बताई जा रही है। शॉक ट्यूब डेटोनेटर, इस तकनीक का इस्तेमाल बहुमंजिला बिल्डिंगों को उड़ाने के लिए किया जाता है। अब यही तकनीक नक्सली हासिल कर रहे हैं। इसके माध्यम से किया गया ब्लास्ट इतना शक्तिशाली होता है कि वह बड़ी मात्रा में कंक्रीट की मोटी परत को भी तोड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक, नक्सलियों के कब्जे से जो शॉक ट्यूब डेटोनेटर बरामद हुए हैं, उन पर तालेगांव जिला ‘वर्धा’ महाराष्ट्र का पता लिखा है।
ट्विन टॉवरों को गिराने में हुई थी ये तकनीक इस्तेमाल
सीआरपीएफ ने चाईबासा के कोलहान जंगलों से ‘शॉक ट्यूब डेटोनेटर’ बरामद किए हैं। अगस्त, 2022 में नोएडा स्थित सुपरटेक ट्विन टॉवर को गिराने के लिए ‘शॉक ट्यूब डेटोनेटर’ तकनीक इस्तेमाल में लाई गई थी। इस तकनीक के माध्यम से 40 मंजिल वाले ट्विन टावरों को धराशायी करने में सिर्फ 9 सेकंड का समय लगा था। शॉक ट्यूब एक प्लास्टिक ट्यूब होती है। इसके अंदर अंदर प्रतिक्रियाशील पाउडर की एक पतली परत लगी होती है। यह प्रतिक्रियाशील पाउडर आमतौर पर एचएमएक्स (एक उच्च विस्फोटक) और एल्यूमीनियम का मिश्रण होता है।
क्या है तकनीक?
शॉक ट्यूब से ‘शॉक वेव’ शेल में प्रवेश करती है। इसके बाद आइसोलेशन कप के माध्यम से वह फट जाती है। प्राथमिक चार्ज प्रज्वलित होने के बाद वह बेस चार्ज को विस्फोटित करता है। संपूर्ण विस्फोट आरंभ करने के लिए एक सतह कनेक्टर ब्लॉक का भी उपयोग किया जाता है। गैर-इलेक्ट्रिक डेटोनेटर, एक शॉक ट्यूब के अलावा और कुछ नहीं है। इसकी मदद विस्फोट शुरू करने के लिए ली जाती है। यह सुरक्षित होता है, इसमें टाइम को आगे पीछे किया जा सकता है। खदानों में चट्टानों को नष्ट करने के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।
डेटोनेटर को केवल एक क्लिप की मदद से तुरंत जोड़ा जा सकता है। यह प्रक्रिया इतनी आसान है कि गैर-इलेक्ट्रिक डेटोनेटर के उपयोग से, पूरे विस्फोट सर्किट का कनेक्शन समय, सामान्य समय के पांचवें हिस्से तक कम हो जाता है। साथ ही इसे बिना किसी प्रतिबंध के डर के लाइन-टू-लाइन विलंब किया जा सकता है। हालांकि शॉक ट्यूब बेहद मजबूत होती है, लेकिन इसे काटा या विभाजित किया जाता है, तो यह नमी के संपर्क में आ सकती है। इसके चलते मिसफायर की संभावना बन जाती है।
सीआरपीएफ की चोट से बौखलाए नक्सली
सूत्रों का कहना है, छत्तीसगढ़, झारखंड और दूसरे राज्यों के नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ की लगातार चोट से नक्सली बौखला गए हैं। वे अब, सुरक्षा बलों के साथ सीधी टकराहट से बच रहे हैं। अब उन्होंने आईईडी विस्फोट की मदद लेनी शुरू कर दी है। कई वर्ष पहले नक्सलियों द्वारा सड़क पर आईईडी लगाकर सुरक्षा बलों के वाहनों को निशाना बनाया जाता था। अब उस तरह की घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लग गया है। घने जंगल में सीआरपीएफ कमांडो को गुमराह करने के मकसद से नक्सली, अब कई तरह के तरीके इस्तेमाल कर रहे हैं। जंगल में किसी भी ऑपरेशन पर निकलते समय, सीआरपीएफ द्वारा विशेष नियमों का पालन किया जाता है। इसे ‘एसओपी’ भी कहते हैं। जैसे सुरक्षा बल के दस्ते को एक तय लाइन पर चलना होता है। वजह, जंगल में यह मालूम नहीं होता कि नक्सलियों ने कहां पर आईईडी लगा रखी है। वहां पर पेड़ पौधे, घास, सूखे पत्ते और झाड़ियां, इतनी सघन होती हैं कि उनमें कई बार आईईडी का अंदाजा नहीं मिलता है। नतीजा, कोई भी जवान आईईडी की चपेट में आ जाता है। अब नक्सलियों ने विस्फोट को सटीक बनाने के लिए शॉक ट्यूब का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसकी मदद से बड़े वाहन या भवन को उड़ाया जा सकता है।
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