img-fluid

अंतरराष्ट्रीय न्याय दिवस: मुकदमों का अंबार, न्याय के मंदिरों की समस्या अपार

July 17, 2023

– रमेश सर्राफ धमोरा

न्याय शब्द आशा और उम्मीद का प्रतीक है। जब किसी को लगता है कि उसकी बात अच्छी तरह सुनी जाएगी तथा उसे अपनी बात कहने का पूरा अवसर मिलेगा, तो वह न्याय है। न्याय शब्द एक नई रोशनी लेकर आता है। व्यक्ति के मन में एक उम्मीद जगाता है कि उसकी बात को पूरी तरह सुनकर ही निर्णय किया जाएगा। न्याय एक बहुत ही सम्मानित वह संतुष्टि प्रदान करने वाला शब्द है। आज भी जब दो व्यक्तियों के बीच में झगड़ा होता है तो दोनों एक दूसरे से कहते हैं कोर्ट में आ जाना फैसला हो जाएगा। यह लोगों की न्याय के प्रति आस्था का एक जीता जागता उदाहरण है।

न्याय पाना हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार होता है। कोई भी सरकार या व्यवस्था तभी सफल मानी जाती है, जिसमें हर व्यक्ति को निष्पक्ष रूप से न्याय मिल सकें। हमारे देश में तो सदियों से न्यायिक प्रणाली बहुत मजबूत रही है। रजवाड़ों के जमाने की न्याय प्रक्रिया के उदाहरण हम आज भी देते हैं। भारत के महान सम्राट राजा विक्रमादित्य की न्याय प्रणाली की आज भी हर जगह चर्चा और सराहना होती है।

हमारा देश जब स्वतंत्र हुआ तो संविधान के निर्माताओं ने न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से अलग रखा। न्याय के लिए सशक्त कानून बनाए गए। देश के लोगों को सही व निष्पक्ष न्याय मिल सके इसके लिए लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की स्थापना की गई । देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उदाहरण इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते आया फैसला है। उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पद के अयोग्य ठहरा दिया था। इससे अधिक न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मजबूती कहां देखने को मिल सकती है।


लोकतांत्रिक व्यवस्था में कानून के शासन के तहत अदालतों को न्याय एवं अन्याय में फर्क करने का अधिकार हासिल है। सही क्या है तथा गलत क्या है यह अदालत विधान की पुस्तकों के आधार पर तय करती हैं। आज लम्बित मामलों की संख्या को देखकर कहा जा सकता है, इंसाफ चाहने वाले पीड़ित लोगों की संख्या दिन-ब- दिन बढ़ती जा रही हैं। देश की विधायी व्यवस्था में न्याय की शीर्षस्थ संस्था न्यायालय हैं।

हर साल दुनिया भर के लोग 17 जुलाई को इस दिवस को मनाते हैं। यह दुनिया में आधुनिक न्यायालय प्रणालियों की स्थापना का भी स्मरण कराता है। यह दिन मौलिक मानवाधिकारों की वकालत और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्याय को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। 17 जुलाई 1998 को 120 से अधिक देश अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के लिए रोम संविधि नामक एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए एक साथ आए थे। यह न्यायालय सबसे गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों वाले व्यक्तियों का विश्लेषण करता है और उन पर आरोप लगाता है। इनमें नस्लीय हत्या, युद्ध अपराध, मानवता के अपराध और आक्रामकता के अपराध शामिल हो सकते हैं।

बहुत से लोगों से अक्सर यह सवाल सुनने को मिलता है कि न्याय कहां मिलता हैं। इस प्रश्न का होना भी यह बताता है कि आज भी आम आदमी को आसानी से न्याय नहीं मिल पा रहा हैं। न्याय के बारे में एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है कि न्याय में देरी करना न्याय को नकारना है और न्याय में जल्दबाजी करना न्याय को दफनाना है। यदि इस कहावत को हम भारतीय न्याय व्यवस्था के परिपेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि इसका पहला भाग पूर्णतः सत्य प्रतीत होता है। सीमित संख्या में हमारे जज और मजिस्ट्रेट मुकदमों के बोझ तले दबे प्रतीत होते हैं। एक मामूली विवाद कई सालों तक चलता है तथा पीड़ित को दशकों तक न्याय का इंतजार करना पड़ता है। यही वजह है कि लोगों में न्याय के प्रति गहरे असंतोष के भाव हैं।

बावजूद इसके आज भी न्यायपालिका परेशान लोगों के लिए सांत्वना का माध्यम है। निराश लोगों के लिए आशा की किरण है। गलत काम करने वाले लोगों के लिए भय का कारण है। यह बुद्धिमान और संवेदनशील लोगों के लिए मंदिर समान है। एक ऐसी शरण स्थली है जहां गरीब और अमीर दोनों को ही आसानी से न्याय मिलता है। न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठने वाले लोगों के लिए यह एक सम्मान और गर्व का स्थान होता है।

परन्तु आज के समय में गरीब लोगों की न्यायालय में पहुंच बहुत कम हो गई है। धूर्त लोग न्यायालयों का दुरुपयोग समाज के सम्मानित लोगों के विरुद्ध हथियार के रूप में करने लगे हैं। संविधान ने न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी अदालतोंं पर डाल दी है। वे ही न्याय के एकमात्र एवं सर्वोपरि स्रोत माने जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत के उच्च न्यायालय एक मुकदमे का निर्णय सुनाने में लगभग चार वर्ष से अधिक का समय लेते हैं। निचली अदालतोंं का हाल तो और खराब हैं। जिला कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चलने वाले एक मुकदमे का अंतिम फैसला 7 से 10 साल में आता है। लोगों का मानना है कि भारत की न्याय प्रणाली में अधिक समय खर्च होने का मूल कारण मामलों की अधिकता है। लेकिन असल समस्या है मामलों का शीघ्र निपटान न हो पाना। केवल यह कहकर कि हमारे न्यायिक तंत्र में खामियां बताकर उसे कोसते रहना उचित नहीं हैं। देश दे सभी सभी नागरिकों, जजों, वकीलों तथा हमारी सरकारों का यह दायित्व है कि न्याय व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए।

Share:

ODI: बांग्लादेश ने पहली बार भारतीय महिला क्रिकेट टीम को हराया

Mon Jul 17 , 2023
मीरपुर (Mirpur)। अंतरराष्ट्रीय महिला एकदिवसीय क्रिकेट के इतिहास (History of international women’s one day cricket) में पहली बार (first time) बांग्लादेश टीम (Bangladesh team) ने भारत (India) को हराया है। मीरपुर के शेर-ए-बांग्ला नेशनल स्टेडियम में बांग्लादेश और भारतीय महिला क्रिकेट टीम (Indian women’s cricket team) के बीच खेले गए पहले एकदिनी मुकाबले में मेजबान […]
सम्बंधित ख़बरें
खरी-खरी
शुक्रवार का राशिफल
मनोरंजन
अभी-अभी
Archives

©2024 Agnibaan , All Rights Reserved