कल तीसरी शपथ है…लेकिन इस शपथ में जश्न तो होगा, जोश नहीं… नाम तो होगा, पर गुमान नहीं…सफर तो होगा, लेकिन भरोसे के पंख नहीं… मतलबियों और मौकापरस्तों की बैसाखियों के सहारे हिमालय की चोटी-सा सफर तय करना…मन के हिलौरों के मुकाम तक पहुंचना…अपनी हिम्मत और गैरत के साथ आगे बढऩा…विरोधियों को अपनी हस्ती और हैसियत का एहतराम कराते रहना… सब कुछ धूप-छांव सा नजर आएगा…ठंडी की ठिठुरन और गर्मी की तपन से झुलसती सत्ता अब सिंहासन को काबू में रखने के पैंतरे आजमाएगी…मेंढकों को तौलने की जिम्मेदारी जांबाज मोदीजी के काम का खलल बनती नजर आएगी… लेकिन यदि इस हालत की समीक्षा यदि अभी नहीं की जाएगी तो हालत हालातों से समझौता करने लायक भी नहीं रह जाएगी…सारे के सारे भाजपाई परिणाम को लेकर हैरान हैं…लेकिन इस सवाल का जवाब बड़ा आसान है…दरअसल मंदिर पर महंगाई भारी पड़ गई…सारी तरक्की पेट की आग निगल गई…बेरोजगारी मुद्दा बनकर सत्ता से भिड़ गई…फिर मोदीजी की जुबां से भी जनता की तकरार हो गई… मुजरे से लेकर मुसलमान तक…टोंटी से लेकर मंगलसूत्र तक…मंदिर से लेकर मदरसों तक…कहीं दलितों को मुद्दा बनाया तो कहीं आरक्षण को हथियार बनाया…कहीं पाकिस्तान को विपक्षियों का मददगार बताया तो कहीं विरोधियों को जेल भिजवाया… यह लोगों को पसंद नहीं आया…न महंगाई पर ध्यान लगाया, न बेरोजगारों के आंसू पोंछने का जज्बा दिखाया…न गरीब किसान, खेतिहर मजदूर की पीड़ा पर मरहम लगाया… केवल चार सौ पार का नारा लगाया… इस नारे ने ऐसा ब_ा बिठाया कि कार्यकर्ता घर जाकर सो गए…नेता बेसुध हो गए…करेले पर नीम चढ़ा नड्डाजी ने कर दिया…संघ के बिना भाजपा की जीत का दम भर दिया… नाराज होकर संघी भी जिम्मेदारी से पीछे हट गए…इधर विपक्षी चार सौ पार के नारे को संविधान बदलने का षड्यंत्र बताकर जनता के बीच पहुंच गए…व्यापारी-कारोबारी इस कदर डर गए कि चार सौ पार जाएंगे तो फैसलों के वार सह नहीं पाएंगे…एक धमका हुआ देश…एक सहमा हुआ मतदाता जिस तरह अपनी भड़ास निकालता है, उसका परिणाम देश में नजर आया… अब चुनाव के बाद ध्यान के लिए जाने वाले मोदीजी इस हार पर ध्यान लगाएंगे तो समझ जाएंगे कि चुनाव गोदी मीडिया नहीं जिता सकता… चुनाव धर्म और जातियों पर नहीं लड़ा जा सकता…चुनाव जुमलों से नहीं जीता जा सकता…चुनाव में विरोधियों को कमजोर नहीं समझा जा सकता…जनता से जुड़े मुद्दों को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता…पहला चुनाव विकासवाद के नाम पर जीते तो दूसरा चुनाव राष्ट्रवाद के नाम पर…पहले चुनाव में गरीबों के जख्मों पर मरहम लगाए…महंगाई घटाने, गरीब, किसान और मजलूमों की पीड़ा दूर करने के इरादे पहुंचाए…दोनों ही वादे पूरे नहीं कर पाए…फिर भी दूसरा चुनाव बालाकोट, पुलवामा हमलों और सेना के हौसले के बूतों पर जीत गए…सोचा तीसरा चुनाव कश्मीर से लेकर राम मंदिर के नाम पर जीत लेंगे…धर्म और जातिवाद को उभारकर, लोगों की भावनाएं जगाकर भरपल्ले वोट लेंगे…लेकिन जनाब पेट को भूख लगती है…दाल, चावल, तेल से लेकर साग-सब्जी हर घर की जरूरत रहती है…दूध के बिना बच्चों की परवरिश और गैस की टंकी के बढ़ते दामों से घरों के चूल्हे की बुझती आग हर दिन सवाल करती है…पेट्रोल-डीजल के जानलेवा दाम से जिंदगी ठिठकती है…और इन जरूरतों से समझौता कर भी लें तो बेरोजगारी फांसी पर चढऩे के लिए मजबूर करती है…आप देश की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन पहुंचाने का दावा करते हैं, मगर घर में तो पांच कौड़ी नहीं रहती है…आप सरकारी खजाने भरने में लगे रहते हैं…हर दिन नया कर लादते हैं, लेकिन उसके बोझ से तो आम लोगों के दम निकलते हैं…फिर आप चार सौ पार का दावा करते हैं तो आपके अपने भी मन-मसोसकर रह जाते हैं…मंदिर पर जाकर खैरात की लाइन में तो लोग बैठ नहीं सकते हैं… इसीलिए इस बार लोग भाजपा को वोट देने नहीं निकले और मतदान का प्रतिशत गिरता रहा…जो गुस्से में थे…आक्रोशित थे…महंगाई से दबे-कुचले पड़े थे, उन्होंने जाकर वोट दिया…और आप अपने ही उस उत्तरप्रदेश में दम तोड़ गए, जहां आपने मंदिर बनाया…उसी बंगाल में बिखर गए, जहां आपने मुसलमान और मंगलसूत्र का मसला उठाया…उसी महाराष्ट्र में घट गए, जहां आपने सरकार को गिराया…यह वक्त हैरानी का नहीं समझने और सोचने का है…लोगों को रोटी चाहिए…लोगों को रोजगार चाहिए…लोगों को शांति चाहिए… जरा अपने आपको समझाइए…गोदी मीडिया और चापलूसों से पीछा छुड़ाइए…निंदक नियरे राखिए की युक्ति को अपनाइए…आलोचनाओं के आगे सिर झुकाइए…गठबंधन का मान बढ़ाइए… कोशिश कर विपक्ष को भी अपना बनाइए…
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