जिस कांग्रेस ने बरसों शहर का नेतृत्व सौंपा… जिस कांग्रेस ने मान-सम्मान और अधिकार दिया… जिस कांग्रेस ने सर पर बैठाया, उसी कांग्रेस को गिराने और मिटाने का जिन्होंने बीड़ा उठाया और प्रतिस्पर्धी दलों को गले लगाया, वे आज लौटकर आते हैं… अपनी उपेक्षा, प्रताडऩा के रागड़े गाते हैं और फिर कांग्रेस में लौटकर हीरो बनना चाहते हैं… तो न तो ऐसे लोगों को गले लगाने वाली कांग्रेस का चरित्र समझ में आता है और न लौटने वालों का… प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को सत्ता सौंपी थी… अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए एक नेता दल छोडक़र जाते हैं…साथ में साथी विधायकों का कुनबा भी ले जाते हैं… वो जाते तो जाते हैं… उनके भरोसे पलने वाले कई नेता बेवजह उनके साथ लटूम जाते हैं… वे न भाजपा की सोच को परखते हैं, न उनकी विचारधारा को समझते हैं… न उनकी तादाद से मुखातिब होते हैं न उनके नेताओं की निष्ठा, समर्पण और अनुशासन को परखते हैं… भाजपा में शिखर तक पहुंचने के लिए अनगिनत सीढिय़ां चढऩा पड़ती हैं… कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है… समर्पण और निष्ठा के तराजू में तुलना पड़ता है… राजनीति से पहले संगठन की पाठशाला में पढऩा पड़ता है… फिर भी मुश्किल से मुकाम मिलता है… इतनी भीड़ है भाजपा में कि कई समर्पित नेता आखिरी दम तक सत्ता हासिल नहीं कर पाते हैं…संगठन में भी नेतृत्व मिल जाए तो खुद को खुशनसीब मानते हैं… ऐसे में कोई दलबदलू आए और सम्मान की चाह रखने लग जाए तो कौन सहन कर पाए… फिर वह प्रमोद टंडन हों या उनके जैसे नेता उन्हें सोचना-समझना चाहिए था… जिन्होंने पार्टी के बजाय व्यक्ति पर अपनी राजनीतिक निष्ठा को दांव पर लगाया… जिस घर में पले-बढ़े उस घर को ठुकराया… दिए गए सम्मान का बदला इस तरह चूकाया कि पार्टी ऐसा जख्म पाया कि उसका दर्द जमाने को नजर आया…फिर दूसरों के घरों में परायों की तरह व्यवहार पाया तो बजाय अपनी नादानी और नासमझी समझने के उन पर तोहमतें लगा रहे हैं, जिन्होंने न तो अपने घर में बुलाया और न मेहमान बनाया… बिन बुलाए जाने पर अपमान ही तो पाएंगे… अपनों के साथ गद्दारी पर यही अंजाम ही तो पाएंगे… यह तो दस्तूर है, इसमें भाजपा का क्या कसूर है…
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