एक युग बीत जाता है इंसान को महान बनने में…एक पल भी नहीं लगता रुतबे को बिखरने में…जिन्हें कोई नहीं मार पाता…जिनकी तरफ कोई नजरें नहीं उठाता…जिनके आगे हर शख्स सर झुकाता…वो अपने ही घर में अपने ही वंश से…अपनी ही औलाद से हार जाता है…बाप की कमाई को बेटा संभाल नहीं पाता है… बाप की सोच को सलामत रखने के बजाय अपनी अकल चलाता है और खुद की ही नहीं, बल्कि बाप की कमाई दौलत-शोहरत…मान-प्रतिष्ठा…रुतबे-रुआब को भी ठिकाने लगा डालता है…कौन जानता था केशव ठाकरे को…एक अखबार में कार्टून बनाने वाला शख्स खुद नहीं जानता था कि वो मुंबई की मायानगरी ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र का बाला साहेब बन जाएगा…वक्त गुजरता गया…कदम बढ़ते गए…ठोकरें भी खाईं और ठुकाई भी की…कुछ लोगों को जोड़ा…कुछ को तोड़ा…उद्योगपतियों को निचोड़ा… मजदूरों को अपना बनाया…लात-घूंसों से राज चलाया… हुजूम देख हुकम सुनाने का इस कदर जज्बा पाया कि हर नेता ने सर झुकाया…पहले इंदिराजी ने ठाकरे को मोहरा बनाया…फिर मोहरे ने ऐसा सिक्का जमाया कि खुद को हिंदू सम्राट और अपने हुजूम को शिवसेना में बदल डाला…पहले जमीन बनाई…फिर बीज रोपा और अनुभवों की तल्लीनता से इस कदर सींचा कि पूरे महाराष्ट्र में उनकी सेना की छाप नजर आने लगी…उसूलों के पक्के…विचारों के दमदार और स्वार्थ से परे बाला साहेब सरकार तो बनाते थे, लेकिन खुद सत्ता में शामिल नहीं होते थे…वो मोहरों को बिठाते और उनको उंगलियों पर नचाते थे…वो हुंकार लगाते थे और हिंदुस्तान तो क्या पाकिस्तान तक लोग दहल जाते थे… वो दुबई में बैठे डॉन हों या मुंबई के शैतान, सबको ललकारते थे…लेकिन किसी की मजाल नहीं जो वार तो दूर उनके खिलाफ कुछ बोल तक पाते… लेकिन इतना रुबते-रुआब…हैसियत और हस्ती रखने वाला इंसान वही गलती कर बैठा, जो हर शख्स करता है…और करता नहीं, बल्कि करने के लिए मजबूर होता है… जमाना इसे घुटना पेट की तरफ मुडऩा कहता है… उन्होंने अपने निकम्मे, नाकारा अनुभव के कमजोर…सत्ता के लालची…स्वयं के विध्वंसक बेटे को अपनी सेना सौंप दी, जो अपनी ही सेना का संहार और पिता के उसूलों पर प्रहार करते हुए खुद सत्ता और सियासत के लालची मंसूबों को पूूरा करने के लिए गैर-हिंदूवादियों को गले लगा बैठा…और एक झटके में पिता की जीवनभर की कमाई…उसूलों से बनाई सेना को तार-तार कर सत्ता का सुल्तान बन बैठा…चंद दिनों में ही बागी सेना खुद अपने सुल्तान को रौंदकर हुकूमत में आ गई और दर-दर हुआ बेटा उद्धव अपने नाकारा बेटे आदित्य के साथ सूर्यास्त को स्वीकार हो गया…किसी ने सोचा नहीं था कि बाल ठाकरे के रुतबे का अंत उनके अपने बेटे के हाथों चंद दिनों में ही इस कदर होगा… उनका बेटा सत्ता से दूर रहने का विचार समझ नहीं सकेगा…उनका बेटा हिंदुत्व की धुरी पर टिकी पार्टी को गैर-हिंदूवादियों के कदमों में लाकर खड़ा कर देगा… उनका बेटा केवल ठाकरे बनकर रह जाएगा और बाला साहेब का नाम तक उसके विरोधी हथिया लेंगे… ऐसा तो पहली बार देखा और सुना कि डकैती हुई और लुटेरों ने दौलत पर नहीं शोहरत पर डाका डाला और बाप का नाम लूटकर ले गया…बेटा जो न कर सका वो लुटेरों ने कर दिखाया…इसलिए बड़े-बुजुर्ग कहते थे पूत कपूत तो क्यों धन संचय…और पूत सपूत तो क्यों धन संचय… अकल होगी तो कमा लेगा…नहीं होगी तो लुटा देगा… पिता ने जो बाग लगाया उसे खोदकर कब्र बना देगा और खुद को गाडक़र पिता की इज्जत को श्मशान बना देगा…. जो समझ जाए या संभल जाए वो अंबानी और जो न समझे वो अनाड़ी है…
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