नई दिल्ली (New Delhi)। हमारे देश में अनाजों की विविधता (Variety of Cereals) की संस्कृति रही है। चावल, गेहूं के अतिरिक्त ज्वार, बाजरा, कोदरा (रागी), कंगनी, चीणा, स्वांक ( झंगोरा) आदि कई अनाज उगाये जाते थे और उनके पोषक तत्वों (nutrients) के ज्ञान के आधार पर उनका मौसम या तासीर के हिसाब से भोजन में उपयोग किया जाता रहा है। दुर्भाग्य से हरित क्रांति (unfortunately green revolution) के दौर में न जाने कहां से यह भ्रमपूर्ण विचार फैल गया कि गेहूं-चावल ही उत्कृष्ट अन्न हैं और बाकी को मोटा अनाज कहकर हीन दृष्टि से देखा जाने लगा है।
यहां तक कि भारत के प्रस्ताव और 72 देशों के समर्थन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाजरा, ज्वार, कोदो समेत 8 मोटे अनाज को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है। इसका मतलब होता है छोटे बीज की वो फसलें, जो शुष्क और नम मिट्टी में उपजता हो मोटे अनाज के सेवन से डायबिटीज, कैल्शियम और पोटेशियम से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है।
मोटा अनाज के विस्तार से राजनीति पर भी इसका असर पड़ना तय माना जा रहा है. मोटा अनाज सरकार बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है।
राजस्थान मोटा अनाज के उत्पादन में सबसे पहले नंबर पर है। यहां बाजरे की सबसे अधिक खेती होती है। देश में बाजरे की कुल खेती का 11 फीसदी उत्पादन राजस्थान में होता है।
जौ एक साबुत अनाज है जो हेल्दी फाइबर और बीटा-ग्लूकन से भरपूर होता है, ये दोनों कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं. इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी होता है, इसलिए यह ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है।
वजन घटाने और पेट की चर्बी कम करने के लिए जौ का पानी आपकी सुबह के रूटीन में शामिल करने के लिए सबसे अच्छी चीजों में से एक है। यह पेय एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक के रूप में कार्य करता है जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है और आंत को साफ करता है।
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