नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) का अनुमान है कि हर साल 1 अरब से ज्यादा लोग (More than 1 billion people.) जानवरों से फैली बीमारी (Disease spread by animals) के कारण बीमार पड़ते हैं. इनमें से लाखों की मौत भी हो जाती है. WHO का ये भी दावा है कि बीते तीन दशकों में इंसानों में 30 तरह की नई बीमारियां (New diseases) आई हैं और इनमें से 75% जानवरों की वजह से फैली हैं। ये बीमारियां जानवरों को खाने या उन्हें बंदी बनाकर रखने से फैली हैं।
मसलन, सार्स 2003 में आया. 2009 में फैला मर्स और H1N1 स्वाइन फ्लू. इबोला भी बार-बार फैलता रहता है। जीका वायरस भी अभी कहीं गया नहीं. 2019 के आखिर में कोविड फैला. फिर अब मंकीपॉक्स फैल रहा है. ये कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो 15-20 सालों में दुनियाभर में फैलीं. इन सभी का सोर्स था जानवर।
मंकीपॉक्स का मंकी से क्या कनेक्शन?
1950 के दशक में पोलियो खतरनाक बीमारी बनती जा रही थी. वैज्ञानिक इसकी वैक्सीन पर काम कर रहे थे. वैक्सीन के ट्रायल के लिए बड़ी संख्या में बंदरों की जरूरत पड़ी. इन बंदरों को लैब में रखा गया। ऐसी ही एक लैब डेनमार्क के कोपेनहेगन में भी थी. 1958 में यहां लैब में रखे बंदरों में अजीब बीमारी देखी गई. इन बंदरों के शरीर पर चेचक जैसे दाने उभर आए थे. ये बंदर मलेशिया से कोपेनहेगन लाए गए थे. जब इन बंदरों की जांच की गई, तो इनमें एक नया वायरस निकला. इस वायरस को नाम दिया गया- मंकीपॉक्स।
1958 से 1968 के बीच एशिया से आने वाले सैकड़ों बंदरों में कई बार मंकीपॉक्स वायरस फैला. उस समय वैज्ञानिकों को लगा कि ये वायरस एशिया से ही फैल रहा है. लेकिन जब भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया और जापान के हजारों बंदरों का ब्लड टेस्ट किया गया, तो इनमें मंकीपॉक्स के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं मिली. इससे वैज्ञानिक हैरान रह गए, क्योंकि सालों बाद भी वो इस वायरस के ओरिजिन सोर्स का पता नहीं लगा पाए थे।
ऐसे पता चला सोर्स
इसकी गुत्थी 1970 में तब सुलझी, जब पहली बार एक इंसान इससे संक्रमित मिला. तब कॉन्गो में रहने वाले एक 9 महीने के बच्चे के शरीर पर दाने निकल आए थे. ये मामला इसलिए हैरान करने वाला था, क्योंकि 1968 में यहां से चेचक पूरी तरह से खत्म हो गया था. बाद में जब इस बच्चे के सैम्पल की जांच की गई, तो उसमें मंकीपॉक्स की पुष्टि हुई।
किसी इंसान के मंकीपॉक्स से संक्रमित होने का पहला मामला सामने आने के बाद कई अफ्रीकी देशों में जब बंदरों और गिलहरियों का टेस्ट किया गया तो उनमें मंकीपॉक्स के खिलाफ एंटीबॉडी मिली. इससे वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि मंकीपॉक्स का ओरिजिन सोर्स अफ्रीका ही है. अफ्रीका से ही एशियाई बंदरों में ये वायरस फैला होगा।
इसके बाद कॉन्गो के अलावा बेनिन, कैमरून, गेबन, लाइबेरिया, नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान समेत कई अफ्रीकी देशों में इंसानों में मंकीपॉक्स वायरस के कई मामले सामने आने लगे।
2003 में पहली बार ये वायरस अफ्रीका से बाहर फैला. तब अमेरिका में एक व्यक्ति इससे संक्रमित मिला था. उसमें ये संक्रमण पालतू कुत्ते से फैला था. ये कुत्ता अफ्रीकी देश घाना से लाया गया था. फिर सितंबर 2018 में इजरायल, मई 2019 में यूके, दिसंबर 2019 में सिंगापुर जैसे देशों में भी इसके मामले सामने आने लगे. भारत में भी मंकीपॉक्स से संक्रमित एक व्यक्ति की पुष्टि हो चुकी है. हालांकि, 50 साल बाद भी मंकीपॉक्स के संक्रमण और ट्रांसमिशन को लेकर कई स्टडी हो रही है।
तो क्या जानवरों से दूर रहना चाहिए?
WHO के मुताबिक, मंकीपॉक्स जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारी है. मंकीपॉक्स एक दुर्लभ बीमारी है, जो मंकीपॉक्स वायरस के संक्रमण से होती है. ये वायरस उसी वैरियोला वायरस फैमिली (Variola Virus) का हिस्सा है, जिससे चेचक होता है. मंकीपॉक्स के लक्षण चेचक जैसे ही होते हैं. बेहद कम मामलों में मंकीपॉक्स घातक साबित होता है।
कोरोनावायरस को लेकर माना गया कि ये चमगादड़ या पैंगोलिन से फैला होगा. इसी तरह मंकीपॉक्स को लेकर भी अभी तक ऐसे सबूत नहीं है. सिंगापुर की खाद्य एजेंसी का मानना है कि अफ्रीका से आने वाले मांस से मंकीपॉक्स फैल सकता है।
एक्सपर्ट का कहना है कि मंकीपॉक्स सुनकर बंदरों से घबराने की जरूरत नहीं है. क्योंकि अगर एक बार इंसानों से इंसानों में किसी वायरस का ट्रांसमिशन शुरू हो जाए, तो फिर जानवरों का रोल काफी कम हो जाता है।
क्या नॉन-वेज खाने से बढ़ रहा खतरा?
हालांकि, कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि कोविड आखिरी महामारी नहीं है. भविष्य में और भी महामारियों का सामना करना पड़ेगा. इसलिए हमें जानवरों में फैलने वाली बीमारियों को करीब से देखने की जरूरत है। साल 2013 में संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि लाइवस्टॉक हेल्थ हमारी ग्लोबल हेल्थ चेन की सबसे कमजोर कड़ी है।
एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में 90% से ज्यादा मांस फैक्ट्री फार्म से आता है. इन फार्म्स में जानवरों को ठूंस-ठूंसकर रखा जाता है. इससे वायरल बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इसका सीधा-सीधा जवाब नहीं है. हालांकि, जब कोविड फैला था, तब WHO ने एनिमल मार्केट जाने और जानवरों से बचने की चेतावनी दी थी. इसके बाद जानवरों के लिए काम करने वाली संस्था PETA ने कहा था कि वेजिटेरियन डाइट अपनाकर न सिर्फ हेल्दी रहा जा सकता है, बल्कि कई बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में अनुमानित 12 अरब एकड़ जमीन पर खेती और उससे जुड़े काम होते हैं. इसमें से भी 68% जमीन जानवरों के लिए इस्तेमाल होती है. अगर सभी लोग वेजिटेरियन हो जाएं तो 80% जमीन जानवरों और जंगलों के लिए इस्तेमाल हो सकेगी. बाकी बची 20% जमीन पर खेती हो सकेगी. क्योंकि अभी जितनी जमीन पर खेती होती है, उसके एक-तिहाई हिस्से पर मवेशियों के लिए चारा उगाया जाता है।
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