नई दिल्ली। भारत में एक तरफ कोविड-19 का वेरिएंट B.1.617.2 तेजी से फैल रहा है, उसमें हुआ एक म्यूटेशन साइंटिस्ट्स के लिए नया चैलेंज बनकर उभरा है। इसके स्पाइक प्रोटीन में हुआ T478K म्यूटेशन दुनियाभर की टॉप लैबोरेटरीज की नजर में है। संभव है कि B.1.617.2 जितनी संक्रामकता दिखा रहा है, उसके पीछे यही म्यूटेशन हो। चिंता की बात यह है कि T478K म्यूटेशन के बारे में अभी ज्यादा पता भी नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि यह म्यूटेशन B.1.617 के अन्य सब-टाइप्स में नहीं मिला है।
ताजा स्टडीज में पता चला है कि तेजी से फैल रहे मेक्सिकन वेरिएंट में भी T478K म्यूटेशन है। कहा जा रहा है कि इसी के चलते संक्रमण का स्तर बढ़ रहा है। INSACOG के वैज्ञानिक और इंस्टिट्यूट ऑफ जीनोमिक बायोलॉजी इन इंडिया के निदेशक अनुराग अग्रवाल ने इस बात की पुष्टि की है कि T478K पर नजर रखी जा रही है।
E482Q से टेंशन लेने की जरूरत नहीं: एक्सपर्ट
अग्रवाल ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा, “B.1.617.1 में E482Q म्यूटैशन न्यूट्रलाइजेशन रिडक्शन के लिए अहम था। P681R सेल इन्फ्यूजन को बढ़ाने में मदद करता है। हालांकि B.1.617.2 सब-लीनिएज में कोई E4842Q म्यूटेशन नहीं है, इसके बावजूद यह फैल रहा है। इसका मतलब यह है कि E482Q चिंताजनक नहीं है। एक नए म्यूटेशन T478K की मौजूदगी निश्चित रूप से है लेकिन अभी तक उसके बारे में सबकुछ नहीं पता है। जबतक वो नहीं होता, हम नहीं कह सकते हैं कि ऐसा P681R की वजह से हो रहा है या T478K की।”
अग्रवाल ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के रवींद्र गुप्ता के साथ मिलकर B.1.617 के ऐंटीबॉडीज के प्रति रेस्पांस पर एक शोध किया था। उस शोध में भी T478K का जिक्र है। गुप्ता ने पिछले हफ्ते ट्वीट किया था कि वह ब्रेकथ्रू इन्फेक्शंस के लिए T487K म्यूटेशंस को जिम्मेदार मानते हैं। अन्य वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सब-टाइप की संक्रामकता के पीछे स्पाइक प्रोटीन में T478K और L452R म्यूटेशंस का कॉम्बिनेशन है।
अक्टूबर 2020 के बाद सबसे ज्यादा यही म्यूटेशन फैला: स्टडी
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन ने भी ताजा स्टडी में T478K पर लिखा है कि शायद इसने ही मेक्सिको वेरिएंट B.1.1.222 को ‘सबसे ज्यादा संक्रामक’ बना दिया है। यूनिवर्सिटी ने ‘अमेरिका, सिंगापुर, स्पेन, भारत और कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित अन्य देशों में वैक्सीन से बचने वाले और तेजी से फैलने वाले म्यूटेशंस’ पर रिसर्च की थी। रिसर्च के अनुसार, वेरिएंट के सभी म्यूटेशंस में से, इसका ग्रोथ रेट अक्टूबर 2020 के बाद सबसे ज्यादा है।
स्टडी में कहा गया है कि ACE2 रिसेप्टर (मानव) सेल के साथ इसकी हाई बाइंडिंग फ्री एनर्जी इस बात का इशारा करती है कि T478K म्यूटेशन SARS-CoV-2 को और संक्रामक और घातक बना सकता है। हालांकि रिसर्च के अनुसार, T478K ऐंटीबॉडीज के लिए कोई मुसीबत खड़ी नहीं करता।
T478K पर नजर रखना है बेहद जरूरी
यूनिवर्सिटी ऑफ बोलोना की एक और स्टडी 10 लाख जीनोमिक सीक्वेंसेज की जांच के बाद कहती है कि 2021 के बाद से SARS-CoV-2 के सीक्वेंसेज में इसका प्रसार ‘चिंताजनक’ है। जर्नल ऑफ मेडिकल वायरलॉजी में छपी स्टडी के अनुसार, मेक्सिको के अलावा यह म्यूटेशन अमेरिका, जर्मनी, स्वीडन और स्विट्जरलैंड में पाया गया है। स्टडी में कहा गया है कोविड-19 को बेहतर ढंग से समझने के लिए T478K बेहद अहम है।
बाकी म्यूटेशंस से किस तरह अलग है?
B.1.617 के अबतक तीन अलग-अलग सब-टाइप्स पहचान में आए हैं। B.1.617.1 (भारत में भी दिखा मगर अब घट रहा है), B.1.617.2 और B.1.617.3। B.1.617.1 और B.1.617.3 में ज्यादातर आम स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशंस- L452R, E484Q, D614G, P681R हैं। L452R, E484Q और P681R म्यूटेशंस वायरस की कोशिकाओं में एंट्री में मदद करते हैं जबकि P681R म्यूटेशन फेफड़ों की संक्रमित कोशिकाओं की फ्यूजिंग के लिए जिम्मेदार बताया जाता है जिससे बीमारी गंभीर होती है। मगर B.1.167.2 अनोखा है क्योंकि इसमें E484Q नहीं है और T478K म्यूटेशन दिख रहा है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved