नई दिल्ली। काशी के इतिहास (History of Kashi) को लेकर ब्रिटिश विद्वान और लेखक जेम्स प्रिंसेप ने Benares Illustrated नाम की किताब लिखी। 19वीं सदी में लिखी गई इस किताब में काशी से जुड़ी छोटी से छोटी जानकारी को उसकी तह तक जाकर लिखा गया है. इस किताब में उन्होंने काशी का इतिहास, काशी की संस्कृति, (Culture of Kashi) काशी के घाट, काशी के लोग और सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मंदिर के बारे में जानकारी दी है।
बता दें कि ब्रिटिश वास्तुकार, योजनाकार और मानचित्रकार जेम्स प्रिंसेप ने औरंगजेब द्वारा निर्मित ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ को पुनर्स्थापित करने के विचार के साथ काशी शहर का व्यापक सर्वेक्षण किया। उन्होंने इस सर्वेक्षण को लिथोग्रफी के जरिए समझाया है, क्योंकि उस समय पेंटिंग और कलाकृतियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। लिथोग्राफी तकनीक की मदद से उन्होंने वहां मौजूद हर एक दृश्य को कागज पर उकेरा। इस किताब में जेम्स प्रिंसेप ने जानकारी को सबूतों के साथ पेश करने के लिए लिथोग्राफी तकनीक का इस्तेमाल किया।
लिथोग्राफी एक्सपर्ट बॉबी कोहली बताते हैं कि वैसे तो लिथोग्राफी कई तरह की होती है लेकिन जेम्स प्रिंसेप ने इस किताब में मेटल लिथोग्राफी का इस्तेमाल किया है। वे बताते हैं कि मेटल लिथोग्राफी में मेटल प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है. उसके बाद मेटल पर इनस्क्रिप्शन किया जाता है। वे कहते हैं कि जेम्स प्रिंसेप की किताब में मौजूद लिथोग्राफी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह 19वीं शताब्दी में की गई थी. और जिस तरह से इसकी बनावट है इससे यह साबित होता है कि लेखक ने इसे बहुत ही गहराई से अध्ययन करके ही बनाया है।
लिथो छपाई (Lithography) पत्थर पर चिकनी वस्तु से लेख लिखकर अथवा डिज़ाइन बनाकर, उसके द्वारा छाप उतारने की कला है। इसमें मुद्रणीय और अमुद्रणीय क्षेत्र एक ही तल पर होते हैं लेकिन डिज़ाइन चिकनी स्याही से बने होने के कारण और बाकी सतह नम रखी जाने के कारण, इंक रोलर, इंक को डिजाईन पर ही छाप पाता है।
जेम्स प्रिंसेप ने अपनी किताबों में ज्ञानवापी मस्जिद के बारे में बताया कि यह दृश्य दक्षिण-पश्चिम कोने से लिया गया उस समय जुम्मा मस्जिद या शहर की प्रमुख मस्जिद कहा जाता था। वह बताते हैं कि “हिंदू दीवारों” के ऊपर गुंबद और मीनार, औरंगजेब का काम है, और मकबरें भी एक ही तारीख के हैं।
वह लिखते हैं कि मुसलमानों (मुगलों) ने अपने धर्म की जीत के उत्साह में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए, किसी भी मूल संरचना की आधी दीवारों को नष्ट किए बिना एक विशाल मस्जिद में बदलने की ठानी और उन्होंने मूल संरचना को तोडते वक्त उसके आधार को नहीं मिटाया इसलिए अब भी इसकी मूल संरचना के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।
अपने काम के दौरान, प्रिंसेप ने पाया कि कि गुंबद का पहला हिस्सा हिंदू है इसे किसी भी प्रकार से प्रिंसिपल ऑफ आर्क (arch) की तर्ज पर नहीं बनाया गया था, लेकिन ऊपर की ओर एक चौकोर बहुभुज था जिसे तिरछा काटकर गोलाकार का रूप दिया गया। इसमें प्रिंसेप लिखते हैं कि विश्वेश्वरा के जिस मंदिर में शिवलिंग मौजूद था उसे महादेव या शिव के रूप में पूजा जाता था। इतिहासकार दिनेश कपूर बताते हैं कि शिवलिंग स्वर्ग से उस जगह पर गिरा था और पत्थर में तब्दील हो गया। जब मुसलमानों ने उसे तोड़ना चाहा तब वह आवेग में आकर उछला और जब नीचे गिरा वही व्यापी कुआं है। विश्वेश्वर मंदिर पर अपने अध्याय को सारांशित करते हुए, जेम्स प्रिंसेप लिखते हैं कि, “विश्वेश्वर, “ब्रह्मांड के भगवान,” शिव के सबसे ऊंचे खिताबों में से एक है; और “वेद और शास्त्र सभी इस बात की गवाही देते हैं कि विश्वेश्वर; देवों में सबसे पहले, काशी; शहरों में सबसे पहले, गंगा; नदियों में सबसे पहले, और पुण्य; गुणों में सबसे पहले है!”
जेम्स प्रिंसेप ने विश्वेश्वर मंदिर की योजना को लिथेग्रफी से नक्शे के जरिए समझाया है। योजना में, यह देखा जा सकता है कि गर्भगृह में शिवलिंग (महादेव) रखा गया है । मंदिर में केंद्र से चारों तरफ से प्रवेश होता था. उत्तर-दक्षिण में आगंतुकों के लिए दो शिव मंडप थे। पूर्व-पश्चिम अक्ष में केंद्र में ‘द्वारपालों’ से घिरे प्रवेश मंडप थे। कोनों पर और चार कोनों में तारकेश्वर, मनकेश्वर, भैरों (भैरों) गणेश विराजमान थे।
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