नई दिल्ली: हरियाणा (Haryana) में कांग्रेस की हार की जांच कर रही कमेटी का मानना है कि टिकट के बहुत अधिक दावेदार, पार्टी के अंदर चल रही गुटों के बीच साजिश, राज्य में बड़े नेताओं की रैलियों के बारे में आम जनता में जानकारी का अभाव और भाजपा (BJP) की जाट विरोधी वोटों के ध्रुवीकरण में सफलता ही पार्टी की हार के असली कारण रहे. कमेटी राज्य में हारे हुए कैंडिडेट्स से बातचीत करके अगर कुछ ऐसे ही निष्कर्षों पर पहुंची है तो ये सतही निष्कर्ष ही साबित होंगे.
क्या सिर्फ यही कारण थे, जिसके चलते कांग्रेस हरियाणा में बीजेपी के प्रति नाराजगी का लाभ नहीं उठा पायी.कमेटी को जो कारण बताए जा रहे हैं यह जरूरी कारणों को दरकिनार करने की एक साजिश की तरह है. कांग्रेस हो या कोई भी राजनीतिक दल आजकल सत्य सामने नहीं लाया जाता है. सच सामने लाने वाले को भी अपनी गर्दन प्यारी होती है. जांच करने वाला और गवाही देने वाला दोनों ही जानते हैं कि ऐसे निष्कर्षों का कुछ होना नहीं है. अब तक जितनी जांच रिपोर्ट्स बनीं सभी कहीं कबाड़े में धूल फांक रही हैं. पार्टी में हाईकमान से पंगा लेने की किसी में नहीं होती है. आखिर जब रहना इसी दल में है तो जल में रहकर मगरमच्छ से बैर करने की जरूरत ही क्या है?
हार के कारणों की जांच कर रही दो सदस्यीय समिति, जिसमें छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के विधायक हरीश चौधरी शामिल हैं. 10 अक्टूबर को बनाई गई थी. इसका उद्देश्य स्थानीय कांग्रेस नेताओं से हरियाणा में 10 साल बाद भी सत्ता वापस हासिल न कर सकने के कारणों पर प्रतिक्रिया प्राप्त करना और हाई कमान को रिपोर्ट सौंपना था. पार्टी को उम्मीद थी कि वह भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देगी, लेकिन वह 90 में से केवल 37 विधानसभा सीटें ही जीत सकी. कमेटी के समक्ष कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनाव में हारने के जिन कारणों को गिनाया वो हैरान करने वाले थे.
एक उम्मीदवार के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि एक कांग्रेस उम्मीदवार जो चुनाव हार गया था उसने बताया कि दीपेंद्र सिंह हुड्डा गुट के लोग खुलेआम मेरे खिलाफ प्रचार कर रहे थे. लोगों से कह रहे थे कि मुझे नहीं जीतना चाहिए. मैंने समिति को यह भी बताया कि भाजपा को जाट विरोधी ध्रुवीकरण से लाभ हुआ. उन्होंने हरियाणा में जाटों के खिलाफ एक ऐसी कहानी फैलाई जैसे वे अन्य हिस्सों में मुसलमानों के खिलाफ करते हैं, जैसे अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो सब कुछ जाटों के हाथ में चला जाएगा. मैं भी इस वजह से प्रभावित हुआ क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राहुल गांधी के साथ मंच पर होते हुए भी मेरे लिए वोट नहीं मांगे. जाटों में मेरे खिलाफ यह धारणा बन गई थी कि हुड्डा मेरा समर्थन नहीं कर रहे हैं. इसलिए मैंने जाटों के वोट भी खो दिए और अन्य समुदायों ने मुझे भाजपा द्वारा फैलाए गए नैरेटिव के कारण वोट नहीं दिया.
एक अन्य उम्मीदवार जो चुनाव हार गया था उसने बताया कि राज्य में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के कार्यक्रमों के बारे में किसी को पता नहीं होता था. इन नेताओं के आगमन के बारे में आम लोगों तक बात ही नहीं पहुंच पाती थी. एक अन्य कांग्रेस उम्मीदवार, जिसने चुनाव में हार का सामना किया ने हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) पर हार का ठीकरा फोड़ दिया. उसका कहना था कि मैंने बघेल जी और चौधरी जी को बताया कि चुनाव के दौरान पीसीसी के लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा था. वे आम लोगों को सुलभ नहीं थे, यहां तक कि फोन पर भी बात करना मुश्किल था. एआईसीसी के नेता राज्य नेतृत्व की तुलना में अधिक सुलभ थे.
अनिता यादव, जो अटेली से भाजपा की आरती सिंह राव से हार गईं, ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) और स्थानीय प्रशासन के दबाव को हार का कारण बताती हैं. ईवीएम में 99% बैटरी कैसे हो सकती है जब उन्हें कई दिनों तक इस्तेमाल किया गया हो? चुनाव प्रचार के दौरान हमारे समर्थकों पर स्थानीय प्रशासन द्वारा भी दबाव डाला गया था.
दरअसल जो भी बातें सामने आ रही हैं अगर कांग्रेस इन बातों के आधार पर विश्लेषण करेंगी तो उसे कभी भी जीत हासिल नहीं हो सकेगी. उपरोक्त सभी बातें सभी पार्टियों में होती हैं. बीजेपी में भी आपसी गुटबाजी कम नहीं है. बीजेपी में तो सीएम तक को गुटबाजी के चलते पसंदीदा सीट नहीं मिल सकी. वहां भी एक सीट पर टिकट के लिए मारामारी कांग्रेस से कम नहीं था. कांग्रेस ने भी बीजेपी के खिलाफ दलितों के वोट ध्रुवीकरण के लिए काफी कहांनियां गढ़ीं थीं. इसमें कोई नई बात नहीं थी.
दरअसल असल कारणों पर कोई बोलना नहीं चाहता है. प्रदेश में एक दशक से जिला स्तर की और बूथ स्तर की कांग्रेस कमेटियां नदारद रहीं. किसी शहर में एक बहुत बड़ा शो रूम खोल दिया जाए. माल भी भर दिया. गोदामों में जब तक अच्छे एजेंट नहीं होंगे, न शोरूम तक कोई पहुंचेगा और न ही सामान बिकेगा. कांग्रेस के साथ भी यही हाल हुआ. शोरूम तो खुल गए पर घर घर पहुंचने वाले एजेंट गायब थे. दूसरे अगर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ठीक से काम नहीं कर रही थी. हुड्डा अपनी चला रहे थे तो हाईकमान क्या कर रहा था? क्या केंद्रीय नेतृत्व में कोई राहुल गांधी का नाम भी लेगा? या राहुल गांधी को बचाने के लिए हुड्डा पिता-पुत्र की बलि दे दी जाएगी. हुड्डा पिता-पुत्र नहीं होते कांग्रेस को 37 सीट भी नहीं मिलती.
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