नई दिल्ली। भारतीय वायुसेना के जंगी विमानों पर एक बार फिर राजनीति शुरू हो गई है. इसी महीने आधिकारिक तौर पर वायुसेना का हिस्सा बने राफेल पर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर बड़े आरोप लगाए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कैग की रिपोर्ट के हवाले से केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘सबसे बड़ी डिफेंस डील की क्रोनोलॉजी, अब खुलकर सामने आ रही है। CAG की नई रिपोर्ट स्वीकार करती है कि ‘टेक्नोलॉजी ट्रांसफर’ को राफेल ऑफसेट में हटा दिया गया है। पहला ‘मेक इन इंडिया’ ‘मेक इन फ्रांस’ बन गया। अब, डीआरडीओ को तकनीकी हस्तांतरण नहीं होगा. लेकिन मोदी जी कहते रहेंगे सब चंगा सीं।’
कैग की बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि लड़ाकू विमान बनाने वाली फ्रांस की कंपनी दसॉ एविएशन और यूरोप की मिसाइल निर्माता कंपनी एमबीडीए ने 36 राफेल जेट की खरीद से संबंधित सौदे के हिस्से के रूप में भारत को उच्च प्रौद्योगिकी की पेशकश के अपने ऑफसेट दायित्वों को अभी तक पूरा नहीं किया है। दसॉ एविएशन राफेल जेट की विनिर्माता कंपनी है, जबकि एमबीडीए ने विमान के लिए मिसाइल प्रणाली की आपूर्ति की है।
Chronology of biggest Defense deal continues to unfold.
The new CAG report admits that ‘technology transfer’ shelved in #Rafale offsets.
1st, ‘Make in India’ became ‘Make in France’.
Now, DRDO dumped for tech transfer.
Modi ji will say-सब चंगा सी !https://t.co/5vUkRsuIa7
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) September 24, 2020
कैग की संसद में पेश रिपोर्ट में भारत की ऑफसेट नीति के प्रभाव की धुंधली तस्वीर पेश की गई है। कैग ने कहा कि उसे विदेशी विक्रेताओं द्वारा भारतीय उद्योगों को उच्च प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करने का एक भी मामला नहीं मिला है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रक्षा क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पाने वाले 63 क्षेत्रों में से 62वें स्थान पर रहा है।
तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की- CAG
कैग ने कहा है, ‘36 मध्यम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) से संबंधित ऑफसेट अनुबंध में विक्रेताओं ‘मैसर्स दसॉ एविएशन और मैसर्स एमबीडीए ने शुरुआत में डीआरडीओ को उच्च प्रौद्योगिकी प्रदान करके अपने ऑफसेट दायित्व के 30 प्रतिशत का निर्वहन करने का प्रस्ताव किया था।’ कैग द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, ‘डीआरडीओ लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन (कावेरी) के स्वदेशी विकास में तकनीकी सहायता प्राप्त करना चाहता है। अब तक विक्रेताओं ने इस तकनीक के हस्तांतरण की पुष्टि नहीं की है।’ पांच राफेल जेट की पहली खेप 29 जुलाई को भारत पहुंच चुकी है। यह आपूर्ति 36 विमानों की खरीद के लिए 59,000 करोड़ रुपये के सौदे के लिए एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर होने के करीब चार साल बाद प्राप्त हुई।
भारत की ऑफसेट नीति के तहत, विदेशी रक्षा उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को कुल खरीद अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत भारत में खर्च करना होता है. वह भारत में कल-पुर्जों की खरीद अथवा शोध व विकास केंद्र स्थापित कर यह खर्च कर सकते हैं। ऑफसेट मानदंड 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी पूंजीगत आयात सौदे पर लागू होते हैं। विक्रेता कंपनी इस आफसेट दायित्व को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, भारतीय कंपनी को निशुल्क प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण कर या फिर भारत में बने उत्पादों को खरीद कर पूरा कर सकती है। ऑफसेट यानी सौदे की एक निश्चित राशि की भरपाई अथवा समायोजन भारत में ही किया जाएगा।
‘विक्रेता अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को निभाने में विफल रहे’
लेखा परीक्षक ने कहा कि हालांकि, विक्रेता अपनी ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को निभाने में विफल रहे, लेकिन उन्हें दंडित करने का कोई प्रभावी उपाय नहीं है। कैग ने कहा, ‘यदि विक्रेता द्वारा ऑफसेट दायित्वों को पूरा नहीं किया जाए, विशेष रूप से जब मुख्य खरीद की अनुबंध अवधि समाप्त हो जाती है, तो ऐसे में विक्रेता को सीधा लाभ होता है।’
कैग ने कहा कि चूंकि ऑफसेट नीति के वांछित परिणाम नहीं मिले हैं, इसलिए रक्षा मंत्रालय को नीति व इसके कार्यान्वयन की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मंत्रालय को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ-साथ भारतीय उद्योग को ऑफसेट का लाभ उठाने से रोकने वाली बाधाओं की पहचान करने तथा इन बाधाओं को दूर करने के लिए समाधान खोजने की जरूरत है।
कैग ने कहा कि 2005 से मार्च 2018 तक विदेशी विक्रेताओं के साथ कुल 66,427 करोड़ रुपये के 48 ऑफसेट अनुबंधों पर हस्ताक्षर किये गये थे। इनमें से दिसंबर 2018 तक विक्रेताओं द्वारा 19,223 करोड़ रुपये के ऑफसेट दायित्वों का निर्वहन किया जाना चाहिए था, लेकिन उनके द्वारा दी गयी राशि केवल 11,396 करोड़ रुपये है, जो कि प्रतिबद्धता का केवल 59 प्रतिशत है।
55,000 करोड़ रुपये की शेष ऑफसेट प्रतिबद्धताएं 2024 तक पूरी होंगी
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसके अलावा, विक्रेताओं द्वारा प्रस्तुत किये गये इन ऑफसेट दावों में से केवल 48 प्रतिशत (5,457 करोड़ रुपये) ही मंत्रालय के द्वारा स्वीकार किए गये। बाकी को मोटे तौर पर खारिज कर दिया गया क्योंकि वे अनुबंध की शर्तों और रक्षा खरीद प्रक्रिया के अनुरूप नहीं थे।’ कैग ने कहा कि लगभग 55,000 करोड़ रुपये की शेष ऑफसेट प्रतिबद्धताएं 2024 तक पूरी होने वाली हैं। उसने कहा, ‘विदेशी विक्रेताओं ने लगभग 1,300 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की दर से ऑफसेट प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। इस स्थिति को देखते हुए, विक्रेताओं के द्वारा अगले छह वर्ष में 55 हजार करोड़ रुपये की प्रतिबद्धता को पूरा कर पाना एक बड़ी चुनौती है।’
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