नई दिल्ली। भारत (India) में कैंसर (cancer) जैसी घातक बीमारी की जांच में भी लैंगिक भेदभाव हो रहा है, यह दावा नई लैंसेट ऑन्कोलॉजी रिपोर्ट (oncology report) में किया गया है। इसके अनुसार लड़कों में कैंसर के ज्यादा मामले मिल रहे हैं क्योंकि उनकी जांच लड़कियों से ज्यादा हो रही है। अध्ययन में साल 2005 से 2019 तक 0 से 19 वर्ष उम्र के बच्चों में प्रमुख अस्पतालों व जनगणना आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) में मिले कैंसर के मामलों का विश्लेषण किया गया।
रिपोर्ट में दिल्ली एम्स व चेन्नई के कैंसर इंस्टीट्यूट (cancer institute) के अध्ययनकर्ताओं ने कैंसर रोगियों के लैंगिक अनुपात व अन्य तथ्यों की गणना की। एम्स दिल्ली के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग (Department of Medical Oncology) के प्रो. समीर बख्शी ने बताया कि पीबीसीआर में दर्ज कैंसर के 11,000 मरीजों में लड़कों की संख्या अधिक मिली। अस्पतालों में इलाज ले रहे 22 हजार कैंसर रोगियों में भी लड़के ज्यादा थे।
यह दिखाता है कि कैंसर के लक्षण मिलने पर जांच के लिए लड़कियों को कम लाया जा रहा है। खासतौर से उत्तर भारत में, जहां समाज ज्यादा पितृसत्तात्मक है। रिपोर्ट के अनुसार हमें कैंसर की जांच व इलाज में लैंगिक भेदभाव (gender discrimination) हो रहा है, यह मानना होगा। इसे दूर करने के लिए लोगों को बताना होगा कि समय रहते कैंसर का पता चलने पर रोग का बेहतर इलाज होता है। इलाज का खर्च भी घटाना होगा। लड़कियों के इलाज के लिए विशेष योजनाएं लाई जा सकती हैं। उन्हें निशुल्क इलाज मिले, तो भेदभाव घटाने में मदद मिल सकती है।
ग्रामीण इलाकों में कम जांच
उत्तर भारत में कैंसर का इलाज करा रही लड़कियों की संख्या दक्षिण भारत के मुकाबले कम।
ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों में शहरों के मुकाबले लैंगिक भेदभाव ज्यादा।
अस्पताल 100 किमी से ज्यादा दूर है, तब भी इलाज लेने वाली लड़कियों की संख्या घट जाती है।
इलाज प्राइवेट व महंगे संस्थानों से करवाना हो, तब भी लड़कियों की संख्या कम हो जाती है।
इलाज में खत्म होता है भेद
प्रो. बख्शी के अनुसार कैंसर का पता चलने के बाद यह लैंगिक भेदभाव मिट जाता है। यह बताता है कि भेदभाव केवल सामाजिक वजहों से है, चिकित्सा संस्थानों या नीतिगत वजहों से नहीं।
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