इंदौर। एमपी में विधानसभा चुनावों (Assembly elections in MP) से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) के 40 से अधिक नेता कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं और अब इस गिनती में इंदौर से भी एक नाम जुड़ सकता है। ये नाम जमकर वोट दिलाने वाला है और महू विधानसभा से कैलाश विजयवर्गीय और उषा ठाकुर (Kailash Vijayvargiya and Usha Thakur from Mhow Assembly.) जैसे नेताओं की जीत के लिए जिम्मेदार रहा है लेकिन लगातार अनदेखी ने अब पार्टी के खिलाफ जाने के बाद मजबूर नजर आ रहा है। महूगांव क्षेत्र के नेता रामकिशोर शुक्ला के बारे में खबर है कि वे कल कांग्रेस की सदस्यता लेने जा रहे हैं। शुक्ला भोपाल में हैं और वे कमलनाथ से मिल सकते हैं। हालांकि इस बात की पुष्टी फिलहाल नहीं की जा सकती लेकिन यह बात पुष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी में शुक्ला को उनके कद के मुताबिक जगह नहीं दी गई और एक तरह से उन्हें बाहरी की तरह देखा गया।
महू विधानसभा में इस बार भारतीय जनता पार्टी की ओर से स्थानीय प्रत्याशी का मांग हो रही है। इसे लेकर पिछले दिनों खूब पोस्टर भी लगाए गए। यहां के लोगों के मुताबिक स्थानीय विधायक और मंत्री उषा ठाकुर ने स्थानीय नेताओं की राजनीति खत्म कर दी है और अब स्थानीय नेतृत्व के लिए आगे बढ़ने की गुंजाइश लगातार खत्म होती जा रही है।
सीएम की पसंद का उम्मीदवार
महूगांव क्षेत्र के नेता रामकिशोर शुक्ला पुराने कांग्रेसी ही हैं वे करीब दो दशक पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे और तब से महूगांव से भाजपा को जीत दिलाते आ रहे हैं। उनके इलाके से पार्टी को निर्णायक वोट मिलते हैं और ये वोट ही जीत तय करते हैं। दो बार कैलाश विजयवर्गीय और पिछली बार उषा ठाकुर। इस बार शुक्ला उम्मीद लगाए बैठे थे कि उन्हें टिकिट मिलेगा लेकिन बताया जाता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नहीं चाहते कि किसी स्थानीय उम्मीदवार को महू से टिकिट मिले।
मुख्यमंत्री की पसंद इंदौर से आने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े चिकित्सक डॉ. निशांत खरे हैं। खरे मूलतः सागर के रहने वाले हैं और पिछले कुछ वर्षों में उनकी राजनीतिक सक्रियता काफी बढ़ी है। वे बीते साल ही महू में सक्रिय हुए हैं और अब टिकिट के दावेदार भी बन गए हैं। ऐसे में रामकिशोर शुक्ला, राधेश्याम यादव, अशोक सोमानी और कंचन सिंह चौहान जैसे नेता पार्टी के लिए फिर वोट बटोरने के काम करेंगे। इन नेताओं के करीबियों को इससे खासी नाराजगी है। उनके मुताबिक महू विधानसभा में बाहरी प्रत्याशियों का कोई जनाधार नहीं होता और स्थानीय नेता ही उनके लिए काम करते हैं लेकिन जीत के बाद स्थानीय नेतृत्व को भुला दिया जाता है।
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