भोपाल। प्रदेश में हो रहे 28 सीटों पर उपचुनाव को लेकर पहले से ही भाजपा व कांग्रेस कम मतदान की संभावना के चलते परेशान थीं, ऐसे में कोरोना ने उनका संकट और बढ़ा दिया है। दरअसल प्रदेश में बीते कुछ सालों में जो भी उपचुनाव हुए हैं उनमें आम चुनावों की तुलना में लगातार लगभग पांच फीसदी तक के मतदान की कमी का रुझान रहा है। इस बार उपचुनाव में कोरोना की भी मार पड़ रही है , जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार मतदान में अधिक कमी हो सकती है। यही वजह है कि निर्वाचन आयोग के साथ ही प्रदेश में चुनाव लडऩे वाली सभी प्रमुख पार्टियों के नेताओं को अधिक मतदान कराने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल कम मतदान होने की वजह से कई बार चुनावी समीकरण बनते बिगड़ते रहे हैं। दरअसल कम मतदान का आंकलन वर्ष 2014 से लेकर 2018 के बीच हुए उपचुनावों के आंकड़ो से साफ तौर पर किया जा सकता है। इसी तरह से उपचुनाव में नोटा का भी असर कम ही रहता है। अगर बीते समय में हुए उपचुनावों के आकंड़ों को देखें तो पता चलता है कि आम चुनाव की तुलना में उपचुनाव के दौरान नोटा के आंकड़े महज एक चौथाई तक ही सीमित रह गए हैं। इनमें मुंगावली में हुआ उपचुनाव जरूर अपवाद बना हुआ है। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक राघाौगढ़ में वर्ष 2014 में हुए उपचुनाव में 67.55 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि इसके पहले आम चुनाव में मतदान 76.54 फीसदी रहा । इसी साल बहोरीबंद में उपचुनाव में 72.94 फीसदी मतदान हुआ था , जबकि आम चुनाव में 80.34 फीसदी मतदान किया गया था।
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