- शिलालेख में 2 हजार वर्ष पूर्व निर्माण कराए जाने का उल्लेख-मंदिर छोटा है लेकिन हूबहू बना है महाकाल की तरह
उज्जैन। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान महाकाल का सिर्फ एक ही मंदिर है और वो भी उज्जैन में लेकिन भगवान महाकाल के मंदिर की तरह ही हूबहू दिखने वाला एक और मंदिर भी है जो उज्जैन से 75 किलोमीटर दूर उज्जैन संभाग के शाजापुर जिले के ग्राम सुंदरसी में है और यह मंदिर राजा विक्रमादित्य ने बनाया था जिसे छोटा महाकाल मंदिर कह सकते हैं। राजा विक्रमादित्य की बहन सुंदरबाई का विवाह सुंदरगढ़ में होने वाला था। तब सुंदरबाई ने अपने भाई सम्राट विक्रमादित्य से कहा था कि मैं उस राज्य में विवाह करूंगी जहां भगवान महाकाल हो, क्योंकि वह प्रतिदिन बाबा महाकाल के दर्शन के बाद ही अन्न जल-ग्रहण करती थीं। सुंदराबाई की इसी आस्था को देखते हुए राजा विक्रमादित्य ने इस सुंदरगढ़ में भगवान महाकाल के शिवलिंग सहित अन्य सारे देवी स्थानों की स्थापना भी की और उज्जैन में बने महाकाल मंदिर परिसर का छोटा स्वरूप इस राज्य में भी बनवाया। बताया जता है कि तभी से यहां भी उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की तरह पूजा-अर्चना का दौर जारी है। सुंदरसी के भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना भी उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की तरह ही विधि विधान से होती है। यहां भी मंदिर के गर्भगृह के पट खुलते ही सबसे पहले प्रतिदिन सुबह 5 बजे बाबा महाकाल की आरती होती है। इसके बाद भगवान का श्रृंगार होता है और फिर श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। सावन के महीने में यहां भी प्रति दिन भस्मारती की जाती है। यहां भी भस्मारती गाय के गोबर से बने कंडे की राख से की जाती है। लेकिन यह आरती ठीक उसी प्रकार से होती है जैसी कि उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में होती है। इसके अलावा यहां भी सावन माह के प्रत्येक सोमवार को महाकाल की सवारी निकाली जाती है और इस सवारी में इस क्षेत्र के सभी लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। नगर राजा की तर्ज पर गाड ऑफ ऑनर के साथ ही भगवान महाकाल की यह सवारी शुरु होती है।
सुंदरसी कस्बे के इस मंदिर का उल्लेख पुरातत्व से जुड़ी कई किताबों में देखने को मिलता है, इसके अलावा शाजापुर जिले के इतिहास से जुड़ी पुस्तकों में यहां के महाकाल मंदिर और उज्जैन की तर्ज पर बने यहां के हर मंदिर का जिक्र है। राजा विक्रमादित्य के इतिहास से जुड़े कुछ तत्थ्यों के अनुसार अपने समय में उन्होंने उज्जैन नगर से बाहर भी एक अन्य महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना करवाई थी और इस मंदिर के विषय में यही माना जाता है कि शाजापुर जिले के सुंदरसी तहसील में स्थित यह वही महाकाल मंदिर है जिसकी स्थापना राजा विक्रमादित्य ने उज्जैन से दूर एक अन्य स्थान पर करवाई थी। संरचना के आधार पर भी यह मंदिर और उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की बनावट देखने में एक जैसी ही है। इस विषय पर यदि हम गौर करें तो पता चलता है कि मालवा पर हुए मुगलों के आक्रमणों के दौरान इसमें भी भारी लूटपाट की गई थी और उसके बाद इसे भी नष्ट कर दिया गया था, बाद में मराठों के सत्ता में आते ही उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और इस मंदिर का भी एक साथ जिर्णोद्वार करवाया गया था। भगवान महाकाल का यह मंदिर भी काफी पुराना और रहस्यपूर्ण बताया जाता है। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर और इस मंदिर का शिखर देखने में एक जैसा ही लगता है। स्थानिय लोगों का कहना है कि इस मंदिर के भीतर एक ऐसी गुफा भी है जो उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह तक जाती है। लोगों का मानना है कि मंदिर परंपराओं के अनुसार ही इस मंदिर के पास भी एक प्राचीन कुंड बना हुआ है और इस कुंड में पौराणिक काल में बनी एक सुरंग के माध्यम से उज्जैन स्थित पवित्र शिप्रा नदी का जल आता था। इसी जल से बाबा महाकाल का अभिषेक किया जाता था। हालांकि वर्तमान में शिप्रा नदी के जल के यहां आने का मार्ग अब बंद हो गया है, लेकिन फिर भी स्थानीय निवासी इस कुंड के जल को पवित्र शिप्रा नदी के जल के समान ही महत्व देते हैं। लगभग दो हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह मंदिर परिसर उज्जैन में बने महाकाल मंदिर जैसा ही दिखता है। इस मंदिर में भी बाकायदा गर्भगृह के ठीक ऊपर भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा विराजित है। जबकि उज्जैन के महाकलेश्वर मंदिर के गर्भगृह के ठीक ऊपर भी एक शिवलिंग है जो ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध है। यहां भी गर्भगृह से ठीक पीछे पानी का कुंड बना है, जिसे जोगी कुंड के नाम से जाना जाता है।