नई दिल्ली । एमसीडी के चुनाव में (In MCD Elections) सुल्तानपुरी-ए वार्ड से (From Sultanpuri-A Ward) आप पार्टी की उम्मीदवार (AAP’s Candidate) बॉबी किन्नर (Bobby Kinnar) ने जीत हासिल की (Wins) । इस तरह एमसीडी को अपना पहला ट्रांसजेंडर पार्षद मिल गया। बॉबी (38) को सुल्तानपुरी ए (वार्ड 43) सीट से टिकट दिया गया था। वह अन्ना आंदोलन और बाद में पार्टी के गठन के बाद से आप से जुड़ गईं ।
इससे पहले बॉबी ने 2017 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निकाय चुनाव लड़ा था। चुनाव प्रचार के दौरान आप उम्मीदवार ने केजरीवाल सरकार के काम को जनता तक ले जाने और पार्षद बनने पर भ्रष्टाचार खत्म करने की दिशा में काम करने का वादा किया था। बॉबी ‘हिंदू युवा समाज एकता अवाम आतंकवाद विरोधी समिति’ के दिल्ली इकाई के अध्यक्ष भी हैं। वह पिछले 15 सालों से इस संस्था से जुड़े हुए हैं।
एमसीडी चुनाव में जीत हासिल करने वाली बॉबी का शुरुआती जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। उन्हें बचपन में बहुत परेशान किया जाता था। 14-15 साल की उम्र में उन्हें ट्रांसजेंडर समुदाय के एक गुरु ने अपना लिया। आज सुल्तानपुर माजरा के निवासी बॉबी को प्यार से ‘बॉबी डार्लिंग’ कहते हैं। 38 वर्षीय बॉबी ने कहा ”मैंने अपने जीवन में अपमान का सामना किया है, लेकिन मैंने कभी सपना देखना नहीं छोड़ा। मुझे उम्मीद है कि मेरे जैसे ट्रांसजेंडर लोगों को एक दिन समाज में सम्मान जरूर मिलेगा। मुझे पता है कि ट्रांसजेंडर लोगों को अभी भी हेय दृष्टि से देखा जाता है… बहुत कुछ किया जाना है, लेकिन यह पहला कदम है।”
बोबी का जन्म और पालन-पोषण सुल्तानपुर इलाके में हुआ था। वह अब भी अपने मां से संपर्क में हैं। वह कहती हैं, ”मेरी माँ ने हमेशा मुझसे प्यार किया और अब भी करती हैं। मेरा एक छोटा भाई है, जो प्राइवेट नौकरी करता है। मेरे पिता एक छोटा ढाबा चलाया करते थे। अब वह नहीं रहे। मेरी मां ने छोटे-मोटे काम करके हमारा पालन-पोषण किया था। मैं अब भी उनसे मिलती हूं। और उनके साथ समय बिताती हूं। बता दें कि बॉबी की मां ने उनके लिए चुनाव प्रचार भी किया था।
बॉबी पहले शादियों में डांस किया करती थीं। 21-22 साल की होने पर वह एक एनजीओ से जुड़ गईं। बाद में वह सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं और अब राजनीति में अपनी राह बना रही हैं। अपने सफर को याद करते हुए बॉबी कहती हैं, ”स्कूल में मुझे परेशान किया जाता था। मेरे माता-पिता मुझसे प्यार करते थे, लेकिन वो भी समाज के दबाव में आ गए। जब मैं लगभग 14-15 साल की थी, तो मुझे मेरे गुरु अपने पास ले आए। वह अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्होंने मुझे रहने की जगह और प्यार दिया। मुझे अपने जैसे लोग मिले, मुझे घर जैसा महसूस हुआ।”
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