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    माता-पिता की गलती से इंदौर में 150 बच्चे पीडि़त

  • March 21, 2023

    • वल्र्ड डाउन सिन्ड्रोम डे- गर्भावस्था के दौरान जांच हो तो हो सकता है बचाव
    • बादामशेप आंखें, फ्लेट चेहरा, उभरी जीभ तो बच्चों की जांच कराएं

    इंदौर (Indore)। गर्भावस्था (pregnancy) के दौरान डाउन सिन्ड्रोम की पहचान के लिए यदि समय पर जांच की जाए तो न केवल बचाव हो सकता है, बल्कि बच्चों में आने वाली विकृति को भी कम किया जा सकता है। इंदौर में 150 बच्चे कम इम्युनिटी, बौद्धिक क्षमता के विकास की धीमी गति और विभिन्न तरह की शारीरिक तकलीफों से जूझ रहे हैं।

    बच्चों की बादामशेप आंखें, फ्लेट चेहरा, उभरी हुई जीभ, हाथों में अधिक लकीरें, सिर, कान, अंगुलियां छोटी और चौड़ी और बच्चों के छोटे कद के साथ-साथ यदि बौद्धिक विकास की गति में धीमी चाल दिखे तो सतर्क हो जाएं। यह डाउन सिन्ड्रोम के लक्षण हो सकते हैं। अधिक उम्र में विवाह और गर्भावस्था के दौरान समय पर जांच नहीं करवाने के कारण तेजी से यह बीमारी बच्चों में घर कर रही है। जन्म से ही इस विकार के साथ पैदा हो रहे बच्चों की संख्या में वृद्धि चिंता का विषय तो है ही, साथ ही जांच का भी मुख्य कारण है। इंदौर शहर में ही 150 बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हैं, जिन्हें शहर की विभिन्न संस्थाएं न केवल शिक्षित और प्रशिक्षित कर रही हैं, बल्कि ऐसे बच्चों के लिए जागरूकता भी फैला रही हैं। वल्र्ड डाउन सिन्ड्रोम-डे के मौके पर आज सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन सशक्तिकरण विभाग द्वारा गांधी हॉल परिसर में कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।


    ऐसे होती है यह बीमारी
    प्रजनन के समय माता और पिता दोनों के क्रोमोसोम बच्चे तक पहुंचते हैं। इसमें कुल 46 क्रोमोसोम होते हैं। 23 माता के और 23 पिता के बच्चे को मिलते हैं। दोनों के क्रोमोसोम जब आपस में मिलते हैं तो 21वां क्रोमोसोम दो भागों में विभक्त हो जाता है और एक नया क्रोमोसोम बना लेता है। इसी को ट्रायसॉमी-2 कहा जाता है। यह एक्स्ट्रा क्रोमोसोम बच्चे में कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकार पैदा कर देता है, जिसके कारण बौद्धिक क्षमता से लेकर शारीरिक क्षमता तक में बड़ी खराबी आ जाती है। बच्चों में इम्युनिटी पॉवर कम हो जाता है, जिसके चलते वह तरह-तरह की बीमारियों की चपेट में आने लगते हैं।

    यह रखें ध्यान
    डॉक्टरों के अनुसार इन बच्चों के विकास में नियमित रूप से डॉक्टरी जांच जरूरी है। 2, 4, 6, 9, 12, 15, 18 और 24 महीने की आयु में और वयस्कता के दौरान साल में एक बार डॉक्टरी जांच कराना अनिवार्य है। इस बीमारी से विकास में फर्क देखा जाता है। इम्युनिटी कमजोर हो तो टीकाकरण करवाएं। समय-समय पर बच्चे के दिल के रोगों की जांच भी करवाएं। थायराइड की जांच, हार्मोन्स रिप्लेसमेंटथैरेपी का सहारा लें। यदि बच्चे में सुनने की क्षमता कम है तो हेयरिंग एड का सहारा लें। आंखों के लिए नियमित जांच कराएं और बौद्धिक विकास के लिए समय-समय पर ट्रेनिंग दिलाई जाए।

    गुड टच और बैड टच सिखाएं
    आमतौर पर डाउन सिन्ड्रोम से ग्रसित बच्चों में बालिकाएं भी होती हैं। इन सभी बच्चों को गुड टच और बैड टच की ट्रेनिंग दिया जाना अनिवार्य करें। डाउन सिन्ड्रोम से ग्रस्त लड़कियां गर्भवती हो सकती हैं, इसलिए इन बच्चों को विशेष ट्रेनिंग दी जाना चाहिए।

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