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    आज से आरम्भ हो रहा है श्री महालक्ष्मी व्रत, 16 दिन तक पढ़े यह कथा

  • August 26, 2020

     

    आप सभी को बता दें कि आज और कल दो दिन तक अष्टमी का पर्व मनाए जाने के बारे में कहा गया है. ऐसे में आज और कल दोनों ही दिन राधा अष्टमी और भाद्रपद अष्टमी मनाई जाने वाली है. वैसे आपको हम यह भी बता दें कि आज से महालक्ष्मी व्रत आरम्भ हो रहा है जो 16 दिनों तक चलने वाला है. अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं 16 दिनों तक पढ़ी जाने वाली महालक्ष्मी व्रत कथा.

    महालक्ष्मी व्रत कथा – एक समय महर्षि श्री वेदव्यासजी हस्तिनापुर पधारे. उनका आगमन सुन महाराज धृतराष्ट्र उनको आदर सहित राजमहल में ले गए. स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान कर चरणोदक ले उनका पूजन किया. श्री व्यासजी से माता कुंती तथा गांधारी ने हाथ जोड़कर प्रश्न किया- हे महामुने! आप त्रिकालदर्शी हैं अत: आपसे हमारी प्रार्थना है कि आप हमको कोई ऐसा सरल व्रत तथा पूजन बताएं जिससे हमारा राज्यलक्ष्मी, सुख-संपत्ति, पुत्र-पोत्रादि व परिवार सुखी रहें. इतना सुन श्री वेद व्यासजी कहने लगे- ‘हम एक ऐसे व्रत का पूजन व वर्णन कहते हैं जिससे सदा लक्ष्मीजी का निवास होकर सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है. यह श्री महालक्ष्मीजी का व्रत है जिसे प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत किया जाता है.’

    हे महामुने! इस व्रत की विधि हमें विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें. तब व्यासजी बोले- ‘हे देवी! यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ किया जाता है. इस दिन स्नान करके 16 सूत के धागों का डोरा बनाएं, उसमें 16 गांठ लगाएं, हल्दी से पीला करें. प्रतिदिन 16 दूब व 16 गेहूं डोरे को चढ़ाएं. आश्विन (क्वांर) कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर मिट्टी के हाथी पर श्री महालक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें. इस प्रकार श्रद्धा-भक्ति सहित महालक्ष्मीजी का व्रत, पूजन करने से आप लोगों की राज्यलक्ष्मी में सदा अभिवृद्धि होती रहेगी. इस प्रकार व्रत का विधान बताकर श्री वेदव्यासजी अपने आश्रम को प्रस्थान कर गए. इधर समयानुसार भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से गांधारी तथा कुंती अपने-अपने महलों में नगर की स्‍त्रियों सहित व्रत का आरंभ करने लगीं. इस प्रकार 15 दिन बीत गए. 16वें दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन गांधारी ने नगर की स‍भी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया. माता कुंती के यहां कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई. साथ ही माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया. ऐसा करने से माता कुंती ने अपना बड़ा अपमान समझा. उन्होंने पूजन की कोई तैयारी नहीं की एवं उदास होकर बैठ गईं. जब पांचों पांडव युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव महल में आए तो कुंती को उदास देखकर पूछा- हे माता! आप इस प्रकार उदास क्यों हैं? आपने पूजन की तैयारी क्यों नहीं की?’ तब माता कुंती ने कहा- ‘हे पुत्र! आज महालक्ष्मीजी के व्रत का उत्सव गांधारी के महल में मनाया जा रहा है. उन्होंने नगर की समस्त महिलाओं को बुला लिया और उसके 100 पुत्रों ने मिट्टी का एक विशाल हाथी बनाया जिस कारण सभी महिलाएं उस बड़े हाथी का पूजन करने के लिए गांधारी के यहां चली गईं, लेकिन मेरे यहां नहीं आईं.

    यह सुनकर अर्जुन ने कहा- ‘हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजन होगी.’ इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी. उधर अर्जुन ने बाण के द्वारा स्वर्ग से ऐरावत हाथी को बुला लिया. इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा. समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी. उधर गांधारी के महल में हलचल मच गई. वहां एकत्र हुईं सभी महिलाएं अपनी-अपनी थालियां लेकर कुंती के महल की ओर जाने लगीं. देखते ही देखते कुंती का सारा महल ठसाठस भर गया. माता कुंती ने ऐरावत को खड़ा करने हेतु अनेक रंगों के चौक पुरवाकर नवीन रेशमी वस्त्र बिछवा दिए. नगरवासी स्वागत की तैयारी में फूलमाला, अबीर, गुलाल, केशर हाथों में लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे.

    जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्‍वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी. ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार के नारे लगने लगे. सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबीर, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया. राज्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया. नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया. फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया. राज्य पुरोहित द्वारा स्वस्ति वाचन करके महिलाओं द्वारा महालक्ष्‍मी का पूजन कराया गया. 16 गांठों वाला डोरा लक्ष्मीजी को चढ़ाकर अपने-अपने हाथों में बांध लिया.

    ब्राह्मणों को भोजन कराया गया. दक्षिणा के रूप में स्वर्ण आभूषण, वस्त्र आदि दिया गया. तत्पश्चात महिलाओं ने मिलकर मधुर संगीत लहरियों के साथ भजन कीर्तन कर संपूर्ण रात्र‍ि महालक्ष्‍मी व्रत का जागरण किया. दूसरे दिन प्रात: राज्य पुरोहित द्वारा वेद मंत्रोच्चार के साथ जलाशय में महालक्ष्मीजी की मूर्ति का विसर्जन किया गया. फिर ऐरावत को बिदाकर इन्द्रलोक को भेज दिया. इस प्रकार जो स्‍त्रियां श्री महालक्ष्मीजी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करती हैं, उनके घर धन-धान्य से पूर्ण रहते हैं तथा उनके घर में महालक्ष्मीजी सदा निवास करती हैं. इस हेतु महालक्ष्मीजी की यह स्तुति अवश्य बोलें- ‘महालक्ष्‍मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि. हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे..’

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