नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस (Corona Virus) की दूसरी लहर(Second Wave) ने कोहराम मचा रखा है. हर रोज हजारों की संख्या में सांसें थम जा रही हैं. ऑक्सीजन(Oxygen) और बेड(Bed) के लिए मारामारी है. इसी हाहाकार के बीच शुक्रवार को अहम खबर आई. दरअसल दवा कंपनी जायडस ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (Drug Controller General of India) ने कोरोना संक्रमितों के इलाज में उसकी दवा “वीराफिन” (Virafin) के सीमित और इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है.
वीराफिन (Veerafin) का मेडिकल नाम ‘पेजिलेटेड इंटरफेरोन अल्फा-2बी’ है और इसका इस्तेमाल बालिग मरीजों में संक्रमण के मॉडरेट केस के इलाज में किया जाएगा. कंपनी ने कहा है कि वीराफिन दवा का एक सिंगल डोज कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज को आसान बना देगी. अगर इस दवा को मरीज को संक्रमण के इलाज में शुरू में ही उपलब्ध करा दिया जाए. वीराफिन के इस्तेमाल से मरीज को संक्रमण से उबरने में मदद मिलेगी और अन्य परेशानियों को भी टाला जा सकेगा. जायडस ने कहा है कि अस्पताल या मेडिकल संस्थान में मेडिकल एक्सपर्ट की सलाह पर दवा का इस्तेमाल किया जा सकेगा. मूल तौर पर हेपटाइटिस सी के इलाज के लिए मंजूरी प्राप्त इस दवा का कई सेंटरों पर ट्रायल किया गया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में इसका 20 से 25 केंद्रों पर ट्रायल हुआ था. ट्रायल में दवा के इस्तेमाल से मरीजों को सप्लीमेंटल ऑक्सीजन की आवश्यकता बेहद कम हुई. कंपनी ने कहा कि फेज-3 के क्लिनिकल ट्रायल में दवा ने कोरोना मरीजों पर काफी बेहतर प्रभाव दिखाया. ट्रायल के दौरान जिन मरीजों को दवा दी गई थी, उनमें ज्यादातर 7 दिन के बाद आरटी-पीसीआर टेस्ट में निगेटिव पाए गए. वीराफिन के इस्तेमाल ने वायरल का तेजी से खात्मा सुनिश्चित किया और दूसरी एंटी वायरल दवाओं के मुकाबले मरीजों को अतिरिक्त मदद की. जायडस ने कहा, “ट्रायल के नतीजों से साफ है कि वीराफिन के इस्तेमाल से मरीजों में सांस संबंधी दिक्कतों को नियंत्रित किया जा सकता है. कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज में सांस संबंधी परेशानियां मुख्य चुनौती हैं.” कंपनी ने इस महीने की शुरुआत में डीजीसीआई के पास परमिशन के लिए आवेदन किया था. कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर शर्विल पटेल ने कहा, “अगर दवा को संक्रमण के इलाज में शुरू में ही इस्तेमाल किया जाए तो वायरल के लोड को कंट्रोल करने में मदद मिलती है. इससे संक्रमण का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया जा सकेगा. मरीजों के नजरिए से दवा को बेहद उचित समय पर मंजूरी मिली है और कोरोना के खिलाफ लड़ाई में दवा निर्णायक भूमिका निभा सकती है.” प्रतिष्ठित साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध पत्रों के मुताबिक वायरल इंफेक्शंस के खिलाफ टाइप वन इंटरफेरोन मानव शरीर में पहली लाइन के डिफेंस होते हैं, वहीं पेजिलेटेड इंटरफेरोन अल्फा 2बी का इस्तेमाल संक्रमण के सफल इलाज में होता है. हालिया प्रकाशित शोध पत्रों में कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में इंटरफेरोन अल्फा को भी निर्णायक बताया गया है. वरिष्ठ नागरिकों में उम्र बढ़ने के साथ शरीर में इंटरफेरोन अल्फा का निर्माण कम हो जाता है और वायरल इंफेक्शंस के खिलाफ शरीर कमजोर पड़ने लगता है. हो सकता है कि कोरोना के खिलाफ बुजुर्ग मरीजों को आसन्न खतरा इसी वजह से हो. अगर संक्रमण के इलाज में वीराफिन दवा का इस्तेमाल शुरू में ही हो, तो यह शरीर में इंटरफेरोन अल्फा की कमी को पूरा कर, मरीज को तेजी से राहत प्रदान करने में मदद करती है. इससे पहले फेज-2 के क्लिनिकल ट्रायल में वीराफिन के सुरक्षित और प्रभावी होने की पुष्टि हुई थी. इसी दौरान पता चला कि पेजिलेटेड इंटरफेरोन अल्फा 2बी का मॉडरेट कोरोना मरीजों पर सकारात्मक प्रभाव है. दवा के इस्तेमाल से मरीजों पर वायरल लोड को कम करने में मदद मिली है और ऑक्सीजन सपोर्ट की अवधि भी कम हुई है. फेज 2 ट्रायल के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित हुए थे. बता दें कि जायडस कंपनी कोरोना वायरस की वैक्सीन जायकोव-डी भी बना रही है. वैक्सीन का फेज-3 ट्रायल अगले महीने पूरा होने की उम्मीद है.