उज्जैन। पिछले एक दशक से पतंगबाजी के शौक में चायना डोर की घुसपैठ के बाद हर साल संक्रांति के आसपास यह डोर मनोरंजन से ज्यादा लोगों की जान की दुश्मन बनी हुई है। समय रहते इस बार इस पर कड़ा प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसी बीच जीरो पाइंट बिज पर भी रैलिंग के सहारे ऊँचे पोल लगाकर उन पर तार बाँधे जा रहे हैं ताकि चायना डोर से किसी का गला न कटे। इस ब्रिज पर पिछले साल चायना डोर ने मौके पर ही एक छात्रा की जान ले ली थी। मकर संक्रांति का पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है, परंतु पिछले 10-12 वर्षों से यह नवाबी शौक मनोरंजन की बजाए मातम का कारण बनता जा रहा है। इसके पीछे वजह चायना की नायलोन की डोर है। यह डोर इतनी मजबूत होती है कि इसे अच्छे से अच्छा पहलवान भी हाथ से नहीं तोड़ पाता। पतंगबाजी में जब से देशी माँजे के स्थान पर चायना डोर का प्रयोग शुरू हुआ है तब से यह इंसानों से लेकर मूक पशु-पक्षियों तक के लिए मौत का फंदा बनता जा रहा है। पिछले कई सालों में चायना डोर के कारण शहर में दर्जनों लोगों की जान जा चुकी है तथा सैकड़ों लोग घायल हो चुके हैं। इतना ही नहीं संक्रांति पर्व बीतने के बाद जब यह डोर बिजली के तारों और पेड़ों की शाखाओं में उलझी रह जाती है तो वह पशु-पक्षियों की जान लेती रहती है।
छत्री चौक तथा महाकाल मंदिर क्षेत्र में हर साल पतंग के सीजन में इस डोर के कारण सैकड़ों पक्षी उलझते हैं। किसी के पंख तो किसी का गला कटता है और उनकी मौत होती है। इस बार जिला प्रशासन ने समय रहते चायना डोर की बिक्री के साथ-साथ खरीदी पर न केवल प्रतिबंध लगाया है बल्कि इस तरह के लोगों पर धारा 188 के तहत कार्रवाई करने तथा उनके मकान तक तोडऩे के आदेश दिए हैं। इस सख्ती के बावजूद अभी भी शहर में चायना डोर के माँजे से कई शरारती तत्व पतंग उड़ा रहे हैं। कल भी पुलिस ने पतंग बिक्री वाले क्षेत्रों में सर्चिंग अभियान चलाया तथा बांड भरवाए। इधर जीरो पाइंट ओवरब्रिज पर कल शाम से रैलिंग के सहारे ऊँचे पोल लगाए जा रहे थे। इसी के साथ इन पर लोहे के तार भी बांधे गए हैं ताकि चायना की डोर से ब्रिज से गुजरते वक्त लोगों का गला न कटे। गत वर्ष इस ब्रिज पर संक्रांति के दौरान स्कूटी से स्कूल से घर लौट रही एक छात्रा का गला चायना डोर में उलझ गया था और स्पॉट पर ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी। इसके अलावा अन्य दुर्घटनाएँ भी चायना डोर के कारण हुई थी।
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