नई दिल्ली। जब साल 2016 रियो ओलंपिक (Rio Olympics) में रिफ्यूजी ओलंपिक टीम (Refugee Olympic Team) ने भाग लिया था तो पूरी दुनिया के रिफ्यूजी लोगों में एक उम्मीद जगी थी कि वो भी अब सामने आकर अपनी हिम्मत को, अपने गेम को दिखा सकते हैं। युसरा मर्दिनी (Yusra Mardini) की सच्ची कहानी भी कुछ ऐसी ही है। सीरिया से रियो और फिर टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) तक पहुंचने का उनका संघर्ष हर किसी को यह सोचने पर मजबूर कर देगा कि एक खिलाड़ी बनने के लिए क्या से क्या होना पड़ता है। रास्ता आसान कभी ना था, ना कभी होगा लेकिन गेम्स से प्यार करने वाले लोग उससे कांटों को दूर करते हैं और दुनिया को दिखाते हैं कि सब मुमकिन है।
रियो में आई थी वो
पांच वर्ष पहले हुए रियो ओलंपिक (Rio Olympics) में उन्होंने सबसे पहले भाग लिया था। इस समय वो टीनएजर थी और उनकी कहानी लोगों को छू गई थी।
3 घंटे तक समंदर में तैरती रही
@Goodable ने ट्विटर पर इस बात की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वो उस समय एक टीनएजर थी, जब सीरियाई गृहयुद्ध चल रहा था। वो 3 घंटों तक समंदर में तैरती रही, खुले समंदर में, वो डूबती बोट में से लोगों को बचा भी रही थीं। फिर वो ग्रीस से लेकर जर्मनी तक पैदल गईं। आज उन्होंने 100 मीटर बटलफ्लाई ओलंपिक्स के लिए पूरी की।
पिता सीखाते थे तैरना
युसरा सीरिया (Seria) के एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई हैं। उनके पिता स्विमिंग कोच थे तो वीकेंड पर वो उन्हें तैरना सीखाते थे। पर वो चाहती थी कि वो पायलट बनें, उन्हें प्लेन उड़ाना बहुत पसंद था।
छोड़ना पड़ा सीरिया
उन्होंने 2015 में अपने देश सीरिया से भागने का फैसला किया। ग्रीस जाने से पहले वह नाव से तुर्की भाग गई थीं। रास्ते में उनकी बोट डूब गई। तमाम दिक्कतों को झेलने के बाद आखिरकार, मर्दिनी और उनकी बहन बर्लिन पहुंची, जहां उन्होंने शरणार्थियों के रूप में अपने जीवन को फिर से शुरू किया। इसके बाद मर्दिनी ने फिर से जर्मनी में रहकर पूल में प्रशिक्षण फिर से शुरू किया।
साल 2016 में वो छा गई
इसके बाद युसरा मर्दिनी उन 10 एथलीटों में से एक थीं, जो रियो 2016 में पहली रिफ्यूजी ओलंपिक टीम का हिस्सा बनी थी। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया, ‘खेलों के कारण ही मेरी जिंदगी बदली है, इसने हमें उम्मीद दी है कि हम अपनी जिंदगी बेहतर बना सकते हैं।’
बनी शरणार्थियों की आवाज
मर्दिनी को अप्रैल 2017 में रिफ्यूजी सद्भावना राजदूत के लिए यूएन का सबसे कम उम्र का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। UNHCR गुडविल एंबेसडर भी वो रही, वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शरणार्थियों की आवाज उठाती रही हैं।
ताकि कोई रिफ्यूजी ना रहे
वो कहती हैं, ‘मैं बहुत कुछ करना चाहती हूं, पर मेरे स्विमिंग पहने नंबर पर है, मेरा सपना है इसमें ओलंपिक जीतना। मैं चाहती हूं कि दुनिया में शांति हो, युद्ध ना हों, ना कोई रिफ्यूजी हो। हम सब लोग प्यार से, सदभावना से एकसाथ रहें। मुझे पता है यह बहुत मुश्किल है लेकिन यह मेरा सपना है।’
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