विरासत की हिफाजत करना इतना आसान नहीं होता… क्योंकि विरासत बिना मेहनत के हासिल होती है… उसमें ना अनुभव की धूप होती है ना मेहनत से हासिल सफलता की छांव… ना वो ठोकर खाकर मिलती है ना खोने का दर्द देती है… वो बाप का दिया ऐसा तोहफा होता है जिसे पाने वाला अहंकार की ऐसी ऊंचाई पर जाकर खड़ा हो जाता है… जहां से उसे दुनिया छोटी नजर आती है… कामयाबी पैरों में दिखाई देती है… बहुत जल्द सब कुछ पाने की कोशिश में वो ऐसा कुछ कर गुजरता है कि चंद घंटों, कुछ दिनों और थोड़े से ही वक्त में आसमान से जमीन पर आ गिरता है… संघर्ष की उस घड़ी से गुजरता है, जिसके अनुभव उसके गुरुर को मिटा डालते हैं… अपने पराए हो जाते हैं… पराए दुश्मनी निकालते हैं और ऐसे ही लोग उद्धव ठाकरे कहलाते हैं… ठाकरे नहीं बल्कि ठुके-पिटे कहलाते हैं… घर तो घर किसी घाट पर भी फटकने लायक नहीं रह जाते हैं… क्योंकि खता तो एक लम्हे की होती है लेकिन सजा सदियों की बन जाती है… एक गलती बरसों की तपस्या मिटा डालती है… जिस महाराष्ट्र के शेर बाला साहब ठाकरे के नाम से राजनीति कांपती थी… सत्ता थरथराती थी… जिससे बगावत की हिमाकत खुदकुशी कहलाती थी… जो सत्ता में ना रहकर भी महाराष्ट्र चलाता था, जो एक कौम का सरमाएदार कहलाता था… जिसने पांच दशकों तक लोगों के दिल से लेकर प्रदेश के जर्रे-जर्रे पर राज किया… लेकिन दुनिया से रुखसत होने के पहले ऐसी गलती कर गया, जो हर बाप करता है… बिना अनुभव के अपनी विरासत सौंपता है … पुत्र मोह में सारी मर्यादाएं तोड़ देता है… ठोकरो में पुत्र को पालने के बजाय सोने का पालना देता है… अनुभव की कठोरता की बजाय रुतबे का अहंकार सौंपता है… और यही अहंकार पिता के उसूल को तोड़ डालते हैं… जीवनभर सत्ता से दूर रहना वाले और मुख्यमंत्री न बनने की कसम खाने वाले बाला साहब का अनुभवहीन बेटा महाराष्ट्र की सत्ता के लालच में सारी मर्यादाएं तोडक़र अपने से बड़ी केन्द्र में बैठे उस दल की शक्ति से दगा कर जाता है, जिसके साथ चुनाव लडक़र वह सत्ता पाता है… अकल का अंधा सत्ता हांसिल करने की हसरत में मुर्खता की हद पार कर जाता है… हिन्दुत्व की बुनियाद पर खड़ी शिवसेना को गैर हिन्दुवादी दलों के आसरे छोड़ जाता है… तब वह बाप तो बाप महाराष्ट्र की जनता की नजरों में भी तुच्छ हो जाता है… उसके दल से जुड़े लोग असहज हो जाते हैं… बाहर निकलने का रास्ता खोजने लग जाते हैं… फिर उनमें से कोई एकनाथ शिंदे बनकर उभर आता है… और उद्धव की उधम को ठिकाने लगाकर वो सडक़ दिखाता है, जहां से बाला साहब जैसे नेता ने एकता, एकजुटता और सत्ता की शुरुआत की थी… उद्धव की शिवसेना आज शवसेना बन चुकी है… सामने कई चुनौतिया खड़ी है… दहलीज वही है, लेकिन किनारे बदल चुकी है… अब अनुभव भी आएगा… ठोकरे भी खाएंगे… बाप की विरासत डूबने को है, अगर होगा दम तो खुद अपनी विरासत बनाएंगे…
ठाकरे की गलती की सजा अब उद्धव भुगतेंगे…
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