विरह के 38 साल…
आप यहीं हैं… यहीं कहीं हैं… अखबार की खुशबू में… पाठकों के विश्वास में… पल-पल के अहसास में… सच्चाई के आकाश में… 38 बरस गुजर गए … हर क्षण आपके न होने के गम ने सताया, लेकिन आपके जन्मे अग्निबाण ने हर पल आपके होने का अहसास कराया… इस विश्वास ने हमें ढांढ़स बंधाया कि हमें आपकी जीवटता को जिंदा रखकर आपको पाना है… हमें आपके कर्मयज्ञ में समर्पण की आहुति सजाना है… जो पौधा आपने लगाया उसे वटवृक्ष बनाना है… निर्भीकता, निडरता का अहसास हर पल पाठकों को कराते हुए संघर्ष का सिपहसालार बनकर दिखाना है… आपने जो सिखाया उसे हमने अपनाया… जैसा समझाया उसी राह पर चलकर मंजिल की ओर कदम बढ़ाया… आपके संस्कार … आपके विचार… आपकी सदाशयता और समर्पण से हमने वो मुकाम पाया, जहां विश्वास भी है और विन्यास भी… उम्मीदें भी हैं और उमंग भी… ऊंचाई भी है और पहचान भी… शब्द भी हैं और भावनाएं भी… अग्निबाण यदि आपके संघर्ष की मिसाल है तो हमारे लिए सच्चाई की मशाल है… इसे चैतन्य रखना… इसके प्रकाश की ज्योति बनाना… इसे रोशनी बनाकर बुझे हुए दिलों का चिराग बनाना और उजाले का अहसास कराना हमारा लक्ष्य है… आप हमारी ऊर्जा हैं और हम आपके संवाहक … आप हमारी प्रेरणा हैं और हम आपके पुंज… प्रेरणा के इस पुंज की यात्रा हमें इस बात का अहसास कराती है कि आप यहीं हैं… यहीं कहीं हैं… बरस नहीं युग बीत जाएंगे… हम आपको और आप हमें कभी जुदा नहीं कर पाएंगे…
पितृ-पुरुष को श्रद्धासुमन
– राजेश चेलावत
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