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    आप भी आइए ‘गज उत्सव’ में

  • April 08, 2023

    – भूपेंद्र यादव

    यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए जैव-विविधता संरक्षण सर्वोत्तम रणनीतियों में से एक है। जैव-विविधता संरक्षण एक जटिल प्रयास होता है, क्योंकि जैविक समुदाय अपने पर्यावरण से गहरे रूप से जुड़े रहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण प्रजातियों का संरक्षण तथा कुछ आवश्यक तथ्यों पर आधारित दृष्टिकोण, चुनौती का मुकाबला करने में सहायता कर सकता है। विश्व स्तर पर लुप्तप्राय एशियाई हाथी (एलीफस मैक्सिमस) का भारत में संरक्षण इसका एक उदाहरण है।

    भारत में हाथियों और लोगों के बीच का संबंध गहरा है और दुनिया में विशिष्ट है। भारत में हाथियों की समृद्धि के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती है। वे सांस्कृतिक प्रतीक हैं और हमारे धर्म, कला, साहित्य और लोककथाओं के हिस्से हैं। भारतीय महाकाव्य हाथियों के संदर्भों से भरे पड़े हैं। यह भी माना जाता है कि महाभारत को भगवान गणेश ने अपने एक टूटे हुए दांत से लिखा था।

    1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से हाथियों की आबादी का रुझान, अन्य देशों के विपरीत, अपेक्षाकृत स्थिर रहा है। भारत में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जैसे मजबूत कानून हैं, जो हाथियों को उच्चतम कानूनी संरक्षण प्रदान करते हैं, चाहे वे जंगल में हों या मानव देखभाल के तहत हों। वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, हाथियों के निवास-स्थानों को नुकसान और निवास-स्थानों के क्षेत्रफल में कमी लाने से बचाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पिछले नौ वर्षों के कार्यकाल में, भारत ने मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व के समर्थन से हाथियों के संरक्षण के लिए एक सक्षम संस्थागत व्यवस्था का निर्माण किया है।


    सामूहिक रूप से, हाथी भारत के कुल भूभाग के लगभग पांच प्रतिशत क्षेत्र में पाए जाते हैं। हाथियों की वर्तमान सीमा-क्षेत्र में संरक्षित क्षेत्र और बहु-उपयोग वाले वनों के अन्य रूप शामिल हैं। वे वन क्षेत्रों के बीच आने-जाने के लिए मानव-निवास वाले क्षेत्रों का भी उपयोग करते हैं।

    हाथीदांत का अवैध शिकार, जो अफ्रीकी हाथियों के संरक्षण के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है, भारत में नियंत्रण में है। हालांकि, 1970 और 1980 के दशक में ऐसा नहीं था, जब अवैध हाथी दांत के अंतरराष्ट्रीय अवैध बाजार के लालच में अवैध शिकार के कारण, हमने कई हाथियों को खो दिया था। इन हत्याओं ने हाथियों के संरक्षण के समक्ष एक गंभीर खतरा पैदा कर दिया था और राज्यों तथा केंद्र के बीच सक्रिय समन्वय में, संरक्षण को पुनर्जीवित करने के लिए मिशन-मोड में काम करने की आवश्यकता थी। इस बात को स्वीकार करने के फलस्वरूप, 1992 में महत्वाकांक्षी हाथी परियोजना का शुभारंभ हुआ, जो बाघ परियोजना के अनुरूप था और जिसके तहत बाघों को आबादी को पतन के कगार से वापस लाने में सफलता मिली थी।

    हाथी परियोजना, एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जो हाथियों के संरक्षण और कल्याण के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है। हाथी आरक्षित क्षेत्र, हाथी परियोजना के तहत मौलिक प्रबंधन इकाई हैं। वर्तमान में, पूरे भारत में 80,778 वर्ग किलोमीटर में फैले 33 हाथी आरक्षित क्षेत्र हैं। वर्ष 2022 में भारत में हाथी परियोजना के 30 वर्ष पूरे हुए हैं।

    हाथी परियोजना ने हाथी संरक्षण के प्रयासों को गति दी है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर पिछले दो वर्षों के दौरान दो नए हाथी आरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं। दुधवा और उत्तर प्रदेश के आसपास के क्षेत्रों में अधिसूचित तराई हाथी आरक्षित क्षेत्र का उद्देश्य, भारत और नेपाल के बीच सीमा-पार के हाथियों के प्रबंधन में लंबे समय से चल रही समस्याओं का समाधान करना है। तमिलनाडु के दक्षिणी-पश्चिमी घाट के पहाड़ों में अगस्तियारमलाई हाथी आरक्षित क्षेत्र, पेरियार और अगस्तियारमलाई के बीच संपर्क बहाल करने की दिशा में गति प्रदान करेगा।

    हाथियों के संरक्षण और मानव-हाथी संघर्ष को कम करने के लिए, गलियारों के महत्व को स्वीकार करते हुए, हाथी परियोजना के अंतर्गत पूरे भारत में, चिह्नित किए गए हाथी गलियारों के लिए, भू-भाग सत्यापन का कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि कुछ महत्वपूर्ण हाथी गलियारों, जैसे उत्तराखंड में चिल्ला-मोतीचूर गलियारे, केरल में तिरुनेली-कुदरकोट गलियारे और कुछ अन्य को सफलतापूर्वक बहाल कर दिया गया है। पहली बार ओडिशा में एक महत्वपूर्ण गलियारे को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत एक संरक्षण आरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया गया था।

    ट्रेन से हाथियों की टक्कर के मुद्दे को हल करने के लिए रेलवे तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की बैठकें निरंतर हो रही हैं। समस्या के समाधान के लिए दोनों मंत्रालय, राज्य के वन विभागों और अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

    भारत में हाथियों के संरक्षण की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है – मानव-हाथी संघर्ष। सरकार इस समस्या के गंभीरता को स्वीकार करती है और संघर्षों को कम करने के लिए लोगों के साथ खड़ी है। वन्यजीवों के कारण होने वाले फसल नुकसान को शामिल करने के लिए, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी नई पहलों का विस्तार किया गया है, ताकि प्रभावित किसानों को समय पर मुआवजे का भुगतान किया जा सके। संघर्ष के प्रति प्रतिक्रिया अवधि में और समय पर अनुग्रह राशि के भुगतान में, सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।

    भारत तेजी से विकास कर रहा है और आर्थिक प्रगति कर रहा है, ऐसे में समय की मांग है कि प्रकृति-संस्कृति संबंधों को बनाए रखा जाये। हमारी पौराणिक कथाएं, कला, धर्म और विरासत प्रकृति के साथ एकता के सद्गुणों पर जोर देती हैं। हाथी संरक्षण संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और असम वन विभाग भारत में हाथी परियोजना के 30 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में ‘गज उत्सव’ मनाएंगे। ‘गज उत्सव’ इस शानदार प्रजाति के संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का सामूहिक रूप से संकल्प लेने का एक मंच होगा।

    (लेखक, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तनमंत्री हैं।)

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