– मृत्युंजय दीक्षित
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के एक निर्णय से छद्म धर्मनिरपेक्ष दल बेचैन और व्यग्र हैं। चिंता में हैं कि अब उनकी तुष्टिकरण की राजनीति का क्या होगा ? प्रदेश की राजनीति में अभी तक कहा जाता रहा है कि दिवंगत सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव चरखा दांव चलते थे। इस बार असली चरखा दांव योगी आदित्यनाथ ने चला है। इसने मुस्लिम तुष्टिकरण और जातिवादी नेताओं को चित कर दिया है। जो लोग रामचरित मानस जैसे दिव्य व पवित्र ग्रंथ की कुछ चौपाइयों का गलत अर्थ निकालकर हिंदू समाज में जातिभेद व विवाद उत्पन्न कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास कर रहे थे वो अब सकते में हैं। यह लोग सोच रहे थे कि प्रदेश में भगवा लहर को सनातन धर्म और सनातन संस्कृति के आस्था के केंद्र और धर्मग्रंथों का दुष्प्रचार करके और सामाजिक समरसता का वातावरण दूषित करके रोका जा सकता है।
प्रदेश सरकार ने 22 मार्च से 30 मार्च तक दुर्गा मंदिरों और शक्तिपीठों में दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी जागरण व गायन के कार्यक्रम कराने का आदेश तो जारी किया ही है साथ ही अष्टमी और श्रीरामनवमी के दिन अखंड रामायण का पाठ कराने का आदेश भी जारी किया है। नवरात्रि के पावन अवसर पर इन कार्यक्रमों में महिलाओं एवं बालिकाओं सहित जनसहभगिता को बढ़ाने पर बल दिया गया है। इन सभी कार्यक्रमों के अवसर पर मंदिर परिसरों में विकास कार्यों एवं बुनियादी सुविधाओं की होर्डिंग भी लगेंगी। इन आयोजनों को भव्यता प्रदान करने के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति चयनित देवी मंदिरों, शक्तिपीठों में कलाकारों के माध्यम से कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। प्रदेश में पहली बार प्रशासन स्तर पर देवी मंदिरों एवं शक्तिपीठों में ऐसे कार्यक्रम आयोजित होने जा रहे हैं।
वर्तमान परिदृश्य में सामाजिक व राजनीतिक दृष्टिकोण से यह आयोजन बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, क्यांकि अभी तक प्रदेश में जितनी भी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारें रहीं उनके कार्यकाल में केवल और केवल मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का विकृत दौर ही देखा गया है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि सरकार के इस निर्णय का आज वही दल विरोध कर रहे हैं जिनके कार्यकाल में राजभवन व मुख्यमंत्री आवास रोजा इफ्तार का केंद्र बन जाते थे। आज सपा सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है। याद करिये सपा के कार्यकाल में कब्रिस्तानों के निर्माण के लिए 1200 करोड़ रुपये जारी हुए थे। मंदिरों में रामायण पाठ का विरोध वो लोग कर रहे है जिन्होंने या तो भगवान राम को काल्पनिक बता रखा है या रामचरित मानस का अपमान किया है । यह वही लोग हैं जिनके मुखिया दिवंगत मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या में निहत्थे राम भक्तों का नरसंहार करवाया था।
सरकार के निर्णय का आदेश आने के बाद समाजवादी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने एक बार फिर जहरीला बयान दिया। मौर्य ने कहा है कि आम जनमानस ने स्वतः रामचरित मानस का पाठ करना बंद कर दिया है तब सकरार अपने धन से मंदिरों में रामायण पाठ कराने जा रही है। स्वामी प्रसाद का यह बयान बहुत ही विकृत व झूठा है। स्वामी प्रसाद ने कहा है-“इस प्रकार का आयोजन महिलाओं, दलितों, पिछड़ों का अपमान है”। यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण व राजनीतिक ईर्ष्या वश दिया गया बयान है। तथ्य यह है कि आज प्रदेश की राजनीति में स्वामी प्रसाद जैसे तथाकथित जातिवादी राजनीतिक नेताओं को कोई कोई भाव नहीं दिया जा रहा है। स्वामी प्रसाद जैसे नेताओं को यह पता ही नहीं है कि जब से उन्होंने रामचरित मानस का झूठा विमर्श गढ़ा है तब से हिंदू समाज ही नहीं अन्य विद्वान व नागरिक वर्ग भी रामचिरत मानस को एक बार फिर पढ़ रहा है। गीता प्रेस जो रामचरित मानस के प्रकाशन और विपणन का प्रमुख संस्थान है, के अनुसार स्वामी प्रसाद के मानस विरोधी कृत्य के पश्चात मानस की बिक्री में वृद्धि हुई है। विगत दिनों दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय पुस्तक मेले में भी लोगों ने रामचरित मानस में रुचि दिखाई और पहले ही दिन 200 से अधिक प्रतियां बिक गईं।
समाजवादी पार्टी के सभी मुस्लिम सांसद, मुस्लिम लीग, कांग्रेस, बहुजन समाजवादी पार्टी और एआईएएम सरकार के निर्णय का कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह लोग सरकार से सवाल कर रहे हैं कि आप रमजान में मुस्लिम समाज के लिए क्या कर रहे हैं? इन तथाकथित दलों की नजर में यह संविधान विरोधी कदम है। सपा मुखिया बयान दे रहे हैं कि यह रकम तो बहुत कम है अपितु इस काम के लिए सरकार को कम से कम दस करोड़ देने चाहिए थे।
भाजपा सरकार की ओर से मंत्री जयवीर सिंह का बयान आया है कि सरकार भारतीय संस्कृति व परम्पराओं को आगे बढ़ाने के लिए इस प्रकार के कदम उठाती रहेगी। अगर आवश्यकता पड़ी तो ऐसे आयोजनों के लिए सरकार और अधिक धन जारी करेगी। प्रदेश सरकार ने इस प्रकार का आयोजन करके हिंदू समाज को एक बहुत बड़ा उपहार दिया है और वह भी उस समय जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण तीव्र गति से चल रहा है।
योगी के इस दांव से यह सिद्ध हुआ है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष विरोधी दल असल में हिंदू विरोधी हैं। यह सभी दल अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पचा नहीं पा रहे हैं। यह आगामी एक जनवरी से पहले प्रदेश में फिर वर्ग का रंग घोलना चाहते हैं क्यों कि इसी दिन राम मंदिर का भव्य उद्घाटन होना है। इनकी कोशिश है कि इसमें खलल पड़े।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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