लखनऊ। यूपी में 18वीं विधानसभा के लिए हो रहा चुनाव (Elections to the 18th Legislative Assembly in UP) इस मायने में भी विशिष्ट है कि पहली बार तीन ऐसे चेहरे अपनी-अपनी पार्टी की अगुवाई करते हुए आमने-सामने हैं जो पूरे पांच साल मुख्यमंत्री (CM) रहे हैं। मजे की बात यह भी है कि तीनों एक क्रम से मुख्यमंत्री रहे और तीनों ने पूर्ण बहुमत की सरकार का नेतृत्व किया। इस तरह मतदाताओं के पास तीनों के कार्यकाल का मूल्यांकन करते हुए उनकी पार्टी के प्रत्याशियों का चुनाव करने की सुविधा है।
बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) चौथी बार वर्ष 2007 में मुख्यमंत्री बनीं। तब उनकी पार्टी अकेले दम पर 206 सीटें हासिल कर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। वर्ष 1984 में अपनी स्थापना के बाद पहली बार बसपा (BSP) को अपने दम पर सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने में सफलता मिली थी। बसपा के वोटबैंक में भी भारी इजाफा हुआ था। इस चुनाव में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी सपा को महज 97 व तीसरे नंबर पर रही भाजपा (BJP) को 51 सीटों से संतोष करना पड़ा था। इस सफलता के बाद बसपा (BSP) की सोशल इंजीनियरिंग राजनीतिक पंडितों के लिए शोध का विषय बन गई थी।
वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा की चुनावी गणित के सामने सपा-बसपा दोनों चित हो गए। प्रदेश में तीसरे नंबर की पार्टी हो चुकी भाजपा ने ऐसी छलांग लगाई कि उसने स्पष्ट बहुमत को प्रचंड बहुमत में तब्दील कर दिया। भाजपा ने अपने दो सहयोगी दलों के साथ मिलकर 325 सीटें जीत लीं, जिसमें 312 सीटें उसकी खुद की थीं। भाजपा को अपनी सीटों से ही तीन चौथाई बहुमत हासिल हो गया था। प्रचंड बहुमत की इस सरकार की अगुवाई करने का मौका योगी आदित्यनाथ को मिला। वह भाजपा के प्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री भी हैं, जो अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। वर्ष 1991 में भी भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ 221 सीटें जीतकर सत्ता में आई थी, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे।
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