आज है मो. रफी साहब की बरसी
रफी साहब बड़े गायक के साथ बड़े दिलवाले और नेकदिल इंसान भी थे कौन भूल सकता है मो. रफी को भले ही हमसे जुदा हुए 40 साल हो गए हे गए। पर एक लम्हे को भी कभी महसूस नहीं हुआ कि वो अब हमारे बीच नहीं हैं। ताज़ा और महकते फूलों की तरह रफी की आवाज़ आज भी वैसी ही है, जैसे कभी रफी
के होने पर थी।
आज ही के दिन 31 जुलाई 1980 को रफी साहब ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था । 24 सितंबर 1924 को कोटला सुल्तानपुर में जन्मा था संगीत का यह कोहिनूर, पंजाब की माटी का कुछ असर रहा होगा कि बचपन से ही गाने की लत लग गई। ये लत लगाई थी एक भिखारी ने भिखारी जब भी रफी के घर के पास से गाते हुए गुजरता, वे उसका गाना सुनते हुए उसके पीछे पीछे दूर तक निकल जाते, और खुद भी उसके गानों को गाते, पिता हाज़ी अली मोहम्मद को गाना-बजाना पसन्द नहीं था इसलिए वो रफी को इस दिशा में नहीं जाने देना चाहते थे। ऐसे में बड़े भाई मोहम्मद शफी फरिश्ता बनकर आए। रफी की काबिलियत को उन्होंने समझा। पिता जी को मनाया और रफी को बड़े गुलाम अली खां के भाई बरकत अली खां साहब के पास ले गए। यहीं उनकी संगीत की तालीम शुरू हुई। 1946 में वे मुम्बई आ गए नौशाद ने पहले आप नाम फिल्म में गाने का मौका दिया उसके बाद तो रफ़ी साहब की आवाज़ सभी के दिलों पर राज करने लगी, 26 हजार से अधिक गीत रफी साहब ने ने गाएं जो रिकॉर्ड है ।
रफी साहब आप एक गाना सुना दीजिए, हम एडमिशन दे देंगे
मुंबई शहर की बात है, रफ़ी साहब की मकबूलियत उनदिनों बुलंदी पर थी। उनके साथ काम करने वाले एक बहुत ही साधारण से आदमी ने अपने बच्चे के एडमिशन के लिए उनसे सिफारिश करने को कहा, रफ़ी ने पूछा मेरे कहने से तुम्हारे बच्चे का एडमिशन हो जाएगा। उस आदमी ने कहा- हां बिल्कुल हो जाएगा। बस आपको मेरे साथ स्कूल जाना पड़ेगा। रफी बहुत सहजता से तैयार हो गए और बच्चे के एडमिशन के लिए स्कूल के लिए चल पड़े, रफ़ी साहब जब स्कूल पहुंचे तो स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा-आप एक गाना सुना दिजिए तो हम बच्चे का एडमिशन ले लेंग। उन्होंने पूछा- हारमोनियम है, हारमोनियम लेकर वे बैठ गए और उन्होंने एक गाना पूरे स्कूल को सुनाया। बच्चे का एडमिशन हो गया।
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