भोपाल। पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में बारिश थमी हुई है। हालांकि मौसम वैज्ञानिकों (Weather Scientists) का दावा है कि 19 अगस्त से मानसून फिर सक्रिय होगा लेकिन बारिश लंबे अंतराल के कारण प्रदेश के बड़े हिस्से में सोयाबीन की फसलें प्रभावित होने लगी हैं। खासकर ऐसे जिले जहां जून के पहले अथवा दूसरे सप्ताह में बोवनी कर दी गई थी। ऐसे स्थानों पर जल्दी पकने वाली फसल में सोयाबीन अब पकने की स्थिति में है। बारिश नहीं होने से इल्लियां, फफूंद या अन्य रोग होने की आशंका बनी हुई है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोयाबीन रिसर्च सेंटर, इंदौर (Indian Institute of Soybean Research Centre, Indore) के वैज्ञानिक डॉ. बीयू दुपारे (Dr. BU Dupare) कहते हैं, जिन जिलों में लंबे समय से बारिश नहीं हुई है, वहां जमीन में दरार पडऩे के पहले ही सिंचाई की जाना चाहिए। यदि सिंचाई स्प्रिंकलर के माध्यम से की जाए तो परिणाम अच्छे आएंगे। सोयाबीन में सिंचाई के परंपरागत तरीकों से बचना चाहिए। ऐसे किसान जो अभी सिंचाई की स्थिति में नहीं हैं वे पोटेशियम नाइट्रेट या मैग्नेशियम कार्बोनेट या ग्लिसरॉल (Potassium Nitrate or Magnesium Carbonate or Glycerol) का छिड़काव कर सकते हैं। प्रदेश के ऐसे स्थान जहां पर जल्दी पकने वाली किस्म जेएस 9560 लगाई है। यदि इस बीज की जून के मध्य में बोवनी हुई है तो वहां फसल पकने की स्थिति हो सकती है। ऐसी स्थिति में फसल को चूहों से बचाना जरूरी है। ऐसे स्थानों पर जिंक फास्फाइड मिले आटे की रोटियां रखना चाहिए। कुछ स्थानों पर फफूंद की शिकायतें भी मिल रही हैं। वहां फसल को बचाने के लिए टेबूकोनाजोल या इसे सल्फर के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इधर, लगातार सोयाबीन की फसल में परेशानी के चलते पिछले साल की तुलना में इस साल सोयाबीन का रकबा कम हो गया है। फफूंद और वायरस के अटैक से उत्पादन इस साल भी प्रभावित हो सकता है।
देरी से पकने वाली फसल
ऐसे किसान जिन्होंने देरी से पकने वाला बीज लगाया है। यदि उन जगहों पर फूल आने की स्थिति है तो इन फसलों को इल्लियों से बचाने के लिए लैम्बड़ा सायहलोथ्रिन या इंडोक्सार्ब या फ्लूबेंडियामाइड या स्पायनेटोरम या क्लोरएंट्रानिलिप्रोल का छिड़काव करना चाहिए। जबलपुर व भोपाल संभाग के कुछ जिलों में आरवीएस 2034 किस्म की फसल लगाई है। इन संभाग कि किसानों को फफूंद की चिंता ज्यादा सता रही है।
पीला मोजेक वायरस भी सक्रिय
इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, विदिशा सहित प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पीला मोजेक वायरस या सोयाबीन मोजेक वायरस देखा जा रहा है। इससे पत्तियों का पीलापन बढ़ता है और पत्तियां सिकुड़कर टेढ़ीमेढ़ी हो जाती है। इसे सफेद मक्खी अन्य पौधों तक पहुंचा देती है, जिससे फसल खराब होती है। ऐसे पौधों को तुरंत उखाड़कर फेंक देना चाहिए। साथ ही सफेद मक्खी से बचाने के लिए पीला स्टिकी टैप लगाया जाना चाहिए। इससे बचने के लिए थायमिथोक्सम व लैम्बड़ा सायहेलोथ्रिन का छिड़काव करना चािहिए।
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