नई दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत (Delhi court) ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के अलगाववादी नेताओं (Separatist leaders) में से एक यासीन मलिक (Yasin Malik) को टेरर फंडिंग के मामले (terror funding case) में उम्रकैद की सजा (sentenced to life) सुनाई। कोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा कि इन अपराधों का मकसद ‘भारत के विचार की आत्मा पर हमला करना’ और भारत संघ से जम्मू-कश्मीर को जबरदस्ती अलग करने का था। यासीन मलिक को सजा सुनाए जाने के बाद तिहाड़ जेल भेज दिया गया। सजा होने से पहले भी यासीन तिहाड़ जेल की बैरक नंबर 7 में बंद था और अभी वो इसी जेल में रहेगा। जेल में बंद यासीन मलिक पर सीसीटीवी कैमरे के जरिए नजर रखी जाएगी।
यासीन मलिक को आगे भी इसी जेल में रखा जाएगा या फिर किसी और जगह भेजा जाएगा, इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है। विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने विधिविरुद्ध क्रियाकलाप रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग सजा सुनाईं। एनआईए की तरफ से की गई मृत्युदंड की मांग को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि मलिक को जिन अपराधों के लिये दोषी ठहराया गया है वे गंभीर प्रकृति के हैं।
न्यायाधीश ने कहा, ‘इन अपराधों का उद्देश्य भारत के विचार की आत्मा पर प्रहार करना था और इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत संघ से जबरदस्ती अलग करना था। अपराध अधिक गंभीर हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था। अपराध की गंभीरता इस तथ्य से और बढ़ जाती है कि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन के पर्दे के पीछे किया गया था।’ ऐसे अपराध के लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड है।
यासीन को इन दो अपराधों में हुई उम्र कैद की सजा
अदालत ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) नेता मलिक को दो अपराधों आईपीसी की धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और यूएपीए की धारा 17 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाना) के लिए दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई। न्यायाधीश ने 20 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि जिस अपराध के लिए मलिक को दोषी ठहराया गया है उनकी प्रकृति गंभीर है। न्यायाधीश ने हालांकि कहा कि यह मामला दुर्लभ से दुर्लभतम मामला नहीं है जिसमें मृत्युदंड सुनाया जाए।
अपराध साजिश के रूप में थे: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से अपराध किए गए थे, वह साजिश के रूप में थे, जिसमें उकसाने, पथराव और आगजनी करके विद्रोह का प्रयास किया गया था, और बहुत बड़े पैमाने पर हिंसा के कारण सरकारी तंत्र बंद हो गया था। हालांकि उन्होंने संज्ञान लिया कि अपराध करने का तरीका, जिस तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया गया था, उससे वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि विचाराधीन अपराध सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित दुर्लभ से दुर्लभतम मामले की कसौटी में विफल हो जाएगा। सुनवाई के दौरान मलिक ने दलील दी कि उसने 1994 में हिंसा छोड़ दी थी।
कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?
न्यायाधीश ने कहा, ‘मौजूदा मामले में, आरोप पर आदेश निर्दिष्ट करता है कि कैसे धन जुटाया गया था और उसे पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के साथ-साथ घोषित आतंकवादी हाफिज सईद और अन्य हवाला माध्यम से कैसे प्राप्त किया गया था। इस राशि का इस्तेमाल अशांति पैदा करने के लिए किया गया था, जहां सार्वजनिक विरोध की आड़ में, बड़े पैमाने पर पथराव और आगजनी की आतंकी गतिविधियों के लिए भुगतान किया गया था।’
कोर्ट के सामने दिया यह तर्क
न्यायाधीश ने मलिक पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए कहा, ‘इसलिए, मेरी राय में, यह उचित समय है कि यह माना जाए कि आतंकवाद का वित्तपोषण सबसे गंभीर अपराधों में से एक है और इसमें और अधिक कड़ी सजा दी जानी चाहिए।’ मलिक ने कोर्ट के सामने तर्क दिया था कि उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है कि पिछले 28 वर्षों में उसने किसी भी आतंकवादी को कोई आश्रय प्रदान किया था या किसी आतंकवादी संगठन को कोई साजोसामान संबंधी सहायता प्रदान की थी।’
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