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    पूर्व गृह मंत्री की बेटी के किडनैप के मामले में यासीन मलिक पर आरोप तय

  • January 12, 2021

    नई दिल्‍ली। जम्मू में टाडा कोर्ट ने जे.के.एल.एफ. चीफ और पूर्व आतंकी यासीन मलिक के खिलाफ 1989 में हुए रूबिया सईद अपहरण मामले में आरोप तय कर दिए हैं. यह देश का बहुत चर्चित अपहरण कांड था. पिछले साल मार्च में जम्मू की टाडा अदालत ने यासीन मलिक और उसके अन्य साथियों के खिलाफ 1990 में आईएएफ अधिकारी की हत्या के मामले में भी आरोप तय किए थे।
    विदित हो कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद को जेकेएलएफ के आतंकवादियों ने अगवा कर लिया था। यासीन मलिक के ऊपर रूबिया सईद के किडनैपिंग और आतंकी हमले में शामिल होने का आरोप है। इस मामले में सीबीआई ने टाडा कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी जिसमें यासीन मलिक समेत दो दर्जन आरोपियों के नाम शामिल हैं। इसमें कई फिलहाल फरार चल रहे हैं। 31 साल पुराने इस अपहरण केस से देश में हड़कंप फैल गया था। इसके बदले में 5 आतंकियों को छोड़ना पड़ा था। उस वक्त सरकार को काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी। रूबिया के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद वीपी सिंह सरकार में गृहमंत्री थे।
    वह तारीख 8 दिसंबर 1989 थी। तब केंद्र में वीपी सिंह को सत्ता संभाले एक हफ्ता भी नहीं बीता था। दोपहर 3 बजे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद अपनी पूरी ड्यूटी होने के बाद घर के लिए निकली। वह उस वक्त एमबीबीएस पूरा करने के बाद श्रीनगर के अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही थीं। वह बस में सवार हुई जो लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी। बस में आतंकी पहले से सवार थे।
    जैसे ही बस चानपूरा चौक के पास पहुंची, तीनों आतंकियों ने बंदूक की नोक पर बस रुकवा दी। रूबिया सईद को नीचे उतारकर नीले रंग की मारुति कार में बिठा दिया और फरार हो गए। घटना के दो घंटे बाद ही जेकेएलएफ के जावेद मीर ने एक स्थानीय अखबार को फोन करके भारत के गृहमंत्री की बेटी के अपहरण की जिम्मेदारी ली। यह खबर सामने आते ही कोहराम मच गया।
    दिल्ली से श्रीनगर तक पुलिस से लेकर इंटेलिजेंस की बैठकों का दौर शुरू हो गया। आतंकियों ने रूबिया को छोड़ने के बदले में 7 आतंकियों की रिहाई की मांग की। मध्यस्ता के लिए कई माध्यम खोले गए। इस पूरी कवायद में 5 दिन बीत गए और 8 दिसंबर से 13 दिसंबर की तारीख आ चुकी थी।
    13 दिसंबर 1989 की सुबह दिल्ली से दो केंद्रीय मंत्री विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल और नागरिक उड्डयन मंत्री आरिफ मोहम्मद खान श्रीनगर पहुंचे। उनके साथ तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नाराणयन भी थे। तीनों फारूक अब्दुल्ला से मिलने पहुंचे थे। जब यह अपहरण कांड हुआ था उस वक्त फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।
    फारूक अब्दुल्ला और दोनों केंद्रीय मंत्रियों के बीच बातचीत शुरू हुई। फारूक अब्दुल्ला आतंकियों को छोड़ने पर असहमत थे लेकिन आखिर में झुकना पड़ा। एक इंटरव्यू में फारूक अब्दुल्ला ने पूरे वाकये के बारे में बताया था। उन्होंने बताया था, ‘वीपी सिंह ने मुझे आधी रात को कॉल किया और कहा कि डॉक्टर साब हम टीम भेज रहे हैं। कृपया उन्हें (रूबिया) छुड़ाने में मदद करें। सुबह 5 बजे मिस्टर गुजराल (आईके गुजराल), आरिफ मोहम्मद खान और एमके नारायणन मुझे मेरे दरवाजे पर मिले।’
    तीनों को हमाम में बिठाया गया जो सबसे गर्म कमरा था। दिसंबर का महीना था और तीनों लोग कांप रहे। मैंने (फारूक अब्दुल्ला) उन्हें कहवा दिया और अपने चीफ सेक्रेटरी और मिस्टर (एएस) दुलत (श्रीनगर में तत्कालीन आईबी चीफ) से उन्हें ब्रीफ करने को कहा। दुलत ने गुजराल से कहा, ‘आरिफ के साथ मैं भी यह कहना चाहता हूं कि यह वह बात नहीं है जो हमें कैबिनेट में बताई गई थी। जो कुछ हमें बताया गया था वह काफी अलग था।’ उन्होंने (दुलत) सुझाव दिया कि दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री को इस बारे में बताना चाहिए और लड़की को छुड़ाने के लिए डिप्लोमेटिक दबाव बनाना चाहिए। इस पर गुजराल ने कहा था कि नहीं हमारे पास अथॉरिटी है और अगर फारूक अब्दुल्ला आतंकियों को नहीं छोड़ते हैं तो हम उन्हें हटाने जा रहे हैं।
    13 दिसंबर की दोपहर तक सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौता हो गया। समझौते के तहत उस दिन शाम 5 बजे 5 आतंकियों को रिहा किया गया। उससे कुछ ही घंटे बाद लगभग साढ़े सात बजे रूबिया को सोनवर स्थित जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुंचाया गया। रूबिया को उसी रात विशेष विमान से दिल्ली लाया गया।
    एयरपोर्ट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी दूसरी बेटी महबूबा मुफ्ती मौजूद थे। उन्होंने रुबिया को गले से लगा लिया। इस दौरान मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था कि एक पिता के रूप में मैं खुश हूं लेकिन एक नेता के रूप में यहीं कहना चाहूंगा कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। उनके चेहरे पर तनाव स्पष्ट दिख रहा था।
    इस घटना का मास्टरमाइंड अशफाक वानी था। उसे 31 मार्च 1990 को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था। अशफाक जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी JKLF से जुड़ा था। अपहरण से पहले उसने मुफ्ती के घर और अस्पताल की रेकी भी की थी।

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