जिसे वक्त ने मिटा डाला… जिसे उसके अपनों ने दफन कर डाला… जिसे उसकी करतूतों ने मिट्टी में मिला डाला… जो पूरे वतन का सरमाएदार बनता था, उसका न तो इस दुनिया में अंश बचा न वंश बचा…मगर इस देश के अकल के अंधों, दिमागी दानवों ने न केवल जिंदा कर डाला, बल्कि उसे कफन से बाहर निकालने पर भी तूले हुए हैं… एक मूर्ख छावा बनाता है… जख्मों पर नमक लगाता है… आतंक और आतताई का चेहरा दिखाता है… अपनों पर हुए जुल्म, ज्यादती को पेशा बनाता है… लोगों की भावनाओं को नासूर बनाता है… अतीत की भयावह तस्वीर में से झांकती क्रूरता से खौलता खून सडक़ पर बिखेरने को बेताब हो जाता है… वक्त का दर्द आक्रोश की आग बनकर सब कुछ जलाने पर आमादा हो जाता है… जिसका वजूद मिट चुका…जो कब्र में दफन हो चुका, उसे निकालकर फिर हमारी जिंदगी में लाना और आक्रोश की आग में जलाना, सही-गलत के तर्कों में देश को उलझाना और राजनीति का शिकार बनाना … इस मूर्खता में उलझता देश और उलझाते नेता जुबानी जंग दिखा रहे हैं…कोई कब्र तोडऩे पर 5 बीघा जमीन देने की बहादुरी दिखा रहा है…कोई संभाजी का समर्थन, त्याग, वीरता, असहनीय क्षमता को पैसों में तौलकर कब्र तोडऩे वालों के लिए इनाम की घोषणा किए जा रहा है… संभाजी की लड़ाई देश को बचाने, अत्याचार को मिटाने और अस्तित्व को बचाने की थी… लेकिन लोगों को भडक़ाने और औरंगजेब को जिंदा कर उसकी वहशीयत और दरिंदगी को जड़ से निकालकर सहानुभूति और सौहार्द के अस्तित्व को मिटाने का व्यापार देश में किया जा रहा है… चैनल जाजम बिछा रहे हैं.. जुबानी जंग के मैदान सजा रहे हैं… नफरत और आक्रोश को भडक़ा रहे हैं और हम संभाजी और शिवाजी के मंसूबो को समझ नहीं पा रहे हैं…किसी भी अत्याचार को दफनाया जाता है…अत्याचारी को मिटाया जाता है…दुर्दांतों की नापाक याद को भुलाया जाता है…लेकिन आज पूरा देश औरंगजेब का नाम बार-बार दोहराकर उसके नाम को इतिहास से वर्तमान में बदल रहा है…पता नहीं इस देश की सोच को क्या हो रहा है… पता नहीं कौन इस मूर्खता के बीज बोकर आक्रोश और नफरत की आग में देश को जला रहा है….
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