वाराणसी (Varanasi)। तीन महानिशाओं में अंतिम कही जाने वाली महाशिवरात्रि (Mahashivratri) के चार प्रहर में भगवान शिव का चार विशेष अभिषेक उनकी कृपा वर्षा में भीगने का सबसे आसान उपाय है। इस वर्ष यह अवसर आप को 18 फरवरी को मिलेगा। शिवमहापुराण के अनुसार शिवरात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घी और चौथे प्रहर में शहद से अभिषेक करके महादेव को सहज प्रसन्न किया जा सकता है।
माता सती का विवाह भगवान शिवजी से इसी महानिशा में हुआ था। पौराणिक मान्यता (mythology) है कि फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी पर निशा बेला में भगवान शिव ज्योतिर्लिंग (Lord Shiva Jyotirlinga) के रूप में प्रकट हुए थे। चतुर्दशी तिथि 18 फरवरी की रात्रि 0803 बजे लगेगी जो अगले दिन 19 फरवरी सायं 0419 बजे तक रहेगी। चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्दशी तिथि (महानिशीथकाल रात्रि 11 बजकर 43 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक) में मध्यरात्रि में भगवान शिवजी की पूजा (worship) विशेष पुण्य फलदायी होगी।
शिव के पूजन में पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर शिवजी का दूध व जल से अभिषेक करके उन्हें वस्त्रत्त्, चंदन यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करें। धूप-दीप से आरती करें।
चार प्रहर के विशिष्ट अभिषेक
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि प्रथम प्रहर भगवान शिव का अभिषेक ऊं ह्रीं ईशान्य नम मंत्र का जप करते हुए दूध से करना चाहिए। द्वितीय प्रहर में ऊं ह्रीं अघोराय नम जपते हुए दही से अभिषेक करें। तृतीय प्रहर में ऊं ह्रीं वामदेवाय नम का जप करते हुए घी से अभिषेक करें। चतुर्थ प्रहर में शहद से अभिषेक करें और ऊं ह्रीं सद्योजाताय नम का जप करें।
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