नई दिल्ली। दुनियाभर में तापमान तेजी से बढ़ता (temperature rises rapidly) जा रहा है। बढ़ती गरमाहट (Rising warming) और जलवायु परिवर्तन (climate change) को लेकर वैश्विक स्तर में बहस (global debate) भी लंबे समय से चल रही है। कुछ देश इस मुद्दे पर साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं तो कुछ इसकी चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए अपने यहां अंधाधुंध औद्योगिक विकास को बढ़ावा दे रहे हैं। इसे लेकर कई सालों से जलवायु परिवर्तन (climate change) के विषय पर शोधकर्ता वैज्ञानिक लगातार चेतावनी देते रहे हैं कि वर्ष 2070 तक धरती का तापमान इतना अधिक बढ़ जाएगा कि यहां रहना तकरीबन असंभव हो जाएगा।
जुलाई 2019 को मानव इतिहास के अब तक के सबसे गर्म माह के रूप में दर्ज किया गया है। इससे पहले जुलाई 2016 था। 2021 की गर्मियों में ही उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तापमान से पश्चिमी कनाडा और अमेरिका के ऑरेगन, कैलिफोर्निया, पोर्टलैंड व वाशिंगटन जैसे राज्यों में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं। ब्रिटेन में भी हीट वेव का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। बीते सप्ताह ही इन क्षेत्रों में लगभग हजार से ज्यादा लोगों की जान गई है।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर पश्चिम में उच्च दबाव का क्षेत्र बनने से गर्मी की यह लहर यानी हीट वेव पैदा हुई है, लेकिन इसे खतरनाक स्तर तक ले जाने के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। कनाडा के मौसम विभाग ने चेतावनी दी है अब दक्षिणी अल्बर्टा और सस्काचेवान क्षेत्र में तपन बढ़ सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि कार्बन उत्सर्जन (carbon emission) में कमी नहीं लाई गई तो परिणाम बेहद गंभीर होंगे। पिछले वर्ष गर्मियों से पहले साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुए एक अध्ययन में दावा किया गया था कि कई ऐसी जगहों पर जहां पहले गर्मी न के बराबर थी, वहां भी अब तापमान लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है। वहीं, इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनीटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) की ओर से हाल में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल यानी 2020 में तूफान, बाढ़, जंगल की आग और सूखे की वजह से करीब तीन करोड़ लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। बीती शताब्दी के तापमान संबंधी आंकड़ों को देखें तो भारत में भी इसका असर तेजी बढ़ रहा है।धरती पर रह पाना संभव नहीं होगा
गर्मी और उमस के मिश्रण की घटनाएं उत्तरी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, लाल सागर के तटीय क्षेत्र और कैलिफॉर्निया की खाड़ी ही वरन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों में भी नजर आ रही हैं। खाड़ी देशों सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात के शहरों में तो ऐसी घटनाएं उच्च स्तर पर हो रही हैं।
इन सबके मूल में जाते हैं तो वैज्ञानिक वैश्विक तपन और जलवायु परिवर्तन में बदलाव को इंगित करते हैं। ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक स्टीवन शेरवुड के अनुसार, अगर कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं ला पाए तो ऐसी घटनाओं का बढ़ना स्वाभाविक है। वे कहते हैं कि ये आकलन दर्शाते हैं कि धरती के कुछ भागों में जल्द ही इतनी गर्मी हो जाएगी कि वहां रह पाना संभव नहीं होगा।
भारत में क्या बदला
- 1901 के बाद से 2020 रिकॉर्ड आठवां सबसे गर्म वर्ष था। लेकिन यह 2016 में दर्ज किए गए सर्वाधिक गर्म तापमान की तुलना में काफी कम था।
- पिछले दो दशक 2001-2010 और 2011-2020, क्रमशः 0.23 डिग्री सेल्सियस और 0.34 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी के साथ रिकॉर्ड सबसे गर्म दशक थे।
- 1901 के बाद से 15 सबसे गर्म वर्षों में से 12 पिछले डेढ़ दशक 2006 और 2020 के बीच रहे थे।
- 1901-2020 के दौरान देश का औसत वार्षिक औसत तापमान 0.62 डिग्री सेल्सियस/100 वर्षों की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- भारत में खराब मौसम की वजह से पिछले साल 1,565 से अधिक लोगों की मौत हुई थी।
- वहीं, चक्रवात ने 2020 में देश में 115 लोगों और 17,000 से अधिक पशुओं की जान ली थी।
देश में इस सदी के रिकॉर्ड पांच सबसे गर्म वर्ष
- 2016 (0.71 डिग्री सेल्सियस)
- 2009 (0.55 डिग्री सेल्सियस)
- 2017 (0.541 डिग्री सेल्सियस)
- 2010 (0.539 डिग्री सेल्सियस)
- 2015 (0.42 डिग्री सेल्सियस)
दुनिया में ऐसे हो रहा बदलाव
- इसी सप्ताह कनाडा में 49.5 डिग्री सेल्सियस (121 डिग्री फारेनहाइट) का उच्च तापमान रिकॉर्ड किया गया है। ऐसा 1937 के बाद हुआ था। यहां अब तक 45 डिग्री सर्वाधिक था।
- अमेरिका के पोर्टलैंड, ओरेगांव में रविवार को 112 डिग्री फॉरेनहाइट तापमान दर्ज किया गया था। शनिवार को यह 108 डिग्री फॉरेनहाइट यानी रिकॉर्ड 42.2 सेल्सियस था।
- इससे पहले 1965 और 1981 में तापमान 41.7 डिग्री सेल्सियस तक गया था।
- आंकड़ों को देखें तो 1998 को छोड़कर, दुनिया के 19 सबसे गर्म वर्षों में से 18 साल 2001 के बाद ही दर्ज किए गए हैं।
- वहीं इतिहास में 2016 अब तक का सबसे गर्म वर्ष दर्ज हुआ था।
- 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, तापमान पिछले 20 वर्षों में जिस तेजी से बढ़ा है उतना 118 वर्षों (1901-2018) में कभी नहीं देखा गया।