नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने मंगलवार को जारी वार्षिक वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक में कहा कि 2030 में जीवाश्म ईंधन यानी तेल, गैस व कोयले की मांग चरम पर होगी। इसके बाद मांग घटने लगेगी। ऊर्जा एजेंसी ने मांग घटने के पीछे तर्क दिया कि तब तक बड़ी संख्या में इलेक्ट्रिक कारें सड़कों पर आ चुकी होंगी। चीनी अर्थव्यवस्था और ज्यादा धीमी गति से बढ़ रही होगी एवं दुनियाभर में स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जाना बढ़ेगा।
औद्योगिक देशों को परामर्श देने वाली अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की यह रिपोर्ट तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक के इस नजरिये के उलट है कि तेल क्षेत्र में खरबों डॉलर का नया निवेश किया जाना चाहिए। ओपेक ने इसी माह अपनी रिपोर्ट में 2030 से आगे जाकर मांग में और ज्यादा वृद्धि का अनुमान लगाया था। साथ ही कहा था कि तेल क्षेत्र की परियोजनाओं में नए निवेश रोकने का आह्वान गुमराह करने वाला है। इससे ऊर्जा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
आईईए की राय है कि तमाम देशों की मौजूदा सरकारी नीतियों को देखते हुए इस दशक में जीवाश्म ईंधन की खपत चरम पर पहुंचने के आसार दिख रहे हैं। आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल ने कहा, दुनियाभर में स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया जा रहा है। अब यह सवाल ही नहीं रहा कि ऐसा होगा या नहीं, बल्कि बात सिर्फ इतनी है कि यह कितनी जल्दी होगा।
भारत में एसी के लिए बिजली की मांग अफ्रीका की कुल खपत से होगी अधिक
आईईए ने बताया कि एसी के इस्तेमाल से 2050 तक भारत में बिजली की मांग 9 गुना बढ़ जाएगी। यह अफ्रीका की मौजूदा कुल खपत से कहीं ज्यादा होगी। आईईए के मुताबिक, भारत में अगले तीन दशक में दुनिया के किसी भी देश या क्षेत्र की तुलना में ऊर्जा मांग में वृद्धि सबसे अधिक होगी। मौजूदा नीतिगत परिदृश्यों को आधार मानें तो भारत की ऊर्जा आपूर्ति 2022 में 42 एक्साजूल से बढ़कर 2030 में 53.7 ईजे और 2050 में 73 ईजे हो जाने का अनुमान है। इसी तरह, तेल की मांग 2022 में 52 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 2030 में 68 लाख बीपीडी और 2050 में 78 लाख बीपीडी होने का अनुमान है।
स्पेस कूलिंग की जरूरत बढ़ी
भारत में बिजली की मांग इसलिए बढ़ रही है क्योंकि कई बार तापमान 25 डिग्री सेल्सियस के भी पार चला जाता है। आज लगभग 10 प्रतिशत बिजली की मांग स्पेस कूलिंग जरूरतों की वजह से आती है।
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