लोग चिल्लाते-चिल्लाते थक गए… इन्दौर को अंतर्राष्ट्रीय अड्डा बनाने में बीस साल लग गए… दो साल में केवल एक देश की उड़ान शुरू हो पाईं… वो भी सप्ताह में एक दिन चलवाई… अब प्रदेश सरकार की सनक इन्दौर-भोपाल के बीच गांव-खेड़े में देश का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाएगी… यह सनक यदि पूरी हो भी जाएगी तो उड़ानें कहां से आएंगी… कौन सी विमान कम्पनी बिना यात्री के विमान चलाएगी… बिना यात्री और बिना विमानों के हवाई अड्डा कबूतर उड़ाने के ही काम आएगा… इन्दौर जैसे शहर में यात्रियों के घटने पर हर दिन उड़ानें रद्द हो रही हैं… विमान कम्पनियां नफे-नुकसान को देखकर विमान उड़ा रही हैं …आधे यात्री होने पर भी उड़ान नहीं भर पा रही है… लोग बुकिंग करा रहे हैं… सामान लेकर जा रहे हैं और उतरा हुआ मुंह लेकर आ रहे हैं… लेकिन प्रदेश सरकार को ख्वाबों की नींद आ रही है… जिस जगह न उद्योग है न कारोबार… न व्यापार है न यात्री… जिस जगह के सौ किलोमीटर के दूरी पर दो-दो अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे बने हैं… बजाय उनके विकास की योजना बनाना… विमान कंपनियों को रिझाना… यात्रियों की संख्या बढ़ाना… सुविधाएं उपलब्ध कराना जहां जरूरी है वहीं प्रदेश सरकार एक ऐसी योजना पर काम कर रही है जो आगे पाट पीछे सपाट की तरह नजर आ रही है… उद्योगों का विकास हवाई अड्डों से नहीं होता है… जमीन, पानी और बिजली पहली जरूरत होते हैं… रियायतों के रुझान से उद्योग जमीन पर आते हैं… विश्वास की बुनियाद पर इलाके औद्योगिक बन पाते हैं… जब तक उद्योग उड़ान नहीं भरेंगे तब तक विदेशी तो क्या देसी उड़ानों के रास्ते नहीं खुलेंगे….
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