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    विश्व जगत को भारतीय गणतंत्र का उपहार

  • January 25, 2021

    – अरविंद मिश्रा

    कोरोना के वैश्विक संकट के बीच हम 72वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। वैसे तो हर गणतंत्र दिवस विशेष होता है। लेकिन कोरोना के वैश्विक संकट के बीच भारत ने जिस तरह आतंरिक मोर्चे पर एकता और अखंडता का परिचय देते हुए विश्व समुदाय के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन किया है, उससे भारतीय गणतंत्र का यह महापर्व और भी शुभंकर हो गया है। भारत वर्ष ने जिस एकत्व के साथ कोविड जनित स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को परास्त किया, वह भारतीय गणतंत्र के स्वर्णिम अध्याय के रूप हर भारतीय को अनुप्रेरित करता रहेगा। यह इसलिए भी क्योंकि कोरोना संकट के बीच वैविध्य की संभी संपन्नताओं से युक्त भारतीय गणतंत्र ने ठहरने के बजाय चरैवेति-चरैवेति के मार्ग पर चलना ही श्रेयस्कर समझा। आज राजपथ पर भारतीय गणतंत्र की हर उस जिजीविषा का दुनिया साक्षात्कार कर रही है, जिसे 136 करोड़ भारतीयों ने अपनी जीवटता से अर्जित किया है। कोरोना को परास्त करने के लिए कोविड योद्धाओं के योगदान से लेकर विश्व की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में विकसित होने वाली अयोध्या की झांकी विश्व जगत को समरसता का संदेश दे रही है।

    यह गणतंत्र दिवस राष्ट्र के रूप में भारत की मौलिकता और उसके दार्शनिक अधिष्ठान के हर आयाम की वैश्विक प्राण प्रतिष्ठा का अवसर भी प्रदान कर रहा है। दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के समानांतर विश्व के अलग-अलग देशों को भेजी जा रही भारतीय वैक्सीन स्वदेशी के विचार पर आधारित आत्मनिर्भर भारत का प्रगटीकरण ही है। भारतीय गणतंत्र की वैश्विक भागीदारी के कुछ हालिया प्रयास न सिर्फ अभूतपूर्व हैं बल्कि वैश्विकरण को मानव केंद्रित आवरण भी प्रदान कर रहे हैं। कोरोना संकट के दौर में दुनिया एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भलाई को लेकर भारतीय गणतंत्र के उन प्रयासों से फलीभूत हो रही है, जो वसुधैव कुटुम्बकम के शाश्वत दर्शन पर आधारित हैं। 


    पड़ोसी देशों के साथ विश्व की आर्थिक महाशक्तियों को भारत निर्मित वैक्सीन की आपूर्ति को विशुद्ध रूप से कूटनीति के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में भेजी जा रही भारतीय वैक्सीन के डिब्बों में ‘सर्वे सन्तु निरामया:’ और भारत सरकार एवं जनता की ओर से उपहार जैसे शब्द अंकित हैं। इन वाक्यों को कोरोना की जंग में भारतीय गणतंत्र का ध्येय वाक्य कहा जा सकता है। कोरोना से पैदा विभीषिका का दायरा इतना व्यापक था कि आर्थिक महाशक्तियों की सीमाएं भी असहाय नजर आईं। लेकिन मानवता को लेकर हमारी अबतक की प्रतिबद्धता ने कोरोना की लड़ाई में भारत को विश्व जगत की उम्मीदों का केंद्र बना दिया। बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव समेत दर्जन भर देशों को नि:शुल्क पहुंचाई गई वैक्सीन की खेप यह बताने के लिए काफी है कि कूटनीति सिर्फ पारस्परिक लाभ-हानि अर्जित करने का माध्यम नहीं है। यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को वैक्सीन मैत्री के लिए यह कहते हुए धन्यवाद कहा है कि इससे करोड़ों जिंदगियां और आजीविका बचाई जा सकती है। वहीं ब्राजील के राष्ट्रपति ने तो भारत के मानवतावादी टीके की तुलना हनुमान जी द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से की है।

    वैक्सीन उत्पादन और उस क्षेत्र में अर्जित उपलब्धियों को सिर्फ आर्थिक उपक्रम के तौर पर नहीं परिभाषित किया जाना चाहिए। भारत विश्व की कुल वैक्सीन आपूर्ति में 60 प्रतिशत योगदान देता है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की जाने वाली वैक्सीन खरीद में भारत की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से भी अधिक है। भारत द्वारा प्रत्येक वर्ष विश्व के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाई जाने वाली वैक्सीन से करोड़ों जिंदगियां सेहतमंद होती हैं। इस उपलब्धि का श्रेय भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, ड्रग नियामक जैसे सार्वजनिक व निजी संस्थानों में कार्य करने वाले शोधकर्ताओं को जाता है। वैक्सीन की दुनिया में भारत की आत्मनिर्भरता में इन संस्थानों की विशेष भूमिका रहे है। आईसीएमआर से जुड़े शोधकर्ताओं ने टीबी, कॉलेरा, लेप्रोसी, डायरिया, विषाणु जनित बीमारियों के साथ ही एड्स और मलेरिया के रोकथाम पर अभूतपूर्व कार्य किया है। कोवीशील्ड वैक्सीन का उत्पादन करने वाला सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ऑफ इंडिया विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ द्वारा प्रायोजित विभिन्न टीकाकरण कार्यक्रमों में सहयोग करता रहा है। एक्स्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सहयोग से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा उत्पादित कोवीशील्ड को भी जीवन रक्षा के क्षेत्र में वैश्विक भागीदारी की ही देन माना जा रहा है। 

    भारतीय गणतंत्र के मूल में विश्व बंधुत्व है। आज अमेरिका और ब्रिटेन के पड़ोसी देश भी भारतीय जीवन रक्षक टीके पर सबसे अधिक विश्वास इसलिए कर रहे हैं क्योंकि सर्वे भवन्तु सुखिन: का मंत्र सिर्फ भारतीय संततियों के लिए नहीं अपितु संपूर्ण मानवता के लिए है। यूनाइटेट नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत 1997 में स्थापित इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट के साथ इस दशक के प्रारंभ में ही भारत ने विभिन्न बीमारियों के टीकों पर शोध के लिए साझेदारी की। एक ऐसी साझेदारी जिसके अंतर्गत भारत इस अंतर्राष्ट्रीय टीका संस्था का न सिर्फ सदस्य बना बल्कि विभिन्न प्रकार के टीकों के लिए होने वाले शोध पर आर्थिक सहयोग देना भी प्रारंभ किया। वैक्सीन उत्पादन को लेकर भारत की इस दीर्घकालिक रणनीति व उस दिशा में किए गए प्रयासों का ही परिणाम है कि एक ओर भारत ऐसे देशों को नि:शुल्क टीका उपलब्ध करा पा रहा है, जिनके लिए जीवनरक्षक वैक्सीन बड़े आर्थिक नियोजन का विषय है। वहीं दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन के टीकाकरण कार्यक्रम में सबसे बड़े भागीदार के रूप में हम करोड़ों जीवन बचाने और उसे सुंदर बनाने में जुटे हैं।

    इससे पहले कोरोना महामारी जब अपने चरम पर थी वक्त भी भारत ने पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट की दुनिया भर में आपूर्ति कर कोरोना की जंग को वैश्विक मोर्चे पर आसान बनाया। इस अदृश्य विषाणु के डर से दुनिया जब घरों में कैद थी, उस दौर में भी अपने जान की परवाह न करते हुए देश में 6 करोड़ से अधिक पीपीई किट और 15 करोड़ एन-95 मास्क का उत्पादन सिर्फ आर्थिक हितों के लिए नहीं किया गया। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक दिसंबर 2020 तक 2 करोड़ से अधिक पीपीई किट और 4 करोड़ मास्क का निर्यात कर हमने कई देशों को कोरोना की लड़ाई में संसाधनों के साथ हौसला भी दिया है।

    यह कोई पहला अवसर नहीं है, जब वैश्विक संकट के समय भारतीय गणतंत्र ने अगुआ बनकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया हो। आतंकवाद, नस्लवाद, गरीबी, भूखमरी, पर्यावरण संरक्षण समेत अनेक मुद्दों पर हमने अपनी भूमिका सुनिश्चित करते हुए दुनिया को मार्ग दिखाया है। संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना द्वारा संचालित शांति मिशनों में 18 हजार से अधिक भारतीय सैनिक हिस्सा ले चुके हैं। मौजूदा समय में भी लगभग सात हजार सैनिक विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय शांति अभियानों में तैनात हैं। इसी तरह पर्यावरण संरक्षण को लेकर पेरिस समझौते के रूप में कार्बन उत्सर्जन में नियंत्रण से जुड़े लक्ष्य तय करने की बात आई तो विकासशील देश होते हुए भी हमने आर्थिक महाशक्तियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया। पेरिस समझौते पर भारत ने न सिर्फ हस्ताक्षर किया बल्कि आज अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के विकास के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के सहस्त्राब्दी लक्ष्यों के साथ हम कदमताल कर रहे हैं।

    ऐसे में भारतीय गणतंत्र का यह पर्व एक नागरिक के रूप में विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुम्बकम के भारतीय दर्शन के साथ एकाकार होने की प्रेरणा देता है। राष्ट्र और उसके मूल दर्शन के साथ हमारा यह एकत्व भारत ही नहीं विश्व जगत को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के संधान का मार्ग दिखाएगा।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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