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    यह हर भारतीय के लिए गर्व का पल है

  • September 06, 2022

    – अनुराग सिंह ठाकुर

    यह मात्र संयोग हो सकता है, तो भी यह प्रत्येक भारतीय के लिए अत्यधिक संतोष की बात है कि भारत ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से अपनी स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरते हुए ब्रिटेन को ही पीछे छोड़ दिया है। यह उपलब्धि ऐसे समय में भी आई है, जब ब्रिटेन अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को समर्थन देने और बढ़ती महंगाई का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसने जीवनयापन की लागत को उस स्तर तक पहुंचा दिया है, जिसकी कल्पना यूके, यूरोप और पश्चिम ने कभी नहीं की थी। भारतीय अर्थव्यवस्था की लगातार आलोचना करने वाले अर्थशास्त्री इस बात से स्तब्ध हैं कि वे ब्रिटेन की और वास्तव में पश्चिम की अधिकांश चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का विचार है कि उनके लिए प्रचुरता से भरे दिन वास्तव में खत्म हो गए हैं और ये हमारे लिए शुरुआत हो सकती है।

    ब्लूमबर्ग, जिसने सबसे पहले भारत के ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की खबर को प्रसारित की थी, ने इसकी व्याख्या औपनिवेशिक संदर्भ में करते हुए कहा कि एक उपनिवेशवादी ताकत को उसके पूर्ववर्ती उपनिवेश ने ही पीछे छोड़ दिया है। सम्राट से साम्राज्य और वैभव दोनों बहुत पहले ही छीन लिए गए थे। समय के साथ ग्रेट ब्रिटेन छोटे से इंग्लैंड में सीमित हो गया। लेकिन इसकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रही और यूके ने विश्व की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्थाओं की सूची में अपना स्थान मजबूती से कायम रखा। निस्संदेह ब्लूमबर्ग रिपोर्ट में औपनिवेशिक संदर्भ आपत्तिजनक हो सकता है, लेकिन इसने इस बात को भी रेखांकित किया कि कैसे एक देश, जिसे 1947 में अपने ब्रिटिश शासकों द्वारा पस्त, चोट और खून से लथपथ छोड़ दिया गया था, अपनी खोयी हुई आर्थिक समृद्धि और ताकत को पुनः प्राप्त करने के लिए फिर से उठ खड़ा हुआ।

    यह बात दोहराने के दृष्टिकोण से कही जा सकती है कि भारत का ब्रिटिश उपनिवेशवाद, अनिवार्य रूप से इस देश का आर्थिक शोषण करने और भारत से ब्रिटेन को धन को हस्तांतरित करने से सम्बंधित था। पचहत्तर साल पहले, जब 15 अगस्त 1947 को यूनियन जैक की जगह तिरंगा फहराया गया था, तब विश्व जीडीपी में भारत का हिस्सा 1700 के 24.4 प्रतिशत से कम होकर मात्र 3 प्रतिशत रह गया था। ब्रिटेन समृद्ध होता गया, जबकि भारत को और गरीबी के जाल में धकेल दिया गया। पिछले आठ वर्षों में भारत के आश्चर्यजनक उदय को समझने के लिए इन आकड़ों को याद करना महत्वपूर्ण है, इस दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को तेज गति से आगे बढ़ने में समर्थन के लिए प्रमुख नीतिगत बदलाव किए हैं। इस अवधि में खोए हुए दशकों की भरपाई करने के भी प्रयास किए गए, जब पिछली सरकारों ने सोवियत युग शैली के राज्य नियंत्रण को अपनाया और भारतीय उद्यम की क्षमता को कम करके आंका। प्रतिबंधों के लिए आकांक्षाओं की अनदेखी की गई।

    साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अतीत को काफी पीछे छोड़ते हुए एक ऐसे भविष्य की शुरुआत की, जो भारतीयों की कई आकांक्षाओं को पूरा करेगा। उनकी क्षमता का विस्तार करेगा। साथ ही इस महान राष्ट्र के लिए तीव्र विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। एक ऐसा भविष्य जो यह सुनिश्चित करेगा कि अंतिम कतार का अंतिम व्यक्ति अपेक्षाकृत एक समृद्ध और संपन्न भारत का लाभ प्राप्त करने में समर्थ हो। इन आठ वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाए गए निरंतर परिवर्तनों का प्रभाव देखा गया है, जिससे भारत की गाथा दुनिया में सबसे अधिक प्रासंगिक हो गई है। आंकड़े खुद ही इसकी कहानी बयां करते हैं। भारत वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत की दर से सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। यदि हम अपनी क्रय-शक्ति के अनुकूल होते हैं, तो भारत का सकल घरेलू उत्पाद इसे अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने में सक्षम होता है। सभी उपलब्ध आंकड़ों और अनुमानों से पता चलता है कि अन्य देशों का सकल घरेलू उत्पाद या तो स्थिर रहेगा या कम होगा, किंतु भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगातार बढ़ता रहेगा। इसका मतलब है कि भारत अपनी बढ़त कायम रखेगा और मौजूदा कमियों को दूर करने के काम में तेजी लाएगा।

    वैश्विक स्तर की अर्थव्यवस्थाओं की तरह ही कोविड-19 महामारी के लगातार दो सालों ने भारत की अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतिकूल परिस्थितियों वाले इन सालों को अवसर में बदल दिया। उनकी दूरदर्शिता ने भारत को दूसरे देशों की तरह अपने धन एवं संसाधनों को बर्बाद करने से बचाया। अन्य देशों से अलग, उन्होंने एक सतर्क और विवेकपूर्ण विकल्प चुना जिसके तहत रोजगार पैदा करने वाली बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाया गया और उद्योग जगत में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहन आधारित योजनाओं को बढ़ावा दिया गया। दो लाख करोड़ रुपये की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का असर अब दिखने लगा है। ये सभी उपाय भारत के प्रौद्योगिकी पूल का लाभ उठाने, स्टार्टअप एवं यूनिकॉर्न को प्रोत्साहित करने और वैश्विक स्तर पर निवेशकों एवं उद्योगों के साथ सीधे जुड़ने की सुविधा के अलावा, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यापार की बेहद आसान प्रक्रिया, नीतिगत स्थिरता, संशोधित श्रम कानून और बेहद लोकप्रिय व दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान प्रणाली सुनिश्चित किए जाने की पृष्ठभूमि में हुए हैं।

    इसमें कोई दोराय नहीं कि मुख्य जोर अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाने और लॉकडाउन वाले सालों में नीचे गिरी जीडीपी को ऊपर उठाने पर था, लेकिन इस सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी इस महामारी की सबसे अधिक मार झेलने वाले गरीब और वंचित लोगों को बिल्कुल नहीं भूले। भारत की लगभग दो तिहाई आबादी को मुफ्त राशन प्रदान करने के दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम और दुनिया के सबसे बड़े कोविड-19 टीकाकरण अभियान ने भारत की अर्थव्यवस्था को इस महामारी के कहर से उबरने और गति पकड़ने एवं अपना आकार बढ़ाने में काफी मदद की।

    1947 में भारत एक असहाय राष्ट्र था। लेकिन आज जब हम अपनी आजादी के ‘अमृत काल’ में प्रवेश कर रहे हैं। हमारा देश काफी मजबूत और समृद्ध हो चुका है। आज भारत स्मार्टफोन डेटा का दुनिया का प्रमुख उपभोक्ता है। यह इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में दूसरे स्थान पर है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है और ग्लोबल रिटेल इंडेक्स में दूसरे पायदान पर है। भारत के ऊर्जा का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश होने का तथ्य इसकी उभरती अर्थव्यवस्था को रेखांकित करता है। 75 साल पहले लंकाशायर के उत्पादों का आयात करने से लेकर आज भारतीय वस्त्रों के निर्यात में शानदार वृद्धि हुई है। निर्यात के पिछले सभी रिकॉर्ड को पार करते हुए अब हम वैश्विक व्यापार में एक मजबूत भागीदार हैं और इस साल 50 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को छू रहे हैं। जिन्सों का हमारा निर्यात 31 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। एक ऐसा देश जो कभी पीएल 480 के भरोसे जिंदा था, आज दुनिया को खाद्यान्न निर्यात करता है।

    मोदी सरकार की सफलता की कहानियों की सूची लंबी है। यह उल्लेख करना पर्याप्त होगा कि 100 बिलियन डॉलर से अधिक की कंपनियां बनाई गई हैं और हर महीने नई कंपनियां जुड़ रही हैं। पिछले आठ वर्षों में बनाए गए यूनिकॉर्न का मूल्य 12 लाख करोड़ रुपये है। प्रधानमंत्री मोदी के परिश्रमी नेतृत्व में भारत सैकड़े से 70,000 स्टार्टअप तक बढ़ चुका है। फिर भी, विकास और समृद्धि में असमानता नहीं रही है। 50 प्रतिशत स्टार्टअप टियर 2 और टियर 3 शहरों में हैं। इनमें से अधिकांश सफलताएं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई डिजिटल इंडिया क्रांति से प्रेरित हैं। 2014 में भारत में ब्रॉडबैंड के 6.5 करोड़ ग्राहक थे। आज इनकी संख्या 78 करोड़ से अधिक हो गई है। जीएसटी की शुरुआत ने कर संग्रह में अंतर को कम करते हुए उद्यमियों की सहायता की है।

    लेकिन भारत केवल क्रोम और ग्लास मॉल से अपनी बढ़ती समृद्धि को प्रदर्शित नहीं कर रहा है। इसे प्रधानमंत्री मोदी से बेहतर कोई नहीं समझ सकता है। इसलिए उनका ध्यान गरीबी को कम करने पर रहा है, जो हो रहा है। हाल ही में आईएमएफ का एक अध्ययन बताता है कि किस तरह अत्यधिक गरीबी और उपभोग संबंधी असमानता में तेजी से कमी आई है। गरीबों के लिए आवास और स्वास्थ्य सेवा का सामाजिक विकास सूचकांकों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है, जैसा कि वंचितों को सब्सिडी वाले एलपीजी प्रदान करने से लेकर प्रत्येक ग्रामीण के घर में नल के जरिये पीने योग्य पानी पहुंचाने से जुड़ी कई योजनाएं शामिल हैं। मुद्रा ऋण और अन्य संबद्ध कार्यक्रमों ने स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया है जिससे न केवल सूक्ष्म उद्यम पैदा हुए हैं बल्कि रोजगार भी सृजित हुआ है। वैश्विक ऊर्जा मूल्य वृद्धि की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है। महामारी के बाद की अशांति ने जीवन की सुगमता को बहुत कम प्रभावित किया है।

    प्रधानमंत्री मोदी की ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना धीरे-धीरे लेकिन लगातार आकार और रूप ले रही है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें सरकार और लोग दोनों शामिल हैं- एक संयुक्त प्रयास, या ‘सबका प्रयास’। यह भारत आत्मविश्वासी और ‘आत्मनिर्भर’ भारत है, जो चुनौतियों का सामना करने और प्रतिकूल स्थितियों से निपटने के लिए तैयार है। पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के दोहरे मील के पत्थर को पार करना निस्संदेह भारत और भारतीयों के लिए एक आश्चर्यजनक उपलब्धि है। यहीं से हमने प्रधानमंत्री मोदी की भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने की अपनी यात्रा शुरू की है। अब यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारत अगले दो वर्षों में इस मील के पत्थर को भी पार कर जाएगा। ऐसा हो रहा है।

    (लेखक, केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं)।

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