मिलान । दुनिया को जलवायु परिवर्तन (Climate change) के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए जल्द कड़े फैसले नहीं हुए तो विश्व की शक्तिशाली आर्थिक शक्तियां वर्ष 2050 तक पूरी तरह तबाह हो सकती हैं। ग्लासगो में कॉप26 बैठक (Cop26 meeting in Glasgow) से ऐन पहले यूरो मेडिटेरियन सेंटर ऑन क्लाइमेंट चेंज (CMCC) ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए ये चेतावनी दी है।
इटली (Italy) के रिसर्च सेंटर सीएमसीसी की रिपोर्ट के अनुसार ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए कोई फैसला नहीं लिया गया तो अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा, फ्रांस, ब्राजील, मेक्सिको, जापान, चीन और रूस जैसी शक्तिशाली आर्थिक शक्तियां पूरी तरह तबाह हो सकती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों के फलस्वरूप सूखा, तेज गर्मी, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी के साथ खाद्य पदार्थों का संकट गहराने से स्थिति बिगड़ सकती है। सीएमसीसी की वैज्ञानिक डोनाटेला स्पानो का कहना है कि हम अगर एक दूसरे के फैसले का इंतजार करते रहे तो आने वाले समय में ये तय है कि सब एक साथ बर्बाद हो जाएंगे।
अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जी20 देश 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था के कुल उत्पादन में चार फीसदी का नुकसान उठाएंगे। यही नहीं वर्ष 2100 तक ये नुकसान बढ़कर आठ फीसदी तक हो जाएगा। मालूम हो कि जी20 देश वैश्विक स्तर पर 80 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं।
खाद्य संकट, सूखा और गर्मी बढ़ने के कारण भविष्य की राह कठिन
लक्ष्य : 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 7.5 फीसदी की कमी लानी होगी तभी जीवन सुरक्षित होगा।
संकट : सूखा, गर्मी, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी और खाद्य पदार्थों का संकट गहराने से स्थिति बिगड़ सकती है।
खतरा : गर्मी और तपिश पर काबू नहीं पाया तो इससे सदी के अंत तक यूरोप में 90 हजार लोगों की मौत होगी।
आय के साधनों पर पड़ेगी मार
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से फ्रांस और इंडोनेशिया को मछली बाजार में भारी नुकसान होगा। प्रमुख कारण समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी और महासागरों के तापमान में बढ़ोतरी होगी। तटीय क्षेत्रों पर किए गए निर्माण को भी नुकसान होगा। इससे 2050 तक जापान को 468 और दक्षिण अफ्रीका को 945 अरब डॉलर का नुकसान होगा।
यूरोप में जीवन को भी खतरा
वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि गर्मी और तपिश पर काबू नहीं किया गया तो इस सदी के अंत तक यूरोप में मानव जीवन की अपूरणीय क्षति होगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि वर्ष 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 7.5 फीसदी की कमी लानी होगी तभी जीवन को मुश्किल में पड़ने से बचाया जा सकता है।
जानलेवा बीमारियां हावी होंगी
वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के साथ दुनिया कई तरह की घातक बीमारियों से भी जूझेगी। वर्ष 2050 तक अमेरिका की 83 फीसदी आबादी का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। डेंगू से भी 92 फीसदी आबादी को खतरा होगा।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत के प्रयास
देश में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना की शुरुआत वर्ष 2008 में किया गया था। इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
इस कार्ययोजना में 8 मिशन शामिल हैं
राष्ट्रीय सौर मिशन, विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन, सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन।
क्या है जलवायु परिवर्तन?
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