नई दिल्ली । भारत (India) में खिलौनों (toys) का 5 हजार साल से भी ज्यादा पुराना इतिहास है. मोहन जोदाड़ो और हड़प्पा की सभ्यता के दौरान खिलौने बनाए जाने के सबूत मिले हैं. उस समय छोटी गाड़ियां और गुड्डा-गुड़िया बनाई जाती थीं. माना जाता है कि हमारे पूर्वज खिलौनों के जरिए ही कहानियां सुनाया करते थे.
लेकिन जो भारत कभी खिलौने बनाने में आगे रहा करता था, आज पिछड़ गया है. आज दुनिया के खिलौना बाजार में भारत की हिस्सेदारी महज 0.5% है. शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने खिलौनों के बाजार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने की बात कही थी.
पीएम मोदी ने 30 अगस्त 2020 को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा था, ‘विश्व में खिलौना उद्योग लाखों करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है. लेकिन जिस देश में इतनी बड़ी विरासत हो, परंपरा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, उस देश की इतनी कम हिस्सेदारी क्या अच्छी बात है? जी नहीं, ये सुनने में अच्छा नहीं लगता. हमें मिलकर इसे आगे बढ़ाना होगा.’
खिलौनों की बात इसलिए क्योंकि उद्योगपति मुकेश अंबानी ने फिर से एक खिलौना कंपनी से डील की है. अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इटली की कंपनी प्लास्टिक लेग्नो एसपीए के साथ ये डील की है. रिलायंस ने प्लास्टिक लेग्नो के भारतीय कारोबार की 40% हिस्सेदारी खरीद ली है. पहले से ही रिलायंस के पोर्टफोलियो में ब्रिटिश कंपनी हैमलेज और घरेलू ब्रांड रोवन शामिल है.
इस डील के बाद रिलायंस ब्रांड्स लिमिटेड ने बताया कि प्लास्टिक लेग्नो के पास विश्वस्तरीय खिलौनों को बनाने का अनुभव है, जबकि रिलायंस ग्लोबल टॉय रिटेल इंडस्ट्री में मजबूत है. इस डील से भारत में बने खिलौनों के लिए नए दरवाजे खुलेंगे.
लेकिन क्या ऐसा होगा?
2020 में जब चीन के साथ तनाव बढ़ा था, तब भारत में उसके बने खिलौनों का भी विरोध शुरू हो गया था. लेकिन खिलौनों के लिए चीन पर निर्भरता कम नहीं हो रही है. ये सिर्फ भारत की ही परेशानी नहीं है, बल्कि दुनिया खिलौनों के लिए चीन पर निर्भर है.
एक अनुमान के मुताबिक, चीन में हर साल जितने खिलौने बनते हैं, उनमें से करीब 40 फीसदी निर्यात किए जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में चीन सालाना 80 फीसदी से ज्यादा खिलौनों का निर्यात करता है. दूसरे नंबर पर यूरोपीय यूनियन है.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में दुनियाभर में खिलौना का बाजार 291 अरब डॉलर यानी करीब 23 लाख करोड़ रुपये का रहा था. जबकि, इस बाजार में भारत की हिस्सेदारी 1.5 अरब डॉलर यानी 11,600 करोड़ रुपये की है. मतलब, दुनिया के खिलौना बाजार में भारत की हिस्सेदारी महज 0.5 फीसदी है.
क्या है इसकी वजह?
इसकी एक सबसे बड़ी वजह ये है कि भारत में खिलौने बनाने का काम असंगठित क्षेत्र में होता है. सिर्फ 10% कारोबार ही संगठित है. दूसरी वजह चीन है, जिसने भारत में कभी खिलौना बाजार को बढ़ने ही नहीं दिया.
चीन में बनने वाले खिलौने दूसरे खिलौनों की तुलना में काफी सस्ते होते हैं. भले ही ये ज्यादा चलें या न चलें. लेकिन भारत में जब कोई खिलौनों की खरीदारी करने के लिए जाता है तो वो चाहता है कि उसे कम कीमत में लेटेस्ट ट्रेंड के खिलौने मिल जाएं. चीन इस जरूरत को समझता है और जरूरत के हिसाब से खिलौने बनाता है और बेचता है.
भारत का खिलौने का बाजार चीन पर काफी हद तक निर्भर है. हालांकि, बीते कुछ सालों में ये निर्भरता कम हुई है. 2018-19 में भारत ने खिलौनों का जितना आयात किया था, उसमें से 78 फीसदी आयात चीन से हुआ था. वहीं, 2021-22 में भारत के खिलौना आयात में चीन की हिस्सेदारी घटकर 54 फीसदी पर आ गई.
भारत के खिलौना बाजार का भविष्य क्या है?
अनुमान के मुताबिक, दुनिया में 12 साल से कम उम्र के जितने बच्चे हैं, उसमें से 25 फीसदी बच्चे भारत में रहते हैं. यानी, दुनिया में 12 साल से छोटा हर चौथा बच्चा भारतीय है.
investindia.gov.in का अनुमान है कि आने वाले सालों में भारत में खिलौनों की घरेलू मांग 10 से 15% की दर से बढ़ेगी, जबकि दुनिया में ये मांग 5% की दर से बढ़ने की उम्मीद है.
इतना ही नहीं, अभी भारत में टॉय इंडस्ट्री 1.5 अरब डॉलर की है, जिसके 20214 तक बढ़कर 2 से 3 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
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